कर्मचारियों का वर्किंग आवर तय करना बहुत आवश्यक होता है! भारतीय कंपनी बॉम्बे शेविंग के सीईओ शांतनु देशपांडे की हाल की एक लिंक्डइन पोस्ट काफी वायरल हो गई थी। देशपांडे ने कर्मचारियों को करियर के शुरुआती वर्षों में 18 घंटे तक काम करने की सलाह दे दी थी। इस पोस्ट पर जाने-माने कारोबारी और आरपीजी एंटरप्राइजेज के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। आइए जानते हैं कि उन्होंने क्या कहा। जब मैं 20 साल से कुछ बड़ा था, तो अक्सर सुबह 6 बजे काम पर चला जाता था। मैं रोज 18 घंटे से अधिक काम करता था। हमें यह बताया जाता था कि जब हमारे पास परिवार की कम से कम जिम्मेदारी हो, तो हमें जमकर मेहनत करनी चाहिए। जिस बिजनस या क्षेत्र में हम काम कर रहे हैं, उसमें हमें महारथ हासिल करनी चाहिए। मैं देख रहा हूं कि अब यह भावना हमारी सोच से काफी हद तक गायब हो गई लगती है। एक सीईओ ने हाल ही में कड़ी मेहनत करने पर अपने विचार साझा किए, विशेष रूप से किसी के कॉर्पोरेट करियर के शुरुआती समय में। यह एक ईमानदार, नेक इरादे से कहा गया और लोगों को प्रेरित करने वाला संदेश लग रहा था। लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उन्हें काफी उग्र प्रतिक्रियाएं मिलीं। इतनी उग्र कि उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म छोड़ना पड़ा।
हर दिन कड़ी मेहनत करें, कभी-कभी कामकाजी दिन 18 घंटे का भी हो सकता है।” हम इस सलाह की चीड़ फाड़ कहां से शुरू करें। शायद मूल प्रश्न के साथ। ”मैं क्या खोज रहा हूं।” इसका जवाब हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकता है। कुछ लोगों के लिए, काम केवल इसलिए किया जाता है, जिससे व्यक्ति अपनी जीविका चला सके। दूसरों के लिए, यह एक ऐसा करियर है, जहां केवल वित्तीय लाभ ही नहीं मिलते, बल्कि समाज में सम्मान भी मिलता है। किसी अन्य के लिए, यह किसी पेशे या कौशल में इस तरह से महारत हासिल करने के बारे में है, जो उन्हें उपलब्धि की भावना देता है। फिर ऐसे लोग भी हैं, जिनके लिए यह कर्तव्य है, एक समर्पण है।
एक व्यक्ति के रूप में आप इसका चुनाव करते हैं कि आपको कैसे जीना है और आप कैसे काम करना चाहते हैं। आधुनिक समय के संगठनों में कर्मचारियों को मशीनों की तरह काम करने का आदेश देना पुरानी बात हो गई है। मैं समय पर घड़ी देखकर काम करना चुन सकता हूं या मैं ऑफिस छोड़ने वाला आखिरी व्यक्ति हो सकता हूं। मुझे कई साल पहले एक कंपनी की याद आ रही है, जहां हर दिन नियत समय पर भगदड़ मच जाती थी, क्योंकि लोग जल्दी घर पहुंचने के लिए दौड़ पड़ते थे। उसी दफ्तर में अब भी कुछ मुट्ठी भर लोग होंगे, जो देर तक मेहनत करते हैं। एक ऑब्जर्वर के रूप में, मैं यह जानने के लिए उत्सुक था कि वे क्यों रुके थे। सभी मामलों में यह निरपवाद रूप से उनका ही चुनाव था।
जब कोई युवा और उत्साही होता है, तो एनर्जी लेवल हाई होता है और काम अक्सर उस एनर्जी के लिए एक आउटलेट होता है। काम उन्हें हाई रखता है। साथ ही हमारी संस्कृति में काम को पूजा माना जाता है। हम मानते हैं कि कड़ी मेहनत से अच्छा फल मिलता हैं। यह पीढ़ियों से चली आ रही पुरानी सोच है, जिसे मिटाना मुश्किल है। सीईओ की पोस्ट उसी मानसिकता को दर्शाती है। हमारी प्राथमिकताएं जो भी हों, मेरा दृढ़ विश्वास है कि कड़ी मेहनत और जीवन को विरोधी नहीं होना चाहिए।
उदाहरण के लिए, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान और दुनिया भर में हुए कई युद्धों के दौरान, हमने युवाओं के बारे में सुना है। कुछ बहादुरी से और कुछ देशभक्ति की गहरी भावना से युद्ध में अपने सिर कटाने के लिए चले गए। यह जानते हुए भी कि वे कभी वापस नहीं आ सकते। हालांकि, यह एक चरम उदाहरण प्रतीत हो सकता है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में जब लोग उद्देश्य की गहरी भावना से प्रेरित होते हैं, तो यह नाटकीय रूप से वर्क-लाइफ बैलेंस की अवधारणा को कम कर देता है। इस प्रेरणा ने इंडस्ट्री में कुछ पथप्रदर्शक लीडर्स का निर्माण किया है और बहुत प्रेरणादायक कहानियां भी हमें दी हैं। राहुल बजाज को रात 2 बजे अपने ऑफिस डेस्क पर देखना या मुकेश अंबानी को अभी भी सप्ताह के हर दिन 18 घंटे काम करते हुए देखना दुर्लभ नहीं था।
यह सच है कि पूरे इतिहास में कॉर्पोरेट सेक्टर में महान उपलब्धियां प्राप्त करने वालों ने अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अत्यधिक कठिनाईयों का सामना किया। यह भी सच है कि तनाव, चिंता और मानसिक थकान के कारण कई लोगों ने घुटने टेक दिए।
अब सीईओ की पोस्ट को इतनी कड़ी प्रतिक्रियाएं क्यों मिलीं? यह वास्तव में उन प्राथमिकताओं को रीसेट करने से संबंधित है, जो लॉकडाउन से उपजी हैं। वर्कप्लेस के बारे में एक नई सोच पैदा हुई है और कर्मचारी अपने नियोक्ताओं से क्या उम्मीद करते हैं और वे क्या करने को तैयार हैं। अक्सर द ग्रेट रेजिग्नेशन या द ग्रेट एट्रिशन की बात होती है। दुनिया भर के वर्कर्स, विशेष रूप से युवा लोग अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं। कई जीविकोपार्जन के नए तरीके तलाश रहे हैं और कई पूरी तरह से कार्यक्षेत्र छोड़ रहे हैं। कॉरपोरेट जगत में रिमोट वर्किंग, कम वर्किंग आवर्स, छोटे वर्क वीक और वर्क लाइफ-बैलेंस लाने के बारे में बातचीत बढ़ रही है। कर्मचारियों के बीच नई सोच अधिक लचीलेपन पर भी केंद्रित है। वे ऐसे माहौल में काम करना चाहते हैं जो रिश्तों और मानवीय मूल्यों को बढ़ाए। जो कंपनियां कर्मचारियों की जरूरतों को समझने का प्रयास करती हैं और उनके लिए समाधान पेश करती हैं, वे विजेता बनकर उभरेंगी।