एक ऐसा कार्य जिसमें आपकी जमीन उसके नाम अपने आप हो जाएगी! इन दिनों वक्फ बोर्ड काफी चर्चा में है। दिल्ली सरकार की एंटी करप्शन ब्रांच ने वक्फ बोर्ड से जुड़े घोटाले के आरोप में ओखला से आम आदमी पार्टी विधायक अमानतुल्लाह खान को गिरफ्तार कर लिया है। उधर, तमिलनाडु के एक हिंदू बहुल गांव की करीब 90 प्रतिशत जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया गया है जिसमें 1500 साल पुराना एक मंदिर भी है। सोचिए, दुनिया में इस्लाम के आने से पहले के मंदिर पर भी वक्फ अपनी मिल्कियत ने दावा कर दिया है! वक्फ बोर्ड की ऐसी ही विवादित गतिविधियों और उसे मिले विशेषाधिकारों को गैर-संवैधानिक बताते हुए वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर वक्फ बोर्ड है क्या, वह क्या करता है और उसके पास कौन-कौन सी शक्तियां हैं।
सबसे पहले तो यह जान लीजिए कि वक्फ बोर्ड के पास भारतीय सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा जमीन है। यानी, वक्फ बोर्ड देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है। वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के मुताबिक, देश के सभी वक्फ बोर्डों के पास कुल मिलाकर 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं जो 8 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हैं। सेना के पास करीब 18 लाख एकड़ जमीन पर संपत्तियां हैं जबकि रेलवे की चल-अचल संपत्तियां करीब 12 लाख एकड़ में फैली हैं। अब जो आंकड़ा जानने वाले हैं, वो चौंका देगा। साल 2009 में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां 4 लाख एकड़ जमीन पर फैली थी। मतलब साफ है कि बीते 13 वर्षों में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां दोगुनी से भी ज्यादा हो गई हैं। आप भी जानते हैं कि जमीन का विस्तार तो नहीं होता। फिर वक्फ बोर्ड के हिस्से जमीन का इतना बड़ा हिस्सा, इतनी तेजी से कैसे जा रहा है?
दरअसल, वक्फ बोर्ड देशभर में जहां भी कब्रिस्तान की घेरेबंदी करवाता है, उसके आसपास की जमीन को भी अपनी संपत्ति करार दे देता है। अवैध मजारों, नई-नई मस्जिदों की भी बाढ़ सी आ रही है। इन मजारों और आसपास की जमीनों पर वक्फ बोर्ड का कब्जा हो जाता है। चूंकि 1995 का वक्फ एक्ट कहता है कि अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई जमीन वक्फ की संपत्ति है तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उसकी नहीं, बल्कि जमीन के असली मालिक की होती है कि वो बताए कि कैसे उसकी जमीन वक्फ की नहीं है। 1995 का कानून यह जरूर कहता है कि किसी निजी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड अपना दावा नहीं कर सकता, लेकिन यह तय कैसे होगा कि संपत्ति निजी है? जवाब ऊपर दिया जा चुका है। अगर वक्फ बोर्ड को सिर्फ लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है तो उसे कोई दस्तावेज या सबूत पेश नहीं करना है, सारे कागज और सबूत उसे देने हैं जो अब तक दावेदार रहा है। कौन नहीं जानता है कि कई परिवारों के पास जमीन का पुख्ता कागज नहीं होता है। वक्फ बोर्ड इसी का फायदा उठाता है क्योंकि उसे कब्जा जमाने के लिए कोई कागज नहीं देना है।
वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि 1947 में अंग्रेजों की अधीनता से आजादी मिलने के साथ भारत के बंटवारे से पाकिस्तान नया देश बना। तब जो मुसलमान भारत से पाकिस्तान चले गए, उनकी जमीनों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दी गई। वो कहते हैं कि 1950 में हुए नेहरू-लियाकत समझौते में तय हुआ था कि विस्थापित होने वालों का भारत और पाकिस्तान में अपनी-अपनी संपत्तियों पर अधिकार बना रहेगा। वो अपनी संपत्तियां बेच सकेंगे। हालांकि, पाकिस्तान में नेहरू-लियाकत समझौते के अन्य प्रावधानों का जो हश्र हुआ, वही हश्र इसका भी हुआ।वो आगे कहते हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं की छोड़ी जमीनें, उनके मकानों अन्य संपत्तियों पर वहां की सरकार या स्थानीय लोगों का कब्जा हो गया। लेकिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि यहां से पाकिस्तान गए मुसलमानों की संपत्तियों को कोई हाथ नहीं लगाएगा। जो मालिकों द्वारा साथ ले जाने, बेच दिए जाने के बाद जो संपत्तियां बच गई हैं, उन्हें वक्फ की सपत्ति घोषित कर दिया गया। एनिमी प्रॉपर्टी अपवाद थी, उस पर सरकार का अधिकार हुआ। प्रदीप सिंह कहते हैं, ‘1954 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ। यहीं से भारत के इस्लामीकरण का एजेंडा शुरू हुआ।’ उन्होंने कहा, ‘दुनिया के किसी इस्लामी देश में वक्फ बोर्ड नाम की कोई संस्था नहीं है। यह सिर्फ भारत में है जो इस्लामी नहीं, धर्मनिरपेक्ष देश है।’
वर्ष 1995 में पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया और नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दीं। प्रदीप सिंह बताते है कि वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपरकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी। वो कहते हैं कि वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा। दरअसल, वक्फ बोर्ड का एक सर्वेयर होता है। वही तय करता है कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है, कौन सी नहीं। इस निर्धारण के तीन आधार होते हैं- अगर किसी ने अपनी संपत्ति वक्फ के नाम कर दी, अगर कोई मुसलमान या मुस्लिम संस्था जमीन की लंबे समय से इस्तेमाल कर रहा है या फिर सर्वे में जमीन का वक्फ की संपत्ति होना साबित हुआ।
बड़ी बात है कि अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दी गई तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते। आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी। वक्फ बोर्ड का फैसला आपके खिलाफ आया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते। तब आप वक्फ ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं। इस ट्राइब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। उसमें गैर-मुस्लिम भी हो सकते हैं। हालांकि, राज्य की सरकार किस दल की है, इस पर निर्भर करता है कि ट्राइब्यूनल में कौन लोग होंगे। संभव है कि ट्राइब्यूनल में भी सभी के सभी मुस्लिम ही हो जाएं। वैसे भी अक्सर सरकारों की कोशिश यही होती है कि ट्राइब्यूनल का गठन ज्यादा से ज्यादा मुस्लिमों के साथ ही हो। वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्राइब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है।
मोदी सरकार में भी वक्फ को लेकर उदारता दिखाई गई। सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने नियम बनाया कि अगर वक्फ की जमीन पर स्कूल, अस्पताल आदि बनते हैं तो पूरा खर्च सरकार का होगा। यह तब हुआ जब मुख्तार अब्बास नकवी के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री थे। एक तरफ सरकार मंदिरों के पैसे लेती है, दूसरी तरफ वक्फ को अनुदान देती है। सरकार मंदिर ट्रस्ट का निर्माण करती है, उसके लिए गैर-हिंदुओं को भी ट्रस्ट में शामिल करने का प्रावधान है। यही नहीं, मंदिर परिसर में दुकानें खोलने की इजाजत भी गैर-हिंदुओं को होती है। पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं, ‘भारत के इस्लामीकरण की प्रक्रिया भारत-विभाजन के बाद ही शुरू हो गई। देश का विभाजन हुआ धर्म के नाम पर, पाकिस्तान बना धर्म के नाम पर। इस देश में रह रहे मुसलमानों ने कहा कि वो हिंदुओं के साथ नहीं रह सकते, इसलिए एक अलग देश बन गया पाकिस्तान। ऐतिहासिक तथ्य है कि जिन लोगों ने मुस्लिम देश का एजेंडा चलाकर अलग देश की मांग की, उनमें ज्यादातर भारत में ही रह गए।’ अश्विनी उपाध्याय ने इन्हीं आपत्तियों को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। हालांकि, अब उन्होंने हाई कोर्ट से गुहार लगाई है कि याचिका को सुप्रीम कोर्ट में भेजा जाए।