पिछले कुछ महीनों में स्पाइसजेट के विमानों में गड़बड़ी होने की खबर तो आपने सुनी ही होगी! दिन 15 दिसंबर, 2014, समय रात साढ़े नौ बजे। सिविल एविएशन मिनिस्ट्री को स्पाइसजेट मैनेजमेंट की तरफ से एक कॉल आया। उन्होंने कहा कि हम नकदी संकट की समस्या से जूझ रहे हैं और अगर यही स्थिति रही तो हमें अपना कामकाज बंद करना पड़ेगा। एयरलाइन कंपनी तीन जटिल समस्याओं से जूझ रही थी। पहली समस्या यह थी कि डीजीसीए ने एयरलाइन को 31 दिसंबर, 2014 के बाद कोई भी टिकट बुक करने से रोक दिया था। इससे कंपनी के रेवेन्यू पर दबाव बढ़ गया था। स्पाइसजेट एडवांस में डिस्काउंट पर टिकट बेचकर वर्किंग कैपिटल जुटा रही थी। कंपनी की तरफ से यह स्मार्ट मूव था लेकिन डीजीसीए को लग रहा था कि अगर एयरलाइन ने फ्लाइट्स कैंसल की तो फिर उसे कस्टमर्स के गुस्से का सामना करना पड़ेगा।
रेगुलेटर की चिंता बेजा नहीं थी। इसकी वजह यह थी कि कई बार तेल कंपनियां स्पाइसजेट को तेल देने से इनकार कर चुकी थीं क्योंकि उसने उनका बकाया नहीं चुकाया था। विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइन में हाथ जला चुका एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया भी स्पाइसजेट को कोई मोहलत देने को तैयार नहीं था। उसका साफ कहना था कि जब तक उसका बकाया नहीं मिलेगा तब तक स्पाइसजेट को फ्लाइट्स ऑपरेट करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। चूंकि स्पाइसजेट एयरलाइन एक निजी कंपनी थी, इसलिए सरकार भी कुछ ज्यादा करने की स्थिति में नहीं थी।
अजय सिंह का ऑफर क्या है
इस बीच यात्रियों ने एयरपोर्ट्स पर स्पाइसजेट के कर्मचारियों को पकड़-पकड़कर मारना शुरू कर दिया था। दिसंबर पीक होलिडे सीजन होता है और स्पाइसजेट के विमान उड़ नहीं रहे थे। छोटे हवाई अड्डों पर कोहराम मचा था। दोपहर बाद 2.30 बजे तक इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं थी कि घरेलू मार्केट में 13 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली एयरलाइन का क्या होगा। दो साल पहले माल्या की किंगफिशर बंद हो चुकी थी। इसलिए सरकार एक और एयरलाइन के बंद होने का खतरा मोल नहीं लेना चाहती थी। ऐसी स्थिति में अजय सिंह स्पाइसजेट को खरीदने के ऑफर के साथ फाइनेंस मिनिस्ट्री पहुंचे।
इस तरह अजय सिंह ने स्पाइसजेट की कमान अपने हाथ में ले ली। इसके बाद कंपनी में चीजें तेजी से बदलने लगीं। जब मारन बंधुओं ने 2010 में स्पाइसजेट को खरीदा था तो जेट फ्यूल की कीमत 40 रुपये लीटर थी जो 2013 में 77 रुपये पहुंच गई। लेकिन फरवरी 2015 में इसकी कीमत 36 रुपये प्रति लीटर और फरवरी 2016 में 35 रुपये रह गई। किसी भी विमानन कंपनी की परिचालन लागत में करीब आधी हिस्सेदारी फ्यूल की होती है। यही वजह है कि स्पाइसजेट के कायाकल्प में इसका जेट फ्यूल की कीमत में कमी का बड़ा हाथ है। स्पाइसजेट ने 2014-15 में तेल कंपनियों को 2410 करोड़ रुपये दिए और 2015-16 में इस मद में 1392 करोड़ रुपये चुकाए। इस तरह फ्यूल में बचत से कंपनी का कायापलट हो गया।
स्पाइसजेट की शुरुआत 1984 में हुई थी। उद्योगपति एस के मोदी ने भारत में प्राइवेट टैक्सी की शुरुआत की। 1993 में इसका नाम एमजी एक्सप्रेस रखा गया लेकिन अगले ही साल यानी 1994 इसका नाम ModiLuft कर दिया गया। 2004 में अजय सिंह ने इसका अधिग्रहण कर लिया और इनका नाम रखा स्पाइसजेट। उस जमाने में हवाई जहाज का टिकट बहुत महंगा होता था लेकिन स्पाइसजेट ने कम कीमत पर लोगों को हवाई सफर का मौका दिया। साल 2010 में सन ग्रुप के मारन बंधुओं ने इसमें 37.7 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली। बाद में उन्होंने कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 58.46 फीसदी कर ली। लेकिन कंपनी की वित्तीय स्थिति खराब होने के बाद जनवरी 2015 में उन्होंने अपनी पूरी हिस्सेदारी अजय सिंह को बेच दी।
लेकिन समय ने पलटी मारी और एक बार फिर अजय सिंह कंपनी में अपनी कुछ हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अजय सिंह कंपनी में 24 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए खरीदार की तलाश में हैं। उनकी स्पाइसजेट में कुल 60 फीसदी हिस्सेदारी है। माना जा रहा है कि मिडल ईस्ट की एक बड़ी विमानन कंपनी के साथ बातचीत चल रही है। स्पाइसजेट के प्रवक्ता का कहना है कि कंपनी कई निवेशकों के साथ वित्तीय साझेदारी को लेकर बातचीत कर रही है और इस पर कोई फैसला होने पर जानकारी दी जाएगी। इस डील के लिए सभी नियामकीय दिशानिर्देशों का पालन किया जाएगा।
क्या है मुश्किलें
स्पाइसजेट फिलहाल मुश्किलों में घिरी है। डीजीसीए ने स्पाइसजेट के विमानों में आई तकनीकी गड़बड़ी के मद्देनजर आठ हफ्तों तक उसकी 50 फीसदी उड़ानों पर रोक लगा दी है। इस दौरान एयरलाइन पर सख्त निगरानी रखी जाएगी। यानी अगर कुछ गड़बड़ी हुई तो एयरलाइन पर और सख्त कार्रवाई हो सकती है। संभव है कि ऐसी स्थिति में उसकी सभी उड़ानों पर रोक लगा दी जाए। स्पाइसजेट के विमानों में 19 जून से 11 जुलाई के बीच तकनीकी खराबी के कम से कम नौ मामले आए। डीजीसीए ने छह जुलाई को एयरलाइन को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इसमें कहा गया था कि खराब इंटरनल सेफ्टी इंस्पेक्शन और रखरखाव की कमी की वजह से सेफ्टी स्टैंडर्ड्स में कमी आई है।
स्पाइसजेट मार्केट शेयर के हिसाब से इंडिगो और गो फर्स्ट के बाद देश की तीसरी सबसे बड़ी एयरलाइन है। इसकी बाजार हिस्सेदारी अभी 9.5 फीसदी है। कंपनी पिछले 17 साल से फ्लाइट्स ऑपरेट कर रही है लेकिन हाल के दिनों में उस पर कई तरह के सवाल उठे हैं। तकनीकी गड़बड़ी के अलावा क्वालिटी के मामले में भी स्पाइसजेट पिछड़ रही है। मई के आंकड़ों के मुताबिक स्पाइसजेट के 53,707 यात्रियों को उस महीने परेशानियों का सामना करना पड़ा। उन्हें बोर्डिंग नहीं दी गई, फ्लाइट कैंसल हो गई या दो घंटे से अधिक इंतजार करना पड़ा। इंडिगो के मामले में यह संख्या करीब 51 हजार थी जबकि इंडिगो की उड़ानों की संख्या स्पाइसजेट से छह गुना अधिक है। स्पाइसजेट में सफर करने वाले प्रति 10 हजार यात्रियों में से 466 को समस्याओं का सामना करना पड़ा। जनवरी 2020 में स्पाइसजेट का मार्केट शेयर 16.6 फीसदी था जो अब काफी घट गया है। आंकड़ों के मुताबिक मई में 11,52,182 यात्रियों ने स्पाइसजेट की फ्लाइट्स में उड़ान भरी।
स्पाइसजेट को पिछली नौ तिमाहियों में से सात में घाटा हुआ है। महामारी के कारण एविएशन सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ लेकिन स्पाइसजेट उससे पहले से ही वित्तीय समस्या से जूझ रही थी। फंड की कमी के कारण कंपनी के कामकाज पर भी असर हुआ। कंपनी ने विमानों की मरम्मत और रखरखाव के लिए कम फंड जारी किया। इसी कारण हाल में कंपनी के विमानों में तकनीकी गड़बड़ी के कई मामले सामने आए हैं। इनमें से कई मामले तो ऐसे हैं जिनमें यात्रियों की जान बाल-बाल बची है।