Saturday, March 15, 2025
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क्या जापान में जानबूझकर बैलिस्टिक मिसाइलें दाग रहा चीन? जानिए!

आपने हाल ही के दिनों में जापान में हुए बैलेस्टिक मिसाइल बम धमाकों के बारे में तो सुना ही होगा! ताइवान के साथ जारी तनाव के बीच चीन ने दक्षिण चीन सागर में विध्वंसक नौसैनिक अभ्यास का आयोजन किया है। इस दौरान चीनी सेना ने ताइवान के जलक्षेत्र में जमकर मिसाइलें दागी हैं। इनमें से 5 मिसाइलें जापान के इलाके में जाकर गिरी हैं। जिसके बाद से जापानी रक्षा मंत्री नोबुओ किशी के कड़ी प्रतिक्रिया दी है। चीन और जापान के बीच पहले से ही द्वीपों को लेकर तनाव है। इसके अलावा इतिहास में भी दोनों देश एक दूसरे के खून के प्यासे रह चुके हैं। आज भी चीन और जापान के अधिकतर लोग एक दूसरे को पसंद नहीं करते हैं। चीन ताइवान जलडमरूमध्य में अब तक का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास कर रहा है। इस दौरान चीन के युद्धपोतों, लड़ाकू विमानों, मिसाइल और हेलीकॉप्टरों ने ताइवान को धमकाने के लिए लाइव फायर ड्रिल कर अपनी ताकत दिखाई।

दर्ज करवाया राजनयिक विरोध

जापानी रक्षा मंत्री नोबुओ किशी ने कहा कि जापान के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में पांच चीनी मिसाइलों का इस तरह गिरना पहली बार है। हमने राजनयिक चैनलों के माध्यम से कड़ा विरोध किया है। ईईजेड जापान के प्रादेशिक समुद्रों की बाहरी सीमा से 200 समुद्री मील तक फैला है। इससे पहले सिर्फ उत्तर कोरिया की मिसाइल ही जापान के ईईजेड के एक अलग हिस्से में गिर चुकी हैं। इस घटना के बाद से जापानी नौसेना ने दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में गश्त को बढ़ा दिया है। कई जापानी युद्धपोत और पेट्रोल वेसल चीन से सटी सीमा की 24 घंटे निगरानी कर रहे हैं।

जापानी इलाके में चीनी मिसाइल दागना महज एक इत्तेफाक नहीं है। चीन ने डीएफ-17, डीएफ-26 और डीएफ-21 मिसाइलों को फायर किया था। ये सभी मिसाइलें काफी सटीकता के साथ अपने लक्ष्य को भेदने में सक्षम हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि चीन ने जानबूझकर जापानी इलाके में अपनी मिसाइलों को दागा था। दरअसल, चीन और जापान के बीच भी पूर्वी चीन सागर में द्वीपों को लेकर विवाद है। इस कारण दोनों देशों के बीच समुद्र में सीमा का सटीक निर्धारण नहीं हो सका है। वैसे भी समुद्र में सीमा का निर्धारण करना काफी मुश्किल काम माना जाता है।

चीन और जापान की दुश्मनी आज की नहीं, बल्कि 90 साल पुरानी है। 1931 में जापानी फौज ने चीन के मंचूरिया पर हमला किया। यह हमला जापानी नियंत्रण वाले एक रेलवे स्टेशन के पास हुए विस्फोट के जवाब में किया गया था। इस युद्ध में चीन का जबरदस्त हार हुई और जापान ने मंचूरिया का काफी बड़ा इलाका जीत लिया। इसके बाद जापान की महत्वकांक्षा बढ़ गई और उसने दिसंबर 1937 में नानजिंग शहर पर आक्रमण कर दिया। जापानी फौज ने चीन के नानजिंग में जो कत्लेआम मचाया था, उसे दुनिया आज तक भूल नहीं पाई है। इस दौरान लोगों को मारा गया, महिलाओं का बलात्कार किया गया, घरों को लूटा गया। यह कत्लेआम मार्च 1938 तक चलता रहा। एक अनुमान के मुताबिक इन चार महीनों में जापानी फौज ने नानजिंद में लगभग तीन लाख लोगों को मार डाला था। मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे।

चीन और जापान में पूर्वी चीन सागर में स्थित 8 द्वीपों को लेकर विवाद है। इसमें सबसे बड़ा सेनकाकू द्वीप है। लगभग 7 वर्ग किलोमीटर में फैले ये द्वीप ताइवान के उत्तर-पूर्व, चीनी मुख्य भूमि के पूर्व में और जापान के प्रांत ओकिनावा के दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं। सेनकाकू द्वीप को चीन और ताइवान में दियोयस के नाम से जाना जाता है। चीन इस द्वीप को अपनी सीमा में स्थित मानता है। चीन के अनुसार, जापानी सेना की इस द्वीप पर मौजूदगी उसकी क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन है और चीन अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के लिये दृढ़ है। यही कारण है कि इस द्वीप के आसपास कई बार चीन और जापान की नौसेनाओं का आमना-सामना हो जाता है।

जापान की रक्षा के लिए कानूनन बाध्य है अमेरिका

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान परमाणु हमले से मची तबाही के बाद अमेरिका ने जापान के साथ रक्षा समझौता किया था। दोनों देशों के बीच 8 सितंबर 1951 को सुरक्षा की संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसे सेन फ्रांसिस्को संधि के नाम से भी जाना जाता है। इस संधि में 5 अनुच्छेदों का उल्लेख किया गया है। इसमें अमेरिका को जापान में अपनी नौसेना का बेस बनाने का अधिकार भी शामिल है। इसमें जापान के ऊपर किया हमला अमेरिका पर हमला माना जाएगा और अमेरिकी सेना जापान की रक्षा करेगी।

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