क्या है चीन के मंसूबे? क्या चाहता है दुनिया पर राज करना?

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चीन दिनों दिन अपने हथियारों के जखीरे में वृद्धि करता जा रहा है ! चीन पूरी दुनिया पर अपना कब्‍जा करने की मंशा तो बहुत पहले जता चुका था लेकिन अब वो धीरे-धीरे अपने लक्ष्‍य की तरफ बढ़ रहा है। अलग-अलग देशों में मिलिट्री बेस बनाकर चीन ये साबित करने में लगा है कि पूरी दुनिया में वो कितना ताकतवर है। अब उसकी नजरें अफ्रीका पर हैं। यहां की सारी स्थितियां उसके अनुकूल हैं। अमेरिका की मैगजीन फॉरेन पॉलिसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अब अफ्रीका के साथ 13 देशों में सैन्‍य अड्डे बनाने की तैयारी कर चुका है। पिछले कई सालों से उसने यहां पर मिलिट्री बेस को तैयार करने में जो धैर्य दिखाया है, वो अब उतनी ही तेजी से यहां काम करना चाहता है।

अमेरिकी रक्षा विभाग की तरफ से आई हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन, अफ्रीका समेत 13 देशों को अपने मिलिट्री बेस के तौर पर देख रहा है। इन देशों में अंगोला, केन्‍या, सेशेल्‍स, तंजानिया, कंबोडिया और यूएई शामिल हैं। पिछले एक साल में चीन के अधिकारी इस पर टिप्‍पणी करने से बचते आए हैं कि उनका देश यूएई और कंबोडिया में मिलिट्री बेस तैयार कर रहा है। अमेरिकी अखबार वॉल स्‍ट्रीट जनरल और वॉशिंगटन पोस्‍ट ने अपनी रिपोर्ट में चीन की इस योजना का खुलासा किया था। लेकिन अधिकारियों ने इस पर कोई भी टिप्‍पणी करने से इनकार कर दिया था। चीन का इस बात पर चुप्‍पी साध लेना ये बताने के लिए काफी है कि उसे अब चिंता सताने लगी है कि दुनिया इसे कैसे देख रही है। उसे चिंता है कि उसकी मिलिट्री के आधुनिकीकरण और इसकी प्रगति को दुनिया कैसे देखती है।

साल 2004 में तत्‍कालीन चीनी राष्‍ट्रपति हू जिंताओं ने उस एतिहासिक मिशन को सार्वजनिक किया था जिसके तहत पीएलए को ग्‍लोबल रोल के लिए रेडी करना था। उन्‍होंने कहा था कि पीएलए को इतना सक्षम बनाना है कि वो अलग-अलग सैन्‍य कार्यों को पूरा कर सके। इसके बाद साल 2011 में चीन ने साल 2011 में युद्ध की मार झेलते लीबिया से अपने 35,000 नागरिकों को निकाला। फिर साल 2013 में जब शी जिनपिंग राष्‍ट्रपति बने तो उन्‍होंने बेल्‍ट एंड रोड जैसे अरबों डॉलर वाले प्रोजेक्‍ट का ऐलान किया।साल 2015 में चीन ने पहली बार रक्षा से जुड़ा एक व्‍हाइट पेपर लॉन्‍च किया। इसमें पीएलए को पहली बार अहमियत दी गई थी। इसके बाद साल 2019 में जब व्‍हाइट पेपर आया तो इसमें कहा गया कि पीएलए सक्रियता के साथ विदेशों में संसाधनों को बढ़ा रही है। पीएलए के रिसर्चर्स ने लगातार इस बात पर रिसर्च की विदेशों में कौन-कौन सी सुविधाएं हैं जो चीन के पक्ष में हो सकती हैं।

साल 2017 में जब चीन ने अफ्रीका के जिबूती में अपना पहला मिलिट्री बेस शुरू किया तो चीन की चालबाजियों पर सबकी नजरें गईं। यह उसका पहला ऐसा मिलिट्री बेस था जो किसी दूसरे देश में था। पिछले साल इसने संयुक्‍त अरब अमीरात (UAE) में भारी निवेश के ऐलान के साथ ही एक और मिलिट्री बेस के बारे में इशारा कर दिया। साथ ही इसी साल कंबोडिया में भी उसने निवेश के बहाने इसी तरह के सैन्‍य अड्डे की तरफ संकेत दिया है।

पिछले वर्ष सेनेगल के डाकार में चीन-अफ्रीका सहयोग लक्ष्‍य 2015 नाम से एक डॉक्‍यूमेंट जारी किया गया था। इस डॉक्‍यूमेंट में चीन ने मिलिट्री बेस का कोई जिक्र नहीं किया था। साल 2018 में फिर चीन ने चीन-अफ्रीका रक्षा और सुरक्षा मंच की लॉन्चिंग की। चीन ने इसके जरिए ‘शांति’ पर जोर दिया और अगले एक साल तक इस दिशा में काम करने का वादा किया। अगर हम पश्चिमी अफ्रीका की तरफ देखें तो यहां के भूमध्यवर्ती गिनी में जो संसाधन हैं वो शायद जिबूती में भी नहीं हैं।अमेरिका अफ्रीका कमांड के मुखिया रहे जनरल स्‍टीफन टाउनसेंड ने कांग्रेस के सामने कहा था कि अटलांटिक में कोई भी बेस होने से चीन की सेना अमेरिकी जमीन के काफी करीब आ जाएगी।

कंबोडिया की तरह भूमध्यवर्ती गिनी भी निर्यात के लिए सर्वोत्‍तम है। यहां से 34 फीसदी निर्यात चीन को होता है। हाल के दिनों में गिनी पर चीनी कर्ज बढ़कर जीडीपी का 49.7 फीसदी हो गया है। इस जगह से पीएलए को अटलांटिक महासागर तक रास्‍ता मिल सकता है और साथ ही उसके फिक्‍स्‍ड विंग्‍स एयरक्राफ्ट को भी लैंडिंग के लिए एयरफील्‍ड आसानी से मिल सकती है। अमेरिका अफ्रीका कमांड के मुखिया रहे जनरल स्‍टीफन टाउनसेंड ने कांग्रेस के सामने कहा था कि अटलांटिक में कोई भी बेस होने से चीन की सेना अमेरिकी जमीन के काफी करीब आ जाएगी।