एक समय ऐसा था जब चीन ने ताइवान पर परमाणु मिसाइल से हमला किया था! नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा से चीन बुरी तरह से बौखलाया हुआ है। यही कारण है कि चीन ने बदला लेने की खुलेआम धमकी दी है। पेलोसी के ताइवान पहुंचते ही चीन ने ऐलान कर दिया कि वह ताइवान के चारों ओर युद्धाभ्यास करने जा रहा है। वहीं पेलोसी ने कहा कि उनकी यात्रा का लक्ष्य यह स्पष्ट करना था कि अमेरिका ताइवान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नहीं छोड़ेगा। पेलोसी की इस यात्रा से यह तो तय है कि अमेरिका और ताइवान के साथ चीन के रिश्ते आने वाले समय में अधिक तनावपूर्ण बनने जा रहे हैं। ऐसे में कई लोगों को 1995-96 की घटना याद आ गई, जब ऐसी ही एक यात्रा के कारण चीन और ताइवान आमने-सामने आ गए थे। उस समय तो चीन ने ताइवान के ऊपर परमाणु हमला करने में सक्षम मिसाइल तक दाग दी थी। यह मिसाइल राजधानी ताइपे के ऊपर से उड़ान भरती हुई पूर्वी तट से 19 मील की दूरी पर गिरी थी। गनीमत यह रही कि यह मिसाइल हमले के समय परमाणु वॉरहेड से लैस नहीं थी।
अमेरिका था ताईवान का मित्र
अमेरिका ने 1979 में ताइवान को चीन से अलग एक द्वीप के रूप में मान्यता दी थी। इसी साल से अमेरिका और ताइवान के बीच द्विपक्षीय संबंधों की शुरुआत हुई थी। उस समय चीन के साथ अमेरिका के रिश्ते काफी अच्छे थे। ऐसे में बीजिंग के विरोध को देखते हुए वॉशिंगटन ने वचन दिया था कि वह आने वाले समय में ताइवान के साथ अपने रिश्तों को धीरे-धीरे कम करेगा। हालांकि, हुआ इसके ठीक उलट। शीतयुद्ध में रूस के साथ देने और महत्वकांक्षी होने के कारण अमेरिका ने धीरे-धीरे चीन से दूरी बनानी शुरू कर दी। इसके ही बाद से अमेरिका और ताइवान के बीच संबंधों में प्रगाढ़ता बढ़ने का दौर शुरू हुआ।
अमेरिका और चीन आज से 26 साल पहले भी ताइवान को लेकर आमने-सामने आ चुके हैं। विडंबना यह है कि वह संकट भी एक विवादास्पद यात्रा के साथ शुरू हुआ था, हालांकि तब ताइवानी नेता अमेरिका गए थे। वहीं, इस समय अमेरिकी नेता के ताइवान दौरे से वैसा ही तनाव पैदा हुआ है। इस बार चीन की सेना अमेरिका का मुकाबला करने के लिए पहले की तुलना में ज्यादा तैयार है। तब भी चीन इतना बौखला गया था कि उसने ताइवान की सीमाओं की परवाह न करते हुए तत्काल युद्धाभ्यास शुरू कर दिया था। इसे ताइवान की घेराबंदी के तौर पर देखा गया और इस द्वीप की हवाई और जलीय यातायात कई घंटों तक के लिए बंद करना पड़ा था।
9-10 जून 1995 को ताइवान के राष्ट्रपति ली टेंग-हुई ने न्यूयॉर्क में कॉर्नेल विश्वविद्यालय में भाषण देने के लिए अमेरिका के लिए उड़ान भरी। ली टेंग-हुई लोकतांत्रित तरीके से चुने गए ताइवान के पहले राष्ट्रपति थे। इसके ठीक एक साल पहले चीन के विरोध को देखते हुए अमेरिका ने ली टेंग-हुई को अपने देश का वीजा देने से इनकार कर दिया था। इसके बावजूद ताइवान और अमेरिकी कांग्रेस के दबाव के कारण अमेरिकी विदेश विभाग चीन की आपत्ति को दरकिनार करते हुए ताइवानी राष्ट्रपति को अपने देश आने की मंजूरी दे दी।
ली टेंग-हुई की ताइवान यात्रा से चीन और अमेरिका के बीच तनाव काफी बढ़ गया था। चीनी मीडिया ने ताइवानी राष्ट्रपति को देशद्रोही करार दिया जो चीन को विभाजित करना चाहता था। कॉर्नेल में अपने भाषण में, ली ने बार-बार ताइवान को रिपब्लिक ऑफ चाइना के नाम से संबोधित किया। उनके इस फॉर्मूले ने बीजिंग को नाराज कर दिया। दरअसल चीन और ताइवान के बीच 1992 में एक समझौता हुआ था, जिसमें वन चाइना नीति को मानने पर सहमति जताई गई थी। चीन ने ली के भाषण को उस समझौते का उल्लंघन करार दिया और युद्धाभ्यास का ऐलान कर दिया।
ताइवानी राष्ट्रपति की अमेरिका यात्रा और ताइवान को अलग देश के नाम से संबोधित करने से नाराज चीन ने जुलाई 1995 से ताइवान के बेहद करीब मिसाइल परीक्षणों की सीरीज शुरू कर दी। चीन ने ताइवान के नजदीक 1 लाख सैनिकों की तैनाती की और बड़ी संख्या में लड़ाकू विमानों को भी अलर्ट पर रख दिया। सके अलावा, पीएलए ने जुलाई और नवंबर 1995 तक तटो पर हमला करने के लिए एम्फिबियस असाल्ट ड्रिल की। इस बीच 18 अगस्त को चीन ने परमाणु हथियारों का परीक्षण भी किया था। इन परीक्षणों के दौरान चीन की कई मिसाइलें ताइवान के मिसाइलें काऊशुंग और कीलुंग के बंदरगाह शहरों से सिर्फ 25 मील की दूरी पर गिरीं। हद तो तब हो गई जब 9 मार्च, 1996 को चीन की परमाणु हमला करने में सक्षम डोंग फेंग 15 बैलिस्टिक मिसाइल ने ताइवान के ऊपर से उड़ान भरते हुए उसके पूर्वी तट से 19 मील की दूरी पर लैंड किया।