पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा बिना बताए नेपाल चले गए थे! मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा केवल दो साल तक इस पद पर रहे। अपनी प्रशासनिक सख्ती के लिए मशहूर सखलेचा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एजेंडा पूरे जोर-शोर से लागू किया। इसके चलते तत्कालीन जनता पार्टी के समाजवादी सदस्यों का विरोध भी उन्हें झेलना पड़ा। उनका पूरा कार्यकाल ही विवादित रहा, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा उनकी नेपाल यात्रा की होती है। यह ऐसी यात्रा थी जिसकी कोई योजना नहीं थी। 44 साल बाद भी आज तक यह चर्चा होती है कि सखलेचा नेपाल क्यों गए थे और अपने साथ वो जो सूटकेस ले गए थे, उसमें क्या था। सखलेचा अपने परिवार के साथ गए थे। उनके हाथ में दो सूटकेस थे। इस सूटकेस के अंदर क्या था, यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है।सखलेचा की नेपाल यात्रा का सबसे बड़ा कारण शायद यह था कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय संबंधों की समझ नहीं थी। वे शायद नेपाल नहीं जाते और इस पर इतना विवाद भी नहीं होता, यदि उन दिनों सिक्किम का मौसम ठीक होता।
इस विवाद की शुरुआत कुछ ऐसे हुई थी कि उन दिनों सिक्किम में मध्य प्रदेश के एक अधिकारी आईजी के पद पर तैनात थे। वे अपने गृह प्रदेश आए और संयोग से उनकी मुलाकात मुख्यमंत्री सखलेचा से हुई। आईजी साहब ने सखलेचा को सपरिवार सिक्किम आने का न्यौता दे दिया। पुलिस अधिकारी ने सिक्किम के आवोहवा और मौसम की इतनी तारीफ की कि सखलेचा ने वहां जाने का प्लान बना लिया।
सखलेचा राज्य सरकार के विमान से सपरिवार सिक्किम के लिए चले और दिल्ली पहुंच गए। वहां पहुंचकर पता चला कि पूर्वोत्तर का मौसम बहुत खराब है और विमान को सिक्किम में उतरने की अनुमति नहीं मिल सकती। सखलेचा ने कार्यक्रम रद्द करने की बजाय काठमांडू जाने का प्लान बना लिया और 29 जून, 1978 को राज्य सरकार के विमान से ही वहां पहुंच गए।
सखलेचा के काठमांडू जाने की वजह एक पत्रकार थे, जो कुछ दिन पहले तक वहीं पदस्थ थे। सखलेचा जब दिल्ली पहुंचे तो उनकी मुलाकात पत्रकार से हुई। जब उनका सिक्किम जाने का प्रोग्राम गड़बड़ हुआ, तब संभवतः उन्हीं पत्रकार महोदय ने सखलेचा को काठमांडू जाने का आइडिया दिया। सखलेचा ने ज्यादा सोच-विचार किए बगैर वहां जाने का तय कर लिया। इसके बाद जो हुआ, वह आज तक कई मायनों में एक रहस्य बना हुआ है।
सखलेचा के काठमांडू पहुंचते ही राजनीतिक भूचाल मच गया। आनन-फानन में इसकी सूचना प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को दी गई। प्रधानमंत्री ने सखलेचा को तत्काल वापस लौटने के निर्देश दिए। वे तुरंत ही लौट भी गए, लेकिन तब तक अफवाहों का बाजार गर्म हो चुका था। सखलेचा नेपाल क्यों गए और अपने साथ क्या सामान ले गए, इसको लेकर तरह-तरह की खबरें सामने आने लगीं। कहा गया कि सखलेचा ने अपने संपर्कों के जरिए काठमांडू एयरपोर्ट पर सिक्योरिटी चेकिंग से बचने की खास परमिशन ली थी।
उनके काठमांडू जाने को लेकर विवाद इसलिए हुआ क्योंकि किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री की विदेश यात्रा से संबंधित कई औपचारिकताएं होती हैं। विदेश मंत्रालय की सहमति मिलने के बाद प्रधानमंत्री को इसकी अनुमति देनी होती है। भारत सरकार की अनुमति मिलने के बाद कस्टम्स की औपचारिकता पूरी करनी होती है। अपने देश के अलावा उस देश के कस्टम विभाग की भी अनुमति जरूरी होती है जहां की यात्रा करनी होती है। इस सबसे महत्वपूर्ण यह है कि राज्य सरकार के विमान देश की सीमा के बाहर नहीं ले जाए जा सकते। निजी काम के लिए तो बिलकुल नहीं।
प्रधानमंत्री का निर्देश मिलते ही सखलेचा भारत लौट गए, लेकिन यह किस्सा यहीं खत्म नहीं हुआ। कई अखबारों में खबर छपी कि सखलेचा अपने साथ सूटकेस में अफीम ले गए थे। इस विवाद ने ज्यादा तूल पकड़ा क्योंकि सखलेचा मंदसौर के रहने वाले थे जहां अफीम की खेती खूब प्रचलित है। ऐसी खबरें भी आईं कि सखलेचा सूटकेस में सोना या पैसे भरकर ले गए थे जिसे विदेशी बैंक में जमा किया गया।उनके काठमांडू जाने को लेकर विवाद इसलिए हुआ क्योंकि किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री की विदेश यात्रा से संबंधित कई औपचारिकताएं होती हैं। विदेश मंत्रालय की सहमति मिलने के बाद प्रधानमंत्री को इसकी अनुमति देनी होती है। भारत सरकार की अनुमति मिलने के बाद कस्टम्स की औपचारिकता पूरी करनी होती है। अपने देश के अलावा उस देश के कस्टम विभाग की भी अनुमति जरूरी होती है जहां की यात्रा करनी होती है। इस सबसे महत्वपूर्ण यह है कि राज्य सरकार के विमान देश की सीमा के बाहर नहीं ले जाए जा सकते। निजी काम के लिए तो बिलकुल नहीं। इन खबरों की सच्चाई कभी सामने नहीं आ सकी, क्योंकि जिस बैंक का नाम अखबारों में छपा, उस नाम का कोई बैंक ही नेपाल में नहीं था।