एक समय ऐसा था जब राजमाता विजयाराजे सिंधिया की ऐसी रणनीति काम आई थी जिसने कांग्रेस को अस्त-व्यस्त कर दिया था! बिहार में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन हो गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बने रहे, लेकिन सत्ता में उनके साझीदार बदल गए। लंबे समय तक बीजेपी के सहयोग से सरकार चलाने के बाद नीतीश ने अचानक एनडीए से अलग होने का ऐलान कर दिया और राज्यपाल से मुलाकात कर राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। यह सब इतनी सफाई से हुआ कि बीजेपी के रणनीतिकार मुंह ताकते रह गए। नीतीश ने वजह ये बताई कि बीजेपी उनकी पार्टी को तोड़ने की कोशिश कर रही थी। इसमें चाहे जितनी भी सच्चाई हो, लेकिन महाराष्ट्र से लेकर गोवा, मणिपुर और अन्य कई राज्यों में बीजेपी पर इस तरह के आरोप लगते रहे हैं। यदि बिहार में इस तरह की कोई कोशिश हो भी रही थी तो बीजेपी के अमलीजामा पहनाने से पहले ही नीतीश सतर्क हो गए। उन्होंने इतनी सफाई से सत्ता परिवर्तन को अंजाम दिया कि बीजेपी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई। करीब 55 साल पहले मध्य प्रदेश में भी ऐसी ही एक घटना हुई थी। तब राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने ऐसी रणनीति तैयार की थी कि सत्तारूढ कांग्रेस के मठाधीशों को कानोंकान खबर तक नहीं हुई। राजमाता की रणनीति और संसाधनों की मदद से ही मध्य प्रदेश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार वजूद में आई थी।
बजट पर चल रही थी चर्चा
साल, 1967 में एमपी विधानसभा में बजट पर चर्चा चल रही थी। दो-तीन दिन तक बहस के बाद सामान्य बजट पारित हो गया। तब मांगों पर चर्चा शुरू हुई। शिक्षा विभाग की मांगों पर बहस के बाद तत्कालीन शिक्षा मंत्री परमानंद भाई पटेल ने लंबा भाषण दिया। फिर इस पर मतदान की बारी आई। तब पता चला कि कांग्रेस के 36 विधायक विधानसभा से गायब हैं। द्वारिका प्रसाद मिश्र मुख्यमंत्री थे। काफी खोजबीन के बाद भी कांग्रेस विधायकों का कुछ पता नहीं चला तो उन्होंने खुफिया विभाग को एक्टिव किया। तब जानकारी मिली कि सभी गायब विधायक राजमाता सिंधिया के संरक्षण में हैं। यह भी पता चला कि राजमाता कांग्रेस की सरकार गिराने का पूरा प्लान तैयार कर चुकी हैं।
कांग्रेस के रणनीतिकार इस जानकारी से भौंचक्के रह गए। गायब हुए विधायकों में बृजलाल वर्मा और चंद्रप्रकाश तिवारी भी शामिल थे जो एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री से मिले थे और दलबदल की किसी संभावना से इनकार किया था। अगले ही दिन 36 विधायक लापता हो गए और राजमाता के संरक्षण में सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाए जा चुके थे।
राजमाता सिंधिया ने सभी बागी विधायकों को इंपीरियल सेबरे होटल में रात्रि भोज दिया। उस समय यह भोपाल का सबसे बड़ा होटल था और राजमाता के निवास के बगल में था। इसी होटल में अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी की शादी हुई हुई थी। इसी होटल में ज्यादा से ज्यादा विधायकों को तोड़ने की रणनीति पर देर रात तक चर्चा होती रही। रात में उन्हें भोपाल में ही गोपनीय स्थान पर रखा गया। अगली सुबह सभी विधायकों को बसों में भरकर ग्वालियर ले जाया गया। सिंधिया के जयविलास पैलेस में उनके लिए दिन के भोजन का इंतजाम था। इसके बाद उन्हें बस से ही दिल्ली ले जाया गया। दिल्ली में राजमाता ने उनकी मुलाकात मोरारजी देसाई और यशवंतराव चव्हाण से कराई जो द्वारिका प्रसाद मिश्र के धुर विरोधी थे। उन्हें वहां फाइव स्टार होटलों में ठहराया गया। इस बीच कांग्रेस के लोग विधायकों से संपर्क करने की कोशिश में लगे रहे। इसे देखते हुए राजमाता ने उनकी सुरक्षा के लिए तमाम इंतजाम किए थे। बसों के आगे राजमाता की एस्कॉर्ट गाड़ियां लगातार चल रही थीं।
सत्ता पलट के इस ऑपरेशन में डाकुओं के गिरोह भी राजमाता की मदद कर रहे थे। जब इन विधायकों को वापस भोपाल लाया गया और विधायक विश्राम गृह में ठहराया गया तो कई डकैत गिरोह और उनके सरगना भी वहां मौजूद थे। विधानसभा में शक्ति परीक्षण से एक दिन पहले मुख्यमंत्री मिश्र ने इन विधायकों से संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। राजमाता की रणनीति को अमलीजामा पहनाने में अहम भूमिका निभा रहे गोविंद नारायण सिंह को इसका पता चल गया। उन्होंने रात में विधायकों के रुकने का इंतजाम विधानसभा के स्पीकर काशीनाथ पांडे के बंगले में कर दिया। स्पीकर के निवास में इतने लोगों के एक साथ रुकने की व्यवस्था नहीं थी। सभी विधायक रात भर बगीचे में रुके और घास पर सोए। गोविंद नारायण सिंह रात भर जागते रहे। वे भी बगीचे में ही रहे और अपनी बंदूक हाथ में लेकर विधायकों की निगरानी करते रहे।
मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव रहे राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के मुताबिक मिश्र को विधायकों के विद्रोह का आभास था, लेकिन वे ओवर कॉन्फिडेंस में रह गए। विद्रोह के एक दिन पहले अर्जुन सिंह रोज की तरह ब्रिज खेलने मुख्यमंत्री निवास पहुंचे थे। तब उन्होंने मिश्र से विधायकों के पालाबदल की आशंका जताई थी, लेकिन मुख्यमंत्री ने उनकी बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया। दरअसल, मिश्र को दलबदल का सबसे ज्यादा शक अर्जुन सिंह पर ही था। इसके पीछे भी गोविंद नारायण सिंह का दिमाग काम कर रहा था। दरअसल, गोविंद नारायण सिंह गृह मंत्री रह चुके थे। पुलिस के साथ खुफिया विभाग उनके अधीन रहा था। खुफिया विभाग मिश्र तक वही सूचनाएं भेजता, जो गोविंद नारायण सिंह चाहते। खुफिया विभाग मिश्र को बताता रहा कि राजमाता के साथ मिलकर अर्जुन सिंह सरकार गिराने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि यह काम खुद गोविंद नारायण सिंह कर रहे थे। अगले दिन द्वारिका प्रसाद मिश्र को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। कांग्रेस के बागियों के साथ जनसंघ और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के विधायकों ने मिलकर सयुक्त विधायक दल का गठन किया। इसकी नेता राजमाता सिंधिया बनीं, लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए गोविंद नारायण सिंह को नामित कर दिया।