Saturday, February 8, 2025
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कैसे शुरू हुआ सिंधिया परिवार में विवाद? जानिए!

सिंधिया परिवार का विवाद काफी मशहूर है!25 जून, 1975- भारतीय राजनीति के लिए यह तारीख एक मील का पत्थर है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसी तारीख को देश में इमरजेंसी की घोषणा की थी। इस एक घटना ने देश की राजनीति को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया। कई राजनीतिज्ञों का करियर खत्म हो गया तो कई नए लोग देश की राजनीतिक पटल पर उभरकर आए। इमरजेंसी के खत्म होते-होते इंदिरा गांधी की अपनी लोकप्रियता धरातल पर पहुंच गई और 1977 में पहली बार केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। इमरजेंसी ने राजनीति में स्थापित कई परिवारों को भी हमेशा के लिए बदलकर रख दिया। ग्वालियर के सिंधिया परिवार के साथ भी ऐसा ही हुआ। इंदिरा गांधी के एक राजनीतिक फैसले ने इस परिवार में हमेशा के लिए बिखराव के बीज बो दिए जो आज तक बदस्तूर जारी है।

राजमाता के घर चल रही थी पार्टी

25 जून की उस तारीख को राजमाता विजयाराजे सिंधिया के दिल्ली स्थित आवास पर बड़ी पार्टी की तैयारी चल रही थी। उस दिन राजमाता की सबसे छोटी बेटी यशोधरा राजे सिंधिया का 21वां जन्मदिन था। शाम होने वाली थी और राजमाता के 37, राजपुर रोड स्थित बंगले पर मेहमानों के आने का सिलसिला शुरू हो चुका था। राजसी ठाठ-बाठ वाली इस पार्टी में खुद राजमाता तब तक नहीं पहुंची थीं। वे रोजाना की तरह अपनी शाम की पूजा में व्यस्त थीं। तभी उनकी फोन की घंटी बज उठी। फोन राजमाता के लिए था। फोन रिसीव करने वाले ने मैसेज छोड़ने को कहा लेकिन सामने वाला राजमाता से ही बात करने के लिए अड़ गया।

जल्दी-जल्दी में पूजा खत्म कर राजमाता फोन के पास पहुंची। लाइन पर दूसरी ओर मददलाल खुराना थे जो उस समय जनसंघ के राष्ट्रीय महासचिव थे और आगे चलकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। खुराना ने राजमाता से कहा कि जितनी जल्दी हो, अपना घर छोड़कर निकल जाएं। प्रधानमंत्री ने इमरजेंसी का ऐलान कर दिया है और विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा है। उनके घर भी पुलिस किसी भी समय पहुंच सकती है।

राजमाता ने सुना तो उनके पैरों तले की जमीन खिसक गई, लेकिन वे बेटी की जन्मदिन की खुशियों को कम नहीं करना चाहती थीं। बाहर यशोधरा राजे के दोस्त म्यूजिक की तरंगों पर थिरक रहे थे। खाने-पीने का दौर चल रहा था। राजमाता इस माहौल में खलल नहीं डालना चाहती थीं। पार्टी में शामिल होने की जगह वे उस रात जल्दी सोने चली गईं। इससे पहले उन्होंने अपने कपड़े एक बैग में पैक कर रख लिए, लेकिन उन्हें नींद नहीं आई। उन्होंने उस समय किसी को इस बारे में नहीं बताया। तब शायद उन्हें कोई अंदाजा नहीं था कि इस एक घटना से उनका पारिवारिक जीवन हमेशा के लिए बदल जाएगा।

अगली सुबह अखबार से उन्हें पता चला कि अधिकांश बड़े विपक्षी नेता गिरफ्तार हो चुके थे। उन्होंने पाटी नेताओं से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई उपलब्ध नहीं था। राजमाता ने ग्वालियर में अपने लोगों से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उनका फोन निष्प्राण हो चुका था। उनके आप्त सचिव सरदार आंग्रे कोलकाता में थे। उनसे भी राजमाता का संपर्क नहीं हो पाया। आंग्रे भेष बदलकर किसी तरह दिल्ली पहुंच गए और राजमाता को अंडरग्राउंड होने की सलाह दी। राजमाता अपना बंगला छोड़कर दोस्तों के घर चली गई। वो लगातार अपना ठिकाना बदल रही थीं। दोस्तों की सलाह पर उन्होंने वर्षों बाद रंगीन साड़ी पहनी। पुलिस उनकी तलाश में जगह-जगह दबिश दे रही थी और डर था कि सफेद साड़ी से उन्हें पहचानना आसान होगा।

पहली नजर में राजमाता को अपने बेटे की सलाह पसंद आई। उन्हें यह सोचकर भी अच्छा लगा कि बेटे को उनकी चिंता है। वे नेपाल जाने की तैयारी करने लगीं। वे नेपाल की सीमा से 25 कदम दूर थीं, जब उन्होंने अपना इरादा बदलने का फैसला किया। राजमाता ने सरेंडर करने का फैसला किया और ग्वालियर लौट आईं। अगले दिन उन्हें गिरफ्तार कर पहले पचमढ़ी और फिर दिल्ली के तिहार जेल में रखा गया।

कहा जाता है कि राजमाता के फैसले में बदलाव का बड़ा कारण सरदार आंग्रे जैसे विश्वस्त सहयोगियों की सलाह थी। आंग्रे ने उन्हें समझाया कि माधवराव सिंधिया डरपोक हैं। वे सरकार के डर से देश छोड़कर चले गए, लेकिन राजमाता को ऐसा नहीं करना चाहिए। उन्हें देश में रहकर सरकार के फैसले का प्रतिरोध करना चाहिए। दूसरी ओर, माधवराव यह सोचने लगे कि उनकी मां उनसे ज्यादा सरदार आंग्रे पर भरोसा करती हैं। उन 25 कदमों की दूरी ने मां-बेटे के रिश्तों में ऐसा अविश्वास पैदा कर दिया जो आगे चलकर सिंधिया परिवार में संपत्ति विवाद की शुरुआत का कारण बना।

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