Saturday, February 8, 2025
HomeIndian Newsक्या केशव प्रसाद मौर्य नहीं बन सकते मुख्यमंत्री?

क्या केशव प्रसाद मौर्य नहीं बन सकते मुख्यमंत्री?

केशव प्रसाद मौर्य मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन औपचारिकताओं के चक्कर में वह उप मुख्यमंत्री बनकर ही रह गए! मैं पिछड़े वर्ग से आता हूं, मैं कमजोर हूं, इसलिए मुझपर हमला किया जाता है।’ पढ़ने में यह एक लाइन है। लेकिन खास इसलिए हो जाती है क्योंकि बोलने वाला शख्स उत्तर प्रदेश की राजनीति में नंबर-2 की हैसियत रखने वाला उपमुख्यमंत्री है। नाम है- केशव प्रसाद मौर्य। यूपी की राजनीतिक शतरंज की बिसात का एक ऐसा मोहरा, जो सीएम की कुर्सी का सपना देखा करता है। वो मोहरा, जिसे अखिलेश यादव एक कमजोर नस समझकर सत्तारूढ़ बीजेपी को ढहाने की उम्मीद पाले रहते हैं। एक सवाल के जवाब में दिए गए केशव मौर्य के इस बयान से बहुत सारे सवाल पैदा होते हैं। केशव उत्तर प्रदेश की सियासत के समीकरण का पूरा सार समझा जाते हैं। वो उत्तर प्रदेश, जहां की राजनीति में जाति है कि जाती नहीं। सियासी गुणा-भाग, नफा-नुकसान सारी चीजें जिस बात से तय हुआ करती हैं- वह है जाति।

दरअसल, अभी तक पिछड़ा वर्ग में यादवों को ही ओबीसी माना जाता था। गैर यादव ओबीसी जातियों को राजनीतिक रूप से तवज्जो मिलती नहीं थी। आंकड़ों पर नजर डालें तो 12 प्रतिशत यादव, 40 प्रतिशत गैर यादव ओबीसी, 17 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। अखिलेश यादव जब 2012 में सीएम की कुर्सी पर बैठे तब भी यादवों के साथ मुसलमान वोटबैंक 29 फीसदी के साथ मुख्य ताकत बना था। अखिलेश और समाजवादी दल पर आरोप लगता रहा कि वे केवल 30 प्रतिशत की राजनीति ही कर रहे हैं, जबकि 40 फीसदी को हाशिए पर रखा गया।

केशव का खुद को कमजोर बताने संबंधी बयान अखिलेश ही नहीं, बल्कि पूरे सामाजिक सिस्टम पर तंज है। यूपी की राजनीति में हमेशा गैर यादव ओबीसी को हाशिए पर रखा गया। उत्तर प्रदेश में तो हालत यह रहा कि कल्याण सिंह को छोड़कर बीजेपी के पास पिछड़ी बिरादरी का नेता नहीं मिला। साल 2014 में नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय फलक पर उभार के बाद यूपी में भी पिछड़े वर्ग के नेता की तलाश शुरू हुई, जिसका मजबूत किरदार केशव प्रसाद मौर्य के रूप में सामने आया। पार्टी ने उन पर भरोसा जताया।

2014 में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश के किले पर भगवा फहराना था। यादव के अलावा अन्य पिछड़ी जातियों को साधने की रणनीति पर अमल किया गया। केशव प्रसाद मौर्य के हाथों में कप्तानी सौंपी गई, उन्हें बीजेपी का यूपी प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में केशव प्रसाद मौर्य के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर बैठी।

देश की आजादी के बाद से उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलने का करीब 7 दशकों का दर्द छलककर बाहर आ गया। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में शानदार जीत दर्ज की। अब केशव मौर्य की अगुवाई में मिली जीत के बाद हवा चली कि पूर्ण बहुमत पर केशव को सीएम बनाया जाएगा। लेकिन ऐतिहासिक बहुमत मिलने के बावजूद हैरतअंगेज करने वाला फैसला लेते हुए हिंदुत्व के ब्रैंड एम्बेसडर योगी आदित्यनाथ को सिंहासन पर विराजमान किया गया। केशव के मुंह से जैसे निवाला छिन गया हो। उन्हें उपमुख्यमंत्री की कुर्सी से संतोष करना पड़ा।

2017 से 2022 तक सीएम योगी और केशव मौर्य के बीच अनबन की तमाम खबरें सामने आईं। 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी केशव प्रसाद मौर्य ने सीएम की कुर्सी का सपना देख लिया। हालांकि वह विधानसभा चुनाव में पल्लवी पटेल के हाथों सिराथू सीट से हार गए। केशव को बड़ा झटका लगा। जिस सीएम पद की कुर्सी के लिए वह लालायित थे, उस पर दावा कमजोर पड़ गया।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मौर्य, कुशवाहा जैसी पिछड़ी बिरादरी की पूछ बढ़ गई। मंडल कमीशन के बाद भी ओबीसी के नाम पर यादव बिरादरी ही आगे रही। गैर यादवों को सत्ता में उचित भागीदारी नहीं दी गई। मायावती ने दलित और मुलायम ने यादव और मुस्लिम गठबंधन करके चुनावी बिसात बिछाई। गैर यादव ओबीसी जातियों को मेनस्ट्रीम में लाने का काम नरेंद्र मोदी ने किया।

अखिलेश यादव और सपा के लिए अब केशव मौर्य ही सॉफ्ट टार्गेट नजर आते हैं। अखिलेश की कोशिश मौर्य के बहाने योगी सरकार को अस्थिर करना है, जिससे लोगों में बीजेपी के प्रति दूरी का भाव जगे। अखिलेश भी यह बात समझते हैं कि केशव की वजह से ओबीसी जातियों का बड़ा आधार बीजेपी के साथ जुड़ा हुआ है। वह खुल्लम-खुल्ला ऑफर भी कर चुके हैं कि अगर केशव बीजेपी के 100 विधायकों को लेकर आ जाएं तो सपा उन्हें सपॉर्ट करके सीएम की कुर्सी पर बैठा देगी।

अखिलेश के बयान पर केशव मौर्य ने भले ही जवाबी पलटवार करते हुए उन्हें अपना परिवार बचाने की बात कही। साथ ही केशव ने सदन में अखिलेश के व्यवहार का जिक्र भी किया। हालांकि खुद को कमजोर और पिछड़ा करार देते हुए केशव ने यूपी के सियासी गलियारों में होने वाली उस चर्चा को बल दिया, जो वोट बैंक से जुड़ी है, जो अखिलेश और योगी से जुड़ी है। और सबसे बड़ी बात खुद केशव मौर्य की महत्वकांक्षा से जुड़ी है।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments