अखिलेश यादव नीतीश कुमार के साथ मिलकर अब बीजेपी को चुनौती देने के चक्कर में हैं! बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से केंद्र की राजनीति में नरेंद्र मोदी सरकार को चुनौती देने की कोशिश परवान चढ़ती नजर आ रही है। बीते दिनों राजधानी दिल्ली में नीतीश कुमार ने मुलायम सिंह यादव का हालचाल लिया और अखिलेश यादव के भी मुलाकात हुई। भविष्य की चुनावी रणनीति पर वह स्पष्ट तौर पर कुछ कहने से बचते नजर आए। हालांकि यह जरूर स्वीकार किया कि यूपी राजनीतिक लिहाज से बड़ा राज्य है और अखिलेश वहां नेतृत्व करेंगे। वहीं अखिलेश यादव भी 2024 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी प्रत्याशी पर दांव खोलने से बचते दिखे। इन सब के बीच आज उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में समाजवादी पार्टी ऑफिस की दीवार पर एक पोस्टर लगा पाया गया। पोस्टर में नीतीश कुमार और अखिलेश यादव की तस्वीरों के साथ लिखा है- यूपी+बिहार= गयी मोदी सरकार। इस पोस्टर ने राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी है।
अब के करीब डेढ़ साल के बाद देश में आम चुनाव होने हैं। सत्तारूढ़ बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी ही एक बार फिर से प्रधानमंत्री पद की कुर्सी के दावेदार के तौर पर नजर आ रहे हैं। ऐसे में विपक्षी खेमे में भी सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। एक तरफ जहां देश की सबसे पुरानी और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा निकाल रही है। वहीं विपक्षी गठबंधन में भी कवायद शुरू हो गई है। ऐसे कई बड़े चेहरे हैं जिन्हें संभावित उम्मीदवार माना जा रहा है। हालांकि बीते करीब एक महीने से जिस राजनेता का नाम सबसे अधिक सक्रियता से सामने आ रहा है, वह हैं नीतीश कुमार।
बिहार में बीजेपी का साथ छोड़कर लालू यादव की पार्टी आरजेडी के साथ मिलकर फिर से सत्ता की कुर्सी पर बैठ गए सीएम नीतीश कुमार नए फ्रंट का गठन करते नजर आ रहे हैं। हाल ही में दिल्ली के दौरे पर उन्होंने आम आदमी पार्टी के सीएम अरविंद केजरीवाल, हरियाणा में इनेलो नेता ओमप्रकाश चौटाला, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, एनसीपी चीफ शरद यादव, कर्नाटक के पूर्व सीएम एच डी कुमारस्वामी, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, सीपीआई नेता डी राजा से मुलाकात की।। नीतीश के इस दौरे और मुलाकात के सिलसिले से कयासों का बाजार गरमा गया है।
इन सभी हलचल के बीच यूपी की राजधानी लखनऊ में समाजवादी पार्टी दफ्तर की दीवार पर लगे एक पोस्टर से सियासी चर्चा शुरू हो गई। नीतीश कुमार और अखिलेश यादव की तस्वीर के साथ लिखा है कि यूपी+बिहार= गयी मोदी सरकार। पोस्टर से सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या 2024 में मोदी की अगुवाई में बीजेपी के खिलाफ नीतीश और अखिलेश की मोर्चेबंदी हो गई है। नीतीश ने जिस तरह बिहार में एनडीए से गठबंधन तोड़कर आरजेडी के साथ सरकार बनाई, उससे उनकी छवि ऐसे नेता की बन गई है जो बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा सकता है।
लखनऊ में पोस्टर समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता आईपी सिंह की तरफ से लगवाया गया है। हालांकि नीतीश और अखिलेश दोनों ही अभी पीएम पद और एक-दूसरे की उम्मीदवारी पर खुलकर स्पष्ट कुछ कह नहीं सके हैं। नीतीश इस हफ्ते मंगलवार को दिल्ली दौरे के दौरान गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में मुलायम सिंह यादव से मिलने पहुंचे थे। मुलाकात के बाद जब बाहर निकले तो उनके साथ अखिलेश भी थे। जब मीडिया ने अखिलेश की भूमिका पर सवाल किया तो उन्होंने भी कमोबेश वही कहा जो अखिलेश यादव ने इस इंटरव्यू में कहा। नीतीश बोले थे, ‘यही सब यूपी का आगे और नेतृत्व करेंगे।’ मतलब नीतीश भी अखिलेश यादव में विपक्ष का संभावित पीएम पद का उम्मीदवार नहीं देखते, या कम से कम अभी खुले तौर पर मान नहीं पाए।
ठीक इसके एक दिन के बाद इंटरव्यू में अखिलेश यादव भी महज इतना ही कहकर रह गए कि नीतीश जी ने बिहार में लंबे समय से काम किया है। समूह का काम किया है, साइकिलें बांटीं हैं, अपने संसाधन के दम पर बिहार को आगे ले जाने का काम किया है। लगे हाथ अखिलेश ने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव की भी तारीफ कर दी। हालांकि विपक्ष का मुखिया कौन होगा इस पर भी अखिलेश ने कोई एक नाम नहीं लिया, बल्कि यही कहा हमारे पास चेहरों की कमी नहीं है जबकि बीजेपी के पास ले देकर एक ही चेहरा है। विपक्ष का उम्मीदवार कौन होगा इस पर अखिलेश ने किसी एक चेहरे का नाम न लेकर कहा, हमारे पास कई मोती हैं, उनको एक साथ पिरोने वाला धागा चाहिए।
इधर अखिलेश भी खुद केंद्रीय राजनीति की तरफ मुड़ते दिख रहे हैं। बीते कुछ समय से वह केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुई दिखाई पड़ रहे हैं। इसका कारण है, यूपी में अगला विधानसभा चुनाव 5 साल बाद होना है। लोकसभा चुनाव 2024 में होना है। आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की हार के बाद से ऐसे ही उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश सपा को 5 सीटों पर जीत के आंकड़े से आगे बढ़ाने में कामयाब नहीं हुए हैं। ऐसे में अखिलेश के सामने प्रदेश में सपा को फिर से ताकतवर बनाने के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में दखल बढ़ाने की है।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं। बिहार की 40 लोकसभा सीटों के मुकाबले दोगुनी। अखिलेश यादव की तैयारी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की है। नीतीश कुमार अगर गठबंधन के तहत चुनावी मैदान में उतरते हैं तो 15-16 सीटों से अधिक लोकसभा चुनाव 2024 में जेडीयू के पाले में नहीं आएगा। पिछले लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को ही आधार मानें और जेडीयू की 16 सीटों पर जीत को तय मान कर चलें तो भी विपक्ष के बहुमत के 273 के आंकड़े के पार करने के बाद नीतीश कुमार की 16 सीटों के दम पर उनकी पीएम पद पर उम्मीदवारी की संभावना कम ही है।
वाराणसी से पीएम नरेंद्र मोदी खुद चुनावी मैदान में उतरते हैं। इस स्थिति में अगर उनके सामने कोई विकल्प नहीं खड़ा होगा तो फिर दिक्कत दूसरी पार्टी की बढ़ेगी। अब अखिलेश और उनके समर्थकों के सामने चुनौती है कि विपक्षी एकता को बरकरार रखते हुए दावेदारी को मजबूती से कैसे पेश किया जाए। पीएम मोदी के खुद वाराणसी से चुनाव लड़ने का सीधा फायदा 2014 और 2019 में भाजपा को मिला है। आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की हार के बाद स्थापित वोट बैंक यादव और मुस्लिम में भी टूट देखने को मिली। अगर अखिलेश विपक्ष या तीसरा मोर्चा के पीएम उम्मीदवार घोषित होते हैं तो इस वोट बैंक को एकजुट करना संभव होगा। साथ ही, भाजपा से नाराज वोट बैंक को भी सपा अपने पाले में लाने में कामयाब हो सकती है।