क्या प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार सहायता करने से क्यों किया मना?

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नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर के बीच एकता हमेशा से ही बनी रहती थी! जिसका नाम सुनकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का चेहरा खिल उठता है, उसने ना कर दिया। नीतीश कुमार चाहते थे कि 2015 में जिसकी रणनीति की बदौलत सत्ता बरकरार रखे थे, उसकी मदद से 2024 के मिशन को पार करें। लेकिन दांव उलटा पड़ गया। सात साल पहले वाले PK नहीं रहे। उन्होंने राष्ट्र कवि रामधारी दिनकर की कविता के जरिए बिहार के सीएम के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया। उन्होंने दिनकर की प्रसिद्ध पुस्तक रश्मिरथि की कविता की दो लाइनें ट्वीट किया। उन्होंने लिखा कि-

तेरी सहायता से जय तो मैं अनायास पा जाऊंगा,

आनेवाली मानवता को, लेकिन, क्या मुख दिखलाऊंगा?

इन लाइनों में नीतीश-प्रशांत मुलाकात का रिजल्ट है। नीतीश कुमार उस कविता की बैकग्राउंड को समझ रहे होंगे। पीके ने अपनी बात नीतीश कुमार तक पहुंचा दी, जिसे लेकर बुधवार से ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी।

प्रशांत किशोर ने जिस कविता को ट्वीट किया है, उसके बैकग्राउंड में महाभारत के योद्धा कर्ण हैं। अपनी हार पक्का जानते हुए भी महाभारत की युद्ध में दुर्योधन यानी कौरवों की तरफ से कर्ण मैदान में उतरे थे। उनको पता था कि वो इस लड़ाई को जीत नहीं सकते। मगर खुद से कमिटमेंट ऐसी कि टस से मस नहीं हुए। रामधारी सिंह दिनकर ने रश्मिरथी के भाग सात में उसी कर्ण की मनोदशा को अपनी कविता के जरिए व्यक्त किया है। जिसमें वो लिखते हैं कि-

तेरी सहायता से जय तो मैं अनायास पा जाऊंगा,

आनेवाली मानवता को, लेकिन, क्या मुख दिखलाऊंगा?

संसार कहेगा, जीवन का सब सुकृत कर्ण ने क्षार किया;

प्रतिभट के वध के लिए सर्प का पापी ने साहाय्य लिया।

इसमें जब कर्ण को पांडवों की तरफ से लड़ने की सलाह दी जाती है, तो वो कहते हैं कि ये सही है कि मैं आपकी तरफ (पांडव) से लड़ूं तो कोई हरा नहीं सकता। मगर मैं उस दोस्त को क्या मुंह दिखाऊंगा? जिसने मुझे राजपाट दिया है। दुनिया कहेगी कि अपनी स्वार्थ के लिए वो दुश्मनों से मिल गया। अपने दोस्त की वध के लिए वो दुश्मन सेना की मदद ली। दरअसल, पूरा मामला एक शख्स की वचनवद्धता (कमिटमेंट) को दिखाता है। वो किसी भी सूरत में गद्दार कहलाना पसंद नहीं करता है। प्रशांत किशोर ने अपने ट्वीट में यही जताने की कोशिश की है। वो बताना चाहते हैं कि उन्होंने दो महीने पहले पटना में जो कमिटमेंट किया था, उस पर आज भी कामय है। भले ही उनकी नीतीश कुमार से गुपचुप मुलाकात ही क्यों न हुई हो?

इतिहास में महाभारत युद्ध का दोषी दुर्योधन को माना जाता है। दुर्योंधन एक इर्ष्यालु व्यक्ति था। कर्ण को सहनशील माना जाता है। कर्ण और दुर्योधन की दोस्ती भी महाभारत में देखने को मिलती है। दरअसल, गुरु द्रोणाचार्य ने अपने सभी शिष्यों की परीक्षा लेने के बाद एक रंगभूमि का आयोजन किया। इसमें अर्जुन ने अपनी धनुर्विद्या से सबको हरा दिया। दुर्योधन भी इसमें शामिल था। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर की उपाधि अर्जुन को मिलने वाली थी। तभी एक नौजवान कर्ण खड़ा हो गया। उसने अर्जुन को प्रतियोगिता के लिए ललकार लगा दी। नियम के मुताबिक कोई राजकुमार ही अर्जुन से युद्ध कर सकता था। दुर्भाग्य से कर्ण राजकुमार नहीं था, वो एक सारथी का बेटा था। दुर्योधन ने कर्ण के चेहरे पर तेज और साहस देखा तो वो प्रभावित हुआ। उसने उसी समय कर्ण को अंग प्रदेश (महाभारत के मुताबिक आधुनिक भागलपुर, बेगूसराय, बिहार और बंगाल के क्षेत्र को अंग प्रदेश माना जाता है। इसकी राजधानी चम्पापुरी थी। ये मगध जनपद के अंतर्गत आता था।) देकर उसे राजा घोषित कर दिया। हालांकि शाम हो जाने पर कर्ण और अर्जुन के बीच युद्ध तो नहीं हो सका लेकिन दुर्योधन और कर्ण के बीच एक अटूट दोस्ती हो गई। दुर्योधन की भानुमति से शादी कराने में कर्ण की अहम भूमिका रही। उसने सभा में मौजूद सभी राजाओं को परास्त कर दिया, तब जाकर दुर्योधन-भानुमति की शादी हुई। सारथी पुत्र को सिंहासन की गद्दी पर बिठानेवाले के प्रति कर्ण, कृतघ्न बनना नहीं चाहता था। लिहाजा उसने आखिरी दम तक दुर्योधन से अपनी दोस्ती निभाई।

महाभारत के युद्ध में आखिकार कर्ण और अर्जुन आमना-सामना हुआ। युद्ध के बीच में कर्ण के रथ का पहिया जमीन में फंस गया। कर्ण उसको निकालने के लिए जमीन पर उतरा तो अर्जुन ने निहत्थे कर्ण पर वार कर उसकी हत्या कर दी। पांडवों ने भाई होने के नाते कर्ण की चिता को मुखाग्नि देने का फैसला किया। दुर्योधन ने ऐसा नहीं होने दिया। उसने कहा कि वो मेरा मित्र था, मेरे भाई समान था। मरने के बाद भी मेरा ही मित्र है। मैं ही मुखाग्नि देने का अधिकारी हूं। बात ठन गई तो धर्मराज युधिष्ठिर ने कर्ण की चिता पर दुर्योधन का अधिकार बताया। कर्ण और दुर्योधन की नि:स्वार्थ दोस्ती को इतिहास कभी भूल नहीं पाया। चूंकि, राष्ट्र कवि रामधारी सिंह उसी अंग प्रदेश (बेगूसराय) के रहनेवाले थे। उन्होंने अपनी कविता में कर्ण की उस मनोदशा को काफी विस्तार से बताया है।