बिहार में राजनैतिक परिवर्तन हो चुका है! बिहार में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड की राह अलग हो गई है। दोनों दलों की ओर से जो कल तक सोच-समझकर बयान दिए जा रहे थे आज उस पर कोई रोक नहीं है। नीतीश कुमार, अब बिहार में आरजेडी के साथ सरकार चलाएंगे और बीजेपी एक बार फिर से विपक्ष की भूमिका में होगी। दो साल पहले हुए बिहार चुनाव में जेडीयू से कहीं अधिक बीजेपी के पास विधायकों की संख्या थी लेकिन सीएम नीतीश कुमार ही बने। इन दो वर्षों में ऐसा नहीं कि टकराव की शुरुआत पिछले कुछ दिनों में हुई ऐसा पहले भी हुआ। कई ऐसे मौके भी आए जब हिंदुत्व के मुद्दे पर फ्रंटफुट पर नजर आने वाली बीजेपी बिहार में बैकफुट पर नजर आई। इसकी वजह नीतीश कुमार ही थे। हालांकि अब दोनों अलग हैं तो बीजेपी एक बार इस मुद्दे पर बिहार में आक्रामक नजर आएगी। इसकी शुरुआत केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के बयान से हो भी गई है।
बीजेपी की ओर से मिल गया संकेत
बीजेपी-जेडीयू गठबंधन टूटने के बाद केंद्रीय मंत्री और बिहार बीजेपी के बड़े नेता गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि अब बिहार में रण होगा। गिरिराज सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार तुष्टीकरण की पराकाष्ठा थे। नीतीश कुमार ने लालूजी से बढ़कर तुष्टीकरण किया। बिहार में शरिया कानून लागू करने की कोशिश हो रही है। अब तो एक करैला दूजे नीम चढ़ा वाली हालत हो गई है। अब तो रण होगा, इसे एक बयान के तौर पर सिर्फ नहीं देखना चाहिए। उग्र हिंदुत्व की राह पर बीजेपी नीतीश कुमार की वजह से आगे नहीं बढ़ पा रही थी। एनआरसी का मुद्दा, हनुमान चालीसा या लाउडस्पीकर विवाद, जेडीयू का बीजेपी के खिलाफ ही रुख रहा है। जाति जनगणना की बात हो या दूसरे ये मुद्दे नीतीश कुमार बीजेपी से अलग ही खड़े नजर आए। अब सरकार आरजेडी और जेडीयू की होगी। आरजेडी पर पहले से ही बीजेपी मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाते रही है और ऐसे वक्त में जब दोनों साथ होंगे तो हमला पहले से कहीं अधिक तेज होगा।
बिहार में पिछले दिनों पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) मॉड्यूल को लेकर बीजेपी और जेडीयू के बीच असहमति दिखी। बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी, प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और दूसरे नेताओं ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। वहीं बिहार के तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री जामा खान ने कहा कि पीएफआई को लेकर जांच जारी है और इसमें यह क्लियर नहीं कि वह राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल है या नहीं। इसलिए आप यह घोषणा नहीं कर सकते हैं कि संगठन अवैध है। खान ने एक कदम आगे बढ़कर कहा कि आरएसएस, बजरंग दल, पीएफआई जैसे कोई भी संगठन राजनीतिक दलों से जुड़े हैं तो इस लाइन पर भी जांच होनी चाहिए। कुछ राजनीतिक दलों के कुछ नेताओं की मांग पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।
पटना एसएसपी ने भी पीएफआई के ट्रेनिंग की तुलना आरएसएस से कर दी जिसके बाद बिहार में काफी राजनीतिक बवाल देखने को मिला। बीजेपी इन मामलों पर उस तरीके से सामने नहीं आ सकी वजह शायद नीतीश कुमार थे। ऐसे मुद्दे जहां बीजेपी अधिक हमलावर दिखती है लेकिन बिहार में ऐसा नहीं हो रहा था। अब पीएफआई समेत दूसरे मुद्दों को लेकर बीजेपी कहीं अधिक आक्रामक दिखेगी।
देश में जब लाउडस्पीकर मामले पर योगी सरकार की तारीफ हो रही थी उस वक्त नीतीश कुमार ने इस मुद्दे को बेकार और बकवास करार दे दिया। नीतीश कुमार जबसे लालू प्रसाद यादव के घर इफ्तार पार्टी में शामिल होकर लौटे थे उस वक्त से ही सियासी अटकलों का बाजार गर्म था। लाउडस्पीकर मुद्दे को लेकर यूपी सीएम की तारीफ और बिहार में बीजेपी नेताओं ने भी राज्य में योगी मॉडल लागू करने की मांग कर दी। इस मुद्दे पर नीतीश कुमार से पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि ‘इस पर क्या बात करें, ये फालतू की चीज है। उन्होंने कहा कि बिहार में हम किसी के भी धार्मिक मामलों में दखल नहीं देते हैं। कुछ लोग समझते हैं कि विवाद पैदा करना ही उनका काम है।
लाउडस्पीकर मामला हो या हनुमान चालीसा … बिहार में बीजेपी इन दो मुद्दों पर खामोश ही नजर आई। उनके नेताओं की ओर से मांग की गई लेकिन वह खानापूर्ति ही नजर आई। हालांकि आगे अब ऐसा बिहार की सियासत में बीजेपी की ओर से नहीं देखने को मिलेगा।
नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होने का जो फैसला किया है उसके पीछे एक बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि जेडीयू को कमजोर करने की कोशिश हो रही थी। हालांकि सिर्फ यही एक वजह नहीं है। नीतीश कुमार भी राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं और उनको भी यह पता था कि उनका वोट बैंक बीजेपी की ओर शिफ्ट हो रहा है। साथ ही उनको मुस्लिम वोट बैंक खिसकने का भी डर सता रहा था। हालांकि नीतीश कुमार के साथ रहने पर बीजेपी पर भी निशाना साधा जाता रहा है। इस कड़ी में पिछले दिनों शिवसेना की ओर से करारा हमला किया गया।
उद्धव ठाकरे को जब सत्ता गंवानी पड़ी और हिंदुत्व को लेकर उन पर सवाल हुए तब उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में नीतीश कुमार और बीजेपी के रिश्तों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि नीतीश कुमार ने नारा दिया था कि हमें संघमुक्त भारत का निर्माण करना है। क्या बीजेपी को उस वक्त की याद नहीं आती। किस मुंह से बीजेपी नीतीश के साथ ही सरकार बनाकर बैठी है। साल 2016 की बात है जब नीतीश कुमार ने एक कार्यक्रम में ‘संघ मुक्त’ भारत की बात कही थी और गैर भाजपा दलों के एकजुट होने की अपील की थी। हिंदुत्व को लेकर जब उद्धव पर आरोप लगे तब उन्होंने नीतीश के नाम का सहारा लेकर बीजेपी पर पलटवार किया।बिहार में दिन बदलने के साथ ही सियासत भी बदल गई है। आरजेडी-जेडीयू के साथ आने के बाद बीजेपी के सामने कई चुनौती होगी। कल तक बिहार से लेकर दिल्ली तक संभल-संभल कर बोलने वाले बीजेपी नेताओं के सुर वैसे नहीं रहेंगे और बीजेपी बिहार में हिंदुत्व की राह पर कहीं अधिक आक्रामक नजर आ सकती है।