लखीमपुर खीरी में लगातार अपराधिक मामले सामने आते जा रहे हैं! उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में कुछ ऐसी घटना घटी, जिसने उन्नाव, हाथरस जैसी घटनाओं को सामने ला दिया है। प्रदेश बड़ा है। अपराधी बेलगाम रहे हैं। उन पर लगाम लगाने की योजना पर काम भी हुआ है। बुलडोजर ऐक्शन से लेकर एनकाउंटर तक अपराध को रोकने में प्रभावी रहे हैं। ये अपराध के आंकड़ों में दिखते भी हैं, लेकिन महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ अपराध के मामलों पर रोक लगाने में पूरी तरह से कामयाबी नहीं मिल पा रही है। सरकार सांप्रदायिक हिंसा के मामलों पर रोक लगाने की बात करती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के डेटा भी इसकी तस्दीक करते हैं। झारखंड में 100, महाराष्ट्र में 77, राजस्थान में 22 सांप्रदायिक हिंसा के दर्ज मामलों के मुकाबले यूपी में वर्ष 2021 में एक सांप्रदायिक हिंसा का मामला दर्ज हुआ है। इन तमाम उपलब्धियों के बीच लखीमपुर खीरी की घटना सफेद चादर पर काले धब्बे सी प्रतीत होती है। इस प्रकार के मामले लगातार आते रहते हैं। इन पर रोक लगाने में सरकार प्रभावी नहीं हो पा रही है। ऐसे में सवाल, प्रदेश के डीजीपी साहब से। ऑपरेशन लंगड़ा और ठोको नीति के बीच इस प्रकार के अपराधों को प्रदेश की जनता किस नजरिए से देखे।
अपराध के आंकड़ों से इतर अपराध की गंभीरता कई बार सवाल खड़े कर देती है। महिला अपराध में कमी तो आती दिखती है, लेकिन अपराध के स्तर या गंभीरता को देखें तो आपको इसमें गिरावट नहीं दिखेगी। लोग भी मानते हैं कि महिलाओं के प्रति अपराध के मामलों में एक अलग प्रकार की वहशियत दिखती है। उन्नाव, हाथरस और अब लखीमपुर कांड में लड़कियों के साथ जिस प्रकार का वहशी रवैया दिखता है, वह अपराधियों के मन में महिलाओं के प्रति सोच को प्रदर्शित करता है। इस प्रकार के भाव तब आते हैं, जब इस प्रकार के अपराध के मामलों में अपराधियों को सजा मिलने में देरी सामने आए। ट्विटर पर हैदराबाद में रेप के आरोपियों के एनकाउंटर की याद एक बार फिर दिलाई जाने लगी है। लेकिन, रेप के मामले आने के बाद इस प्रकार का गुस्सा हर घटना पर दिखता है। समय के साथ आक्रोश खत्म हो जाता है। इसके बाद पीड़ित परिवार कानूनी लड़ाई में जूझता रहता है।
रेप और मर्डर के मामलों में अपराधियों को सजा दिलाने में लगने वाला लंबा वक्त भी पूरे मामले के लिए जिम्मेदार दिखता है। पिछले दिनों नोएडा में एक 40 साल की महिला को इंसाफ मिला। उसके साथ 28 साल पहले रेप की घटना को अंजाम दिया गया था। रेप की वारदात के समय महिला की आयु महज 12 साल थी। लेकिन, सजा के ऐलान में 28 साल का वक्त बीत गया। उन्हें और उनके बच्चों को काफी कुछ सुनना अैर झेलना पड़ा। लेकिन, वह लड़ीं। कई तो लंबी कानूनी प्रक्रिया के कारण बीच में ही समझौता कर लेने को मजबूर होती है। देर से मिला न्याय किसी भी स्थिति में उचित नहीं होता। महिला के खिलाफ बढ़ते अत्याचार के मामलों से यह दिखने भी लगा है।
राज्य में रेप और हत्या जैसे गंभीर अपराध के मामलों में गिरावट हुई है। आंकड़े गवाही देते हैं, लेकिन क्या महिलाओं के लिए एक उचित समाज का निर्माण किया जाना संभव हो पाया है? यह सवाल है और यही इस समय की स्थिति का विचारणीय तथ्य है। यूपी की स्थिति को देखें तो 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में बलात्कार के मामले में 23वें और हत्या में 24वें स्थान पर है। इन घटनाओं के 2845 केस दर्ज है। देश में में 2021 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,28,278 मामले दर्ज किए गए। वर्ष 2020 की तुलना में 15.3 प्रतिशत ज्यादा है।
एनसीआरबी की रिपोर्ट कहती है कि यूपी में अपराध करने के बाद सजा देने की दर भी देश के अधिकांश राज्यों में सबसे अधिक है। महिलाओं के खिलाफ मामलों में अपराधियों की सजा, साइबर अपराध, हथियार जब्ती और आईपीसी के तहत गिरफ्तारी के मामले में, यूपी 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सबसे ऊपर है। एनसीआरबी के आंकड़ों को आधार मानें तो वर्ष 2019 की तुलना में यूपी में वर्ष 2021 में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 6.2 फीसदी की गिरावट आई है।
वर्ष 2019 में यूपी में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 59853 मामले दर्ज किए गए थे। यह वर्ष 2021 में घटकर 56083 हो गए। ये साफ करते हैं कि घटनाओं में कमी आई है। घटनाएं रुकी नहीं हैं। योगी सरकार की ओर से महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ अपराध को रोकने के लिए एंटी रोमियो स्क्वायड का गठन किया गया। लेकिन, समाज के भीतर डर का माहौल बनाने और महिला सुरक्षा का बोध कराने में बड़ी सफलता अभी नहीं मिली है। इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर बड़े प्रयास करने होंगे।
यूपी में पुलिस की नीति पर भी सवाल उठते रहे हैं। चाहे आप हाथरस कांड को ले लें या फिर बदायूं कांड, दोनों स्थानों पर पुलिस की भूमिका पर सवाल उठे थे। कुछ इसी प्रकार के सवाल उन्नाव कांड के दौरान उठे थे। इन तमाम मामलों में पुलिस पीड़ित परिवार के साथ खड़ी नहीं दिख पाई। अब लखीमपुर कांड में भी दो बहनों की मौत के मामले में पुलिस की थ्योरी सवालों के घेरे में है। मृतका की मां कह रही हैं कि लड़कियों को जबरन ले जाया गया। लखीमपुर एसपी लड़कियों के अपने मन से जाने की बात कर रहे हैं। अब मृतका की मां कह रही हैं कि पुलिस दर्ज शिकायत के आधार पर कार्रवाई नहीं कर रही है। बिना अनुमति पोस्टमार्टम कराया गया। शव नहीं दिखाया गया। ये सभी सवाल खड़े करते हैं। इनके जवाब खोजे जाने की जरूरत है।