लगातार 10 साल मुख्यमंत्री रहने वाले दिग्विजय सिंह अपनी कार्यशैली के लिए काफी फेमस है! 1993 से 2003 तक लगातार 10 साल मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह की अपनी अलग कार्यशैली है। उनके बारे में कहा जाता है कि वे किसी से दुराव नहीं रखते, न ही बदले की राजनीति करते हैं, लेकिन अपने विरोधियों को इतनी ढील भी नहीं देते कि वे उनका कुछ बुरा कर सकें । एक बार किसी से मिल लिए तो उसे नाम से याद रखते हैं। कार्यकर्ताओं के सुख दुख में उनके पास पहुंच जाते हैं। यही सब कारण हैं कि मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटने के करीब 20 साल बाद भी प्रदेश कांग्रेस के संगठन में उनकी पकड़ को चुनौती देने वाला कोई नहीं है।मुख्यमंत्री के रूप में उनके 10 साल के कार्यकाल के बारे में कई किस्से आज भी मशहूर हैं। लोग उनके काम करने की शैली को आज भी याद करते हैं। समर्थक हों या विरोधी, दिग्विजय कभी किसी को निराश नहीं करते थे। कोई किसी काम के लिए आए तो वे कभी मना नहीं करते थे। वे पूरे ध्यान से उसकी बात सुनते थे और जताते ऐसा थे मानो तत्काल ही उसकी अर्जी मंजूर हो जाएगी, लेकिन काम उसी का होता था जिसे वो चाहते थे।कहा जाता है कि मुख्यमंत्री रहते दिग्विजय जिसके कंधे पर हाथ रख देते तो उसका बेड़ा गर्क होना तय था। यह स्पष्ट संकेत होता था कि वह जिस काम के लिए आया है, वह कभी नहीं होगा। कंधे पर हाथ रख कर वे कुछ ठोस कदम उठाने के बजाय केवल सहानुभूति प्रकट करते थे।
दिग्विजय ने आवेदनों पर नोटिंग का रहस्यपूर्ण पैटर्न बना रखा था, जिसे किसी के लिए समझना बेहद मुश्किल था। वे आवेदनों पर एक्स-1, एक्स-2 जैसे नोट लिखते थे। इसी में काम होने की संभावना छिपी होती थी। एक्स-1 लिख दिया तो काम होना तय था। एक्स-1 का मतलब था सचिव नंबर-1। दिग्विजय के कार्यकाल में सरदार अमर सिंह सचिव नंबर-1 थे। आईएएस अधिकारी अमर सिंह की खासियत थी कि वे मुश्किल से मुश्किल काम को भी संभव बना देते थे। मुख्यमंत्री कार्यालय में उनका ऐसा प्रभाव था कि कई मंत्री भी उनके पैर छूते थे।
दिग्विजय आवेदकों को कभी सामने से निराश नहीं करते थे। किसी भी आवेदन पर नोट लिख देना औक कई बार आवेदक को ही दे देना, यह उनकी खास शैली थी। यह कुछ देर के लिए आवेदक को संतुष्ट करने का उनका तरीका था, लेकिन काम होने की संभावना से इसका कोई लेना-देना नहीं था।
मुंह में कलम का ढक्कन फंसाकर पत्रों और आवेदनों पर नोटिंग लिखना दिग्विजय की चिरपरिचित शैली है। वे हवाई जहाज से यात्रा कर रहे हों या जनसभा में मंच पर हों, दिग्विजय लगातार आए हुए आवेदनों को पढ़ते रहते हैं। हजारों की भीड़ में भी प्राइवेट हो जाना उनके लिए आम बात है। ऐसा करके वे दूसरों को अपने नजदीक आने से रोक लेते हैं तो दूसरी ओर जिससे मिलने की इच्छा हो, उसे बुला भी लेते हैं।आईएएस अधिकारी अमर सिंह की खासियत थी कि वे मुश्किल से मुश्किल काम को भी संभव बना देते थे। मुख्यमंत्री कार्यालय में उनका ऐसा प्रभाव था कि कई मंत्री भी उनके पैर छूते थे।
दिग्विजय आवेदकों को कभी सामने से निराश नहीं करते थे। किसी भी आवेदन पर नोट लिख देना औक कई बार आवेदक को ही दे देना, यह उनकी खास शैली थी। यह कुछ देर के लिए आवेदक को संतुष्ट करने का उनका तरीका था, लेकिन काम होने की संभावना से इसका कोई लेना-देना नहीं था।
मुंह में कलम का ढक्कन फंसाकर पत्रों और आवेदनों पर नोटिंग लिखना दिग्विजय की चिरपरिचित शैली है।मुंह में कलम का ढक्कन फंसाकर पत्रों और आवेदनों पर नोटिंग लिखना दिग्विजय की चिरपरिचित शैली है। वे हवाई जहाज से यात्रा कर रहे हों या जनसभा में मंच पर हों, दिग्विजय लगातार आए हुए आवेदनों को पढ़ते रहते हैं। हजारों की भीड़ में भी प्राइवेट हो जाना उनके लिए आम बात है। ऐसा करके वे दूसरों को अपने नजदीक आने से रोक लेते हैं तो दूसरी ओर जिससे मिलने की इच्छा हो, उसे बुला भी लेते हैं।आईएएस अधिकारी अमर सिंह की खासियत थी कि वे मुश्किल से मुश्किल काम को भी संभव बना देते थे। मुख्यमंत्री कार्यालय में उनका ऐसा प्रभाव था कि कई मंत्री भी उनके पैर छूते थे। वे हवाई जहाज से यात्रा कर रहे हों या जनसभा में मंच पर हों, दिग्विजय लगातार आए हुए आवेदनों को पढ़ते रहते हैं। हजारों की भीड़ में भी प्राइवेट हो जाना उनके लिए आम बात है। ऐसा करके वे दूसरों को अपने नजदीक आने से रोक लेते हैं तो दूसरी ओर जिससे मिलने की इच्छा हो, उसे बुला भी लेते हैं।