पाकिस्तान हमारे भारत में स्थित मुंद्रा पोर्ट से बहुत जलन खाता है! पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है ग्वादर बंदरगाह और यह वह हिस्सा है जहां पर प्राकृतिक गैस और तेल का भंडार सबसे ज्यादा है। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के तहत इसे चीन ने काफी सोच-समझकर अपने लिए चुना था। पाकिस्तान इस जगह से सबसे ज्यादा तेल और गैस का उत्पादन करता है। ग्वादर अभी तक न तो चीन के लिए फायदे का सौदा बन पाया है और न ही पाकिस्तान के लिए। अब इस ‘सफेद हाथी’ को लोग भारत के मुंद्रा पोर्ट के बराबर रखकर तौलने लगे हैं। पाकिस्तान में कई विशेषज्ञों का मानना है कि ग्वादर को अगर मुंद्रा की तरह डील किया जाता तो शायद इससे काफी मुनाफा कमाया जा सकता था। भारत के गुजरात राज्य में स्थित मुंद्रा पोर्ट की कमान अडानी ग्रुप के पास है और इस समय यह देश का व्यस्ततम बंदरगाह है।
पाकिस्तान के कई विशेषज्ञ मुंद्रा को एक ऐसी केस स्टडी के तौर पर देखते हैं जिसके यह सीखा जा सकता है किस तरह से निजी सेक्टर की पूंजी को रणनीतिक तौर पर अर्थव्यवस्था के लक्ष्यों के लिए प्रयोग किया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जो पाकिस्तानी ग्वादर को सफलता के नए आयामों पर देखना चाहते हैं उन्हें मुंद्रा की सफलता से सीखना होगा।उन्हीं रणनीतियों को अपनाना होगा। कच्छ की खाड़ी में स्थित मुंद्रा, भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह है। यह बंदरगाह एक साल में 150 लाख टन कार्गो को हैंडल करता है। साल 1998 में इसका संचालन शुरू हुआ था। इसे अडानी पोर्ट्स और सेज लिमिटेड की तरफ से ऑपरेट किया जाता है जिसके सीईओ गौतम अडानी के बेट करन हैं।
पाकिस्तानी मीडिया ने लिखा है कि मुंद्रा को आगे बढ़ाने में कई ऐसी रणनीतियों का योगदान है जिनसे पाक नीतिकार भी काफी कुछ सीखा जा सकता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने इस बंदरगाह को डेवलप करने में खासी भूमिका निभाई। मुंद्रा पोर्ट की शुरुआत साल 1994 में उस समय हुई जब गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (GMB) ने पकड़ी गई नाव के लिए मंजूरी दी थी।चार साल बाद 1998 में इसके पहले टर्मिनल ने गुजरात अडानी पोर्ट लिमिटेड के तहत काम करना शुरू किया और साल 1999 के अंत तक संचालन काफी बढ़ गया था। फिर यहां आर्थिक संभावनाओं को समझते हुए प्राइवेट रेलवे लाइन का काम साल 2001 में पूरा किया गया। साल 2002 के अंत तक इंडियन रेलवे के साथ इस लाइन को जोड़ दिया गया। फिर यहां से कार्गो पूरे देश में भेजा जाने लगा।
साल 2002 तक यह बंदरगाह क्रूड ऑयल की खेप को हैंडल करने लगा था। साल 2003 के अंत तक यह एक स्पेशल इकोनॉमिक जोन (SEZ) बन गया। आज मुंद्रा पोर्ट के पास दो दर्जन से ज्यादा वेयरहाउस हैं जिनकी क्षमता 137000 स्क्वॉयर मीटर है। यहां पर गेहूं, चावल, फर्टिलाइजर और दूसरे सामानों को लादा और उतारा जाता है।
साथ ही यहां पर गेहूं और चावल की सफाई के लिए भी सुविधा मौजूद है। मुंद्रा बंदरगाह दो वजहों से सफल हो सका है। पाक विशेषज्ञों की मानें तो नीति निर्धारित करने वाले लोगों ने लगातार ऐसी नीतियों को बनाया जो इसके डेवलपमेंट के लिए जरूरी थीं। साथ ही उन्होंने यह पहचाना कि कैसे प्राइवेट सेक्टर आर्थिक गतिविधियों में मददगार साबित हो सकता है।
पाकिस्तान में विशेषज्ञों की मानें तो ग्वादर को बड़ा बंदरगाह बनाने की ख्वाहिश तो सबने पाल ली है लेकिन इसके दो मूलभूत सिद्धांतों को ही नजरअंदाज कर दिया गया है। सबसे बड़ी बात है कि संसाधनों का फायदा यहां के निवासियों को ही नहीं मिल पा रहा है। साल 2002 में चीन ने ग्वादर पोर्ट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट शुरुआत की थी। प्रोजेक्ट आगे बढ़ता गया और बलूचिस्तान के ग्वादर में रहने वाले लोगों को कोई सुविधा नहीं मिली। यहां पर आए दिन स्थानीय लोग विरोध प्रदर्शन करने लगे। इस बंदरगाह की वजह से यहां रहने वाले लोगों के लिए पीने के पानी की सुविधा को सीमित कर दिया गया था।
आए दिन होते प्रदर्शनों की वजह से यह बात साबित हुई कि इस हिस्से पर जहां कई आर्थिक मौके मौजूद थे तो वहीं सरकारी निवेश एक दूर का सपना बनकर रह गया। पाकिस्तानी विशेषज्ञों ने इस पूरे हालात पर सवाल उठाए। उन्होंने सवाल किया कि क्या इतना बड़ा बंदरगाह जो यहां के लोगों को ही फायदा नहीं पहुंचा सकता है, क्या वह वाकई आर्थिक अवसर पैदा कर सकता है और क्या वाकई यह बंदरगाह पाकिस्तान और यहां के नागरिकों के लिए फायदेमंद है?
ग्वादर बंदरगाह पर विकास के एजेंडे को स्थानीय अर्थव्यवस्था को नजरअंदाज करके आगे बढ़ाया जा रहा है। उदाहरण के लिए ग्वादर में मछली पालन सदियों से मुख्य अर्थव्यवस्था का हिस्सा रहा है। इसके बावजूद यहां पर इस इंडस्ट्री को विकसित करने के लिए ज्यादा प्रयास नहीं किए गए हैं। अगर ऐसा हो पाता तो यहां पर स्थानीय लोगों को अच्छा खासा रोजगार मिलता और सी-फूड की इंडस्ट्रीज तेजी से आगे बढ़ पाती। इसकी वजह से यहां पर दूसरे उद्योग भी विकसित हो सकते थे।इसके अलावा बलूचिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता ने भी ग्वादर को चौपट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके अलावा आजकल यहां पर मौसम भी खराब बना हुआ है। बारिश के बाद बाढ़ ने हालात बेकाबू कर दिए हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक गुजरात के मुंद्रा पोर्ट का विकास अगर हुआ है तो उसकी सबसे बड़ी वजह है कि इसे राज्य के विकास के साथ आगे बढ़ाया गया। मुंद्रा को पाक विशेषज्ञ गुजरात के विशाल डेवलपमेंट का आदर्श मॉडल तक करार देते हैं जिसे ग्लोबल अर्थव्यवस्था के साथ मिलाकर आगे बढ़ाया गया है। जबकि ग्वादर बंदरगाह के साथ यही बात गायब नजर आती है।