एक ऐसा एनकाउंटर जिसमें एसएसपी की आंखों को किया नम!

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आज आपको एक ऐसे एनकाउंटर की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसके बाद वहां के एसएसपी की आंखें नम हो गई! उत्तर प्रदेश में एक ऐसा गैंगस्टर पैदा हुआ था जो किस्से-कहानियों में आज भी जिंदा है। 90 के दशक के इस गैंगस्टर ने न सिर्फ अपराध की दुनिया को बदलकर रख दिया, बल्कि सरकार को भी पुलिसिंग के पारंपरिक तौर-तरीकों से आगे सोचने को मजबूर किया। इस गैंगस्टर का नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला। यूपी के इतिहास की पहली मोबाइल सीडीआर यानी कॉल डिटेल रिकॉर्ड इसी गैंगस्टर के सिमकार्ड की निकाली गई। इसी गैंगस्टर के चलते पहली बार यूपी पुलिस ने मोबाइल सर्विलांस शब्द सुना, जो आगे चलकर उसकी पहचान बन गया। ये वो दौर था, जब पुलिसिंग पूरी तरह से मुखबिरों पर टिकी होती थी। लेकिन लखनऊ में एक के बाद एक ताबड़तोड़ जघन्य हत्याओं ने सब-कुछ बदलकर रख दिया।

1997 में लखनऊ में एक के बाद एक तीन हत्याएं हो चुकी थीं। ये सभी घटनाएं दिनदहाड़े अंजाम दी गईं। पहले एक लॉटरी व्यवसायी की दिनदहाड़े हत्या, इसके बाद पूर्वांचल के माफिया वीरेंद्र शाही को एक बच्चों के स्कूल के पास गोलियाें से भून दिया गया। इसके बाद हुसैनगंज चौराहे पर स्थित एक दिलीप होटल के कमरा एके-47 की गोलियों से छलनी कर दिया गया। यहां मारे गए लोग भी पूर्वांचल के ही थे। प्रदेश की राजधानी में इन ताबड़तोड़ घटनाओं से तत्कालीन कल्याण सरकार दबाव में आ गई थी। पुलिस पर ये दबाव और भी बढ़ गया था। लखनऊ पुलिस सरगर्मी से इन घटनाओं के पैटर्न और इसके पीछे शख्स की तलाश में लग गई थी। वीरेंद्र शाही की हत्या के दौरान तो ज्यादा सुराग हाथ नहीं लग सके थे लेकिन दिलीप होटल की घटना के बाद पुलिस को पता चला कि गोरखपुर का कोई श्रीप्रकाश शुक्ला नाम का युवक है, जो इन घटनाओं को अंजाम दे रहा है।

लखनऊ में तत्कालीन सीओ कैसरबाग और अब रिटायर्ड आईपीएस राजेश पांडेय यूपी पुलिस उन चुनिंदा अफसरों में से एक हैं, जो सबसे पहले श्रीप्रकाश शुक्ला की खोज में लगे और तमाम चुनौतियों से जूझते हुए इस दुर्दांत अपराधी को उसके अंत तक पहुंचाया। राजेश पांडेय का अपना यूट्यूब चैनल भी है। उन्होंने यहां श्रीप्रकाश शुक्ला के गैंगस्टर बनने और आखिरकार एनकाउंटर में मारे जाने तक की जानकारियां विस्तार से साझा की हैं। वह बताते हैं कि लखनऊ में इन ताबड़तोड़ घटनाओं के बाद श्रीप्रकाश को लेकर वह लगातार जांच में जुटे हुए थे। सितंबर की एक शाम वह और तत्कालीन एसपी सिटी सत्येंद्र वीर सिंह के ऑफिस में हम बैठकर फोन नंबरों को खंगाल रहे थे। खाली समय में हम लोग यही करते थे। पहली बार हमें मोबाइल फोन की सीडीआर प्राप्त हुई थी। ऊषा फोन की ये सीडीआर थी, ये श्री प्रकाश शुक्ला के मोबाइल फोन नंबर की सीडीआर थी, जिससे उसने गोरखपुर फोन किया था। इसी बीच सत्येंद्र वीर सिंह ने कहा कि चलो आज भी जनपथ पर चलते हैं।

दरअसल पिछले चार दिनों से हम लोग जनपथ जा रहे थे। उस समय सूचना का कोई ऑनलाइन माध्यम नहीं था, मैनुअली मुखबिरों से पुलिस को सूचना मिलती थी। ये पता चला था कि श्री प्रकाश शुक्ला खुद दाढ़ी नहीं बना पाता है। वह हाइ प्रोफाइल सैलून में ही दाढ़ी बनवाने जाता है। मुखबिरों से मिली इस सूचना की जब पड़ताल की गई थी तो दो सैलून पता चले थे। एक ताज होटल में था, दूसरा हजरतगंज स्थित जनपथ मार्केट में था। जांच की गई तो ताज होटल में पता चला कि श्रीप्रकाश वहां सैलून में आता रहा है। वहां काफी अच्छी टिप भी देता था। इसी तरह का एक सैलून हजरतगंज में स्थित जनपथ मार्केट में था। इसका नाम था बाम्बे हेयर कटिंग सैलून। पुलिस को सूचना थी, इस लिहाज से लगातार सैलून पर नजर रखी जा रही थी।इसके बाद एक बार फिर उसी रात हम लोग घटनास्थल पर गए, तो कुछ लोगों से पूछताछ की। ज्यादातर लोग घर जा चुके थे। इस दौरान वहां दुकान से संबंधित कुछ लोगों से बात की गई, तो पता चला कि जब आप लोग उस बैग वाले आदमी से उलझे हुए थे, उसी समय ये दराेगा जी गैलरी से बहुत तेज से भागते हुए गए। इनके हाथ में पिस्टल थी और जोर-जोर से चिल्ला रहे थे। आगे कम से कम 3 लोग भाग रहे थे। इसी भागदौड़ में आरके सिंह जब पार्किंग तक पहुंचे तो यहां पार्किंग में तारों की बाड़ में फंस गए और गिर पड़े। इस दौरान भागने वाले आदमी सड़क पार कर दारुलशफा के गेट के भीतर जा चुके थे। आरके सिंह को गिरा देख वह तीनों वापस आए। इनके हाथ में जो पिस्टल थी, वो छिटक गई थी। यह उठने का प्रयास कर रहे थे। तभी एक ने इनकी पीठ पर पैर मारा और बाकी दोनों ने मिलकर पिस्टल छीन ली। इसके बाद एक शख्स ने इनकी कनपटी से सटाकर जितनी भी गोलियां पिस्टल की मैगजीन में थी, सारी चला दीं।

फिर उन्होंने पिस्टल की डोरी खींचकर तोड़ी और दारुलशफा से निकलकर फरार हो गए। राजेश पांडेय कहते हैं कि अचरज की बात थी कि दारुलशफा में अच्छी खासी भीड़ रहती है। तमाम जगह संत्री की तैनाती रहती है, वहां बालकनी से साफ दिखाई देता है लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया। हम लोग पूरी रात इस उलझन में रहे। नहीं पता चला कि कौन आदमी थे और कहां फरार हो गए? अगले दिन पोस्टमॉर्टम हाउस में गमगीन माहौल था। वहां पूरा पुलिस महकमा, पत्रकार और परिवार के लोग थे। इसी बीच पोस्टमॉर्टम हाउस में अंदर से एक आदमी बाहर आया, उसने बताया कि 9 गोलियां लगी हैं, कनपटी पर लगी हैं। उनकी जेब से एक हनुमान चालिसा, एक पर्स जिसमें कुछ रुपये और श्रीप्रकाश शुक्ला की एक फोटो मिली है।

इसके बाद पुलिसलाइन में उन्हें अंतिम सलामी दी गई। बेहद दारुणिक दृश्य था। इसी बीच सत्येंद्र वीर सिंह ने हमसे कहा कि सुबेश कुमार सिंह साहब सिर नीचे किए हुए हैं, हमें उनके पास चलना चाहिए। हम पहुंचे तो देखा सुबेश कुमार सिंह फफक-फफककर रो रहे हैं। बेहद कठोर हृदय के व्यक्ति जिनसे सामान्य रूप से किसी की सामान्य बात करने की हिम्मत नहीं पड़ती थी। उन्होंने हमसे कोई बात नहीं की और चुपचाप गाड़ी में बैठे और चले गए। हम और सत्येंद्र वीर सिंह साहब एक साथ बैठे और चले गए। दफ्तर पहुंचे तो सुबेश कुमार सिंह साहब भी गाड़ी से उतर रहे थे, हम लोग जैसे ही उनके करीब पहुंचे तो देखा कि उनकी आंखें लाल हो गई हैं। लेकिन उन्होंने कोई बात नहीं की। हम लोग वहां से चले आए।

हम वापस अपने काम में लग गए। सभी का मन बेहद खराब था। कुछ सूझ नहीं रहा था। एक दिन एसएसपी सुबेश कुमार सिंह साहब ने सभी को बुलाया और वहीं पर ये दृढ़ निश्चय किया गया कि आरके सिंह की मौत का बदला लिया जाएगा। हम तब तक चुपचाप नहीं बैठेंगे जब तक श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके गैंग को पकड़ नहीं कर लेते।