क्या कभी आप सोच सकते हैं कि एक अंग्रेजी फौजी ऐसा भी था जो भारत की आजादी के सपने देखता था! मई 1942 में ब्रिटिश सेना का एक सिपाही बॉम्बे पहुंचता है। यहां आते ही वह सबसे पहले हिंदी सीखने के लिए किताब खोजता है। फिर पुणे की सड़कों पर भारतीयों की बदहाली देखकर लिखता है, ‘भारत में 175 साल के साम्राज्यवाद के बावजूद स्थितियां बेहद अपमानजनक हैं।’ कुछ महीने और गुजारने के बाद उसके शब्द और तीखे होने लगते हैं। वह इंग्लैंड में अपनी पत्नी को चिट्ठी लिखता है, ‘घर पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद में लोगों को कितना ही यकीन हो, 40 करोड़ रोज के अनुभव से जानते हैं कि असलियत क्या है।’
ब्रिटिश हुकूमत में भारतीयों पर जुल्म-ओ-सितम देखकर उसका कलेजा मुंह को आ जाता था। वह चित्रकार था और कविताएं भी लिखा करता था, उसका नाम था क्लाइव ब्रैनसन। ब्रैनसन ने करीब 80 साल पहले अपनी पत्नी नोरीन को भारत से कई चिट्ठियां भेजीं। 1944 में ब्रैनसन की मौत के बाद ‘भारत में ब्रिटिश सिपाही’ के नाम से एक किताब में वे चिट्ठियां छपीं। एक नजर, भारत के हिमायती रहे अंग्रेज सिपाही क्लाइव ब्रैनसन पर।
पुणे के गुलुंचे कैंप में ‘राशन कॉर्पोरल’ की भूमिका में ब्रैनसन रोज सामान खरीदने बाहर निकलते। आसपास के लोगों से दोस्ती गांठने और मराठी सीखने की कोशिश करते। उसी कैंप में ब्रैनसन को पुराने ब्रिटिश सैनिकों को भी सहना पड़ता जिनकी नजर में भारतीय दोयम दर्ज के लोग थे। ब्रैनसन अपनी चिट्ठियों में उन अंग्रेज सैनिकों को ‘ब्लडी इडियट्स’ बताते हैं। वह यहां तक लिखते हैं कि वह उन्हीं में से एक हैं, यह सोचकर ही वह शर्मिंदगी से भर जाते हैं।जब ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरू हुआ और कांग्रेस के नेता जेलों में ठूंसे जाने लगे तो दंगे शुरू हो गए। गुलुंचे में तैनात सैनिकों को दंगा कंट्रोल के लिए भेजा गया, लेकिन ब्रैनसन ने इसे ‘जनता के खिलाफ युद्ध’ करार दिया। वह भारतीय दंगाइयों के पक्ष में थे। एक चिट्ठी में वह लिखते हैं, ‘भले ही लोग जो कर रहे हैं, आप उससे सहमत नहीं हों लेकिन आप समझ सकते हैं कि वे ऐसा क्यों करते हैं।’
फरवरी 1943 का वक्त होगा। पूर्व की ओर से जापानी सेना भारत की तरफ बढ़ रही थी और देश में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ चल रहा था। भारत में गोरा साहेब होना ऐसे वक्त में बड़ा मुश्किल था लेकिन कर्नाटक के कारवार में तैनात क्लाइव ब्रैनसन दिल जीत रहे थे। वह एक दिन वहां के एक स्कूल जाते हैं। बच्चों से विलियम वड्सवर्थ की कविताओं पर सवाल करते हैं। एक बच्चा उनसे पूछता है, ‘ब्रिटेन ने भारत पर 150 साल राज किया। अगर भारत ने ब्रिटेन को जीता होता तो उसका शासन कितना लंबा चलता?’
किसी और अंग्रेज अधिकारी को इस सवाल पर गुस्सा आ जाता मगर क्लाइव ब्रैनसन को नहीं। ब्रैनसन ने अपनी पत्नी नोरीन को चिट्ठी में लिखा, ‘ये बच्चे बड़े तेज और दिमाग वाले हैं।’ यह पहली बार नहीं था जब ब्रैनसन ने भारतीयों के लिए अपने प्रेम को जाहिर किया हो। पुणे के गुलुंचे में वह एक महिला को सड़क बनाने के काम में लगा देखते हैं। फिर पत्नी को चिट्ठी में लिखते हैं, ‘भारत में महिला कामगारों का क्या सम्मान है जब उनसे सड़कें बनवाई जा रही हैं।’
जब कैंप में एक अंग्रेज सैनिक ब्रैनसन से कहता है कि वह चाय और फल बेचने वाले भारतीयों से दोस्ताना होकर अंग्रेजों की इज्जत मिट्टी में मिला रहा है तो उसका जवाब होता है, ‘जब गोरे साहब सस्ते वेश्यालयों में भारतीय महिलाओं के साथ रंगरेलियां मनाते हैं तब क्या अंग्रेजों का मान बढ़ जाता है?’ वह पत्नी को चिट्ठी में लिखते हैं, ‘यह युद्ध कब खत्म होगा? हमें सभ्य मित्रों की तरह भारत में वापसी करनी चाहिए।’ दूसरी चिट्ठी में लिखा कि ‘मैं जानता हूं कि मैं फिर से भारत आना चाहता हूं जहां मैं यह महसूस कर पाऊं कि यहां मानवता है।’क्लाइव ब्रैनसन वामपंथी विचारों से इत्तेफाक रखते थे। स्पेनिश सिविल वॉर में लड़ चुका यह सिपाही यातना कैंप में भी जुल्म सह चुका था। वह राजनीति की अच्छी समझ रखते थे। ब्रैनसन ने कांग्रेस नेताओं से आंदोलन खत्म करने की ब्रिटिश लेबर पार्टी की अपील का खूब मजाक उड़ाया। ‘कितने कमाल की बात है! क्या लेबर पार्टी को पता नहीं कि कांग्रेस के नेता जेल में हैं और इसी वजह से दंगे हो रहे हैं – बिना नेतृत्व के अराजकता तो होगी?’ जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल एक भाषण में ऐसा जताते हैं कि जापानियों की मदद को कांग्रेस दंगे करवा रही है तो ब्रैनसन ने लिखा, ‘भारत पर चर्चिल का भाषण कूड़ा था और कुछ नहीं।’