क्या युद्ध में नहीं दिया था संघ ने साथ? जानिए!

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विपक्ष के द्वारा संघ के ऊपर कई आरोप लगाए जा रहे हैं! देश ने 15 अगस्त के दिन आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाई। पूरे देश में आजादी के इस अमृत महोत्सव पर भारत के कई कोनों से खूबसूरत तस्वीर देखने को मिलीं। इसके 2 दिन पहले से शुरु हुई तिरंगा यात्रा ने सबको देशभक्ति के रंग में रंग दिया था। स्वतंत्रता दिवस से पहले लोगों का उत्साह देखते ही बनता था। हर साल हम भारत की आजादी की तारीख नजदीक आते ही इतिहास के उन पन्नों का जिक्र जरूर करते हैं जिसमें हमारे वीर सपूतों और स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी से लेकर उनके संघर्ष की दास्तान होती है। मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई से लेकर भगत सिंह, उधम सिंह, महात्मा गांधी, पंडित नेहरू से लेकर न जाने कितने असंख्य लोगों ने भारत माता के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। लेकिन इसके साथ भारत में एक ऐसा संगठन है जिसकी देशभक्ति पर हमेशा से सवाल उठता आया है, उससे हमेशा से एक सवाल पूछा गया कि आपका देश की आजादी में क्या योगदान था? अब तक तो आप यह समझ ही गए होंगे की हम किसकी बात कर रहे हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ की। वही RSS जिससे हमेशा यह पूछा जाता है कि आपने 52 सालों तक नागपुर मुख्यालय में तिरंगा क्यों नहीं फहराया। क्या वाकई में संघ ने देश की आजादी में हिस्सा नहीं लिया था? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिसका उत्तर हम आपको इस विशेष लेख में देंगे। कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों के सवाल पर RSS ने क्या तर्क दिए हैं। मशहूक पत्रकार और लेखक विजय त्रिवेदी की किताब ‘संघम शरणम गच्छामि’ के चैप्टर ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ में इसपर तफ्शील से बताया गया है।

डॉ. हेडगेवार का आजादी में योगदान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना साल 1925 में हुई थी। इसके संस्थापक थे डॉ. केशव बलराम हेडगेवार। हेडगेवार ने जब इस संस्था की स्थापना की तब भारत आजादी के लिए अपनी लड़ाई लड़ रहा था। संघ के जानकार बताते हैं कि डॉ. हेडगेवार स्वतंत्रता संग्राम में एक नहीं 2-2 बार जेल जा चुके हैं। भारत को पूर्ण आजादी की बात सबसे पहले कांग्रेस अधिवेशन में संघ के संस्थापक ने ही की थी। इतना ही नहीं उन्होंने देश की आजादी में भाग लेने के लिए अपना सरसंघचालक का पद भी छोड़ दिया था। पद छोड़ने का सीधा मतलब था कि स्वयंसेवक संगठन के तौर पर नहीं एक प्रेरणा के तौर पर इस आजादी के आंदोलन में हिस्सा लें। इस तरह से हजारों की संख्या में स्वयंसेवकों ने इसमें हिस्सा लिया और कई को तो बलिदान भी देना पड़ा। विरोधी इस तरक के साथ यह तो मान गए कि चलिए संघ से संस्थापक और पहले सरसंघचालक ने आजादी में हिस्सा लिया होगा लेकिन दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने जरूर लोगों को इसकी इजाजत नहीं दी। लेकिन ऐसे बहुत से मौके हैं जब गोलवलकर ने कहा कि स्वयंसेवक स्वतंत्रता के संग्राम में हिस्सा ले सकते हैं।

‘The RSS’ किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपध्याय ने बताया कि डॉ. हेडगेवार ने आजादी की लड़ाई में भाग भी लिया और जेल भी गए। हालांकि संगठन के तौर पर संघ स्वतंत्रता संग्राम में शामिल नहीं हुआ। इसपर नीलांजन ने कहा कि उस समय कई ऐसे संगठन थे जिन्होंने सीधे तौर पर आजादी में भाग नहीं लिया। इसका यह मतलब नहीं कि जो शामिल नहीं हुआ वह आजादी की लड़ाई के खिलाफ था। साल 1930 में लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस पार्टी ने पूर्ण स्वराज को स्वीकार कर लिया था। जैसे ही यह खबर संघ के तब के सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार को पता चली उन्होंने सभी शाखाओं को यह संदेश भिजवा दिया कि 1930 को संघ की सभी शाखाओं में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाए और स्वतंत्रता के अर्थ को स्पष्ट किया जाए।

संघ पर यह आरोप भी लगता आया है कि उसने भारत की आजादी में भाग न लेकर अंग्रेजों या कहें ब्रितानी हुकूमत का साथ दिया या उनके साथ रहा। इन आरोपों पर 1947-60 तक संघ के प्रचारक रहे देवेंद्र कश्यप ने कहा कि संगठन के रूप में भले आरएसएस ने स्वाधीनता संग्राम में भाग न लिया हो लेकिन यह कहना बिल्कुल गलत है कि संघ ने अंग्रेजों का साथ दिया या अंग्रेजों के साथ रहे। इसका कारण यह है कि RSS के संस्थापक डॉ. हेडगेवार शुरु से अंग्रेजों के खिलाफ थे। भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता किताब लिखने वाले सहगल बताते हैं कि संघ के स्वयंसेवकों ने अलग-अलग संगठनों और दलों की तरफ से आयोजित आंदोलनों और सत्याग्रह में बढ़-चढ़कर भाग लिया था। ऐसे में यह कहना कि संघ ने कुछ नहीं किया था तो यह एक मूर्खता है।

सहगल यह भी मानते हैं कि कुछ राजनेताओं ने अपने राजनीतिक हितों को पूरा करने के लिए संघ के स्वयंसेवकों के आजादी की लड़ाई में हिस्से को सिरे से खारिज कर दिया था। लेखक सहगल यह भी मानते हैं कि सबसे ज्यादा अन्याय हेडगेवार के साथ हुआ। जो व्यक्ति आखिरी सांस तक आजादी की लड़ाई के लिए जूझता रहा उसके बारे में न कोई आत्मकथा लिखी गई और न ही उसे अखबारों में छपवाने की कोशिश की गई।

1942 के आंदोलन में संघ की भूमिका पर गुरु गोलवलकर ने कहा था कि देश की स्वतंत्रता के लिए भाग लेने की स्वयंसेवकों की तीव्र इच्छा होना स्वाभाविक है। जिस कांग्रेस ने आंदोलन चलाने का निश्चय किया उन्होंने यह नहीं सोचा कि देश में और भी संस्थाएं हैं जो देश को अंग्रेजों के पाश से मुक्त कराना चाहती हैं। तो भी संघ के स्वयंसेवक पहले की तरह इसल आंदोलन में भी निजी हैसियत से कांग्रेस के नेतृत्व में भाग ले रहे हैं और लेते रहेंगे। साल 1947 सितंबर, यानि आजादी के एक महीने बाद महात्मा गांधी ने गुरु गोलवलकर से मिलने की इच्छा जाहिर की तो गोलवलकर ने तुरंत दिल्ली आकर बिड़ला भवन में गांधी से मुलाका की। गांधी संग संघ के किसी कार्यक्रम में जाकर स्वयंसेवकों को संबोधित ककना चाहते थे। 16 सिंतबर 1947 को बिड़ला भवन के पास भंगी कालोनी के एक मैदान में संघ के 500 से ज्यादा स्वयंसेवकों को संबोधित किया और संघ के काम की तरीफ की थी।

संघ के जानकार कहते हैं कि आजादी की लड़ाई में संघ के सक्रिय आंदोलन को नकारने वाले यह भूल जाते हैं कि RSS ने संगठन के रूप में अप्रत्यक्ष रूप से बहुत काम किया था। वे यह मानते हैं कि संघ के वैचारिक विरोधियों ने हर संभावित अकादमियों आदि में अपनी पैठ की और संघ के खिलाफ लिखा और आजादी का सेहरा एकमात्र कांग्रेस के सर बांध दिया जो अपूर्ण कथ्य है।