Friday, March 14, 2025
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अमेरिका के साथ दो-दो हाथ करेंगे चीन और रूस! आखिर कैसे अंत होगा इस युद्ध का?

अमेरिका की दुश्मनों की संख्या में परिवर्तन तो हुआ है, लेकिन यह परिवर्तन अमेरिका को महंगा पड़ सकता है ! 11 सितंबर, अमेरिका के कैलेंडर में ‘काले अक्षरों’ में लिखी है। 21 साल पहले साल 2001 में आज के ही दिन न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, पेंटागन और पेनसिल्वेनिया में अपहरण किए गए यात्री विमानों के जरिए सिलसिलेवार हमले किए गए थे जिनमें लगभग 3,000 लोग मारे गए थे। अमेरिका आज 9/11 की 21वीं बरसी मना रहा है और लोग इसमें जान गंवाने वालों को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। इस हमले ने न सिर्फ वैश्विक भू-राजनीति की दिशा बदल दी बल्कि अमेरिका को भी अपनी सुरक्षा प्राथमिकताओं पर दोबारा विचार करने के लिए मजबूर कर दिया। अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और एक लंबा युद्ध किया। लेकिन आज जब अमेरिका का बदला लगभग पूरा हो चुका है तो उसका फोकस आतंकवाद से हटकर दूसरी चीजों की तरफ है।

9/11 के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अफगानिस्तान पर राज कर रहे तालिबान से हमले के मुख्य साजिशकर्ता अल-कायदा सरगना कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को अमेरिका को सौंपने और आतंकवादी संगठन को खत्म करने के लिए कहा। लेकिन तालिबान ने अमेरिका की मांग को अनसुना कर दिया। अमेरिका बातचीत या समझौता करने के मूड में नहीं था और 7 अक्टूबर 2001 को उसने ब्रिटेन के साथ अफगानिस्तान में आजादी के लिए जंग छेड़ दी। आगे चलकर इसमें अन्य सेनाएं भी शामिल हो गईं।

कुछ ही समय में 17 दिसंबर 2001 को अमेरिका और उसके सहयोगियों ने तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया। तालिबान और अल-कायदा के कई आतंकी भागने में कामयाब हुए और उन्होंने पाकिस्तान में शरण ले ली। अमेरिका का सबसे बड़ा बदला तब पूरा हुआ जब उसने 2 मई 2011 को लादेन को मार गिराया। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ऑपरेशन जेरेनिमो चलाया और अमेरिकी मरीन कमांडो ने पाकिस्तान के एबटाबाद में छिपे लादेन को उसके घर में घुसकर मार गिराया।

लादेन के मरने के बाद आतंकवादी संगठन की कमान अल जवाहिरी के हाथ में आ गई जो 9/11 हमले की साजिश रचने में शामिल था। पिछले महीने की शुरुआत में अमेरिका ने अफगानिस्तान में छिपे जवाहिरी को ड्रोन हमले में मार गिराया था। 21 साल बाद अमेरिका ने अपनी जमीन पर सबसे भयानक हमले का पूरा बदला ले लिया था। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका काफी हद तक कामयाब साबित हुआ है क्योंकि उसका सबसे बड़ा दुश्मन अल-कायदा अब कमजोर पड़ चुका है और अफगान तालिबान भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते उसे पनाह देने के मूड में नहीं है।

अब अमेरिका के ‘दुश्मन’ बदल चुके हैं जो पहले ज्यादा बड़े और ताकतवर हैं और इनसे निपटने की अमेरिका की तैयारी भी पहले से कहीं ज्यादा बड़ी है। अंतरराष्ट्रीय और सुरक्षा मामलों के जानकार कबीर तनेजा ने अपने ट्वीट में लिखा, ’21 साल पहले 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने ‘आतंकवाद के खिलाफ युद्ध’ शुरू कर दिया था जिसने भू-राजनीति की दिशा को बदल दिया था। आज अल-कायदा के दोनों सरगना मारे जा चुके हैं, अफगानिस्तान की जंग हारी जा चुकी है और इराक युद्ध एक धब्बा बना हुआ है। अमेरिका अब चीन और रूस के खतरे से निपटने के लिए 9/11 के साये से बाहर आ रहा है।’

अमेरिका के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती चीन और रूस की है जिससे निपटने के लिए उसकी तैयारी भी काफी बड़ी है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के खतरे से निपटने के लिए अमेरिका क्वाड जैसे संगठन का सदस्य है जिसमें भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। आगे चलकर साउथ कोरिया जैसे देशों के साथ क्वाड का विस्तार भी हो सकता है जिसके संकेत भी मिल चुके हैं। इतना ही नहीं, ताइवान से औपचारिक संबंध न होने के बाद भी अमेरिका चीन के खिलाफ खुलकर उसका समर्थन कर रहा है, जिसमें शीर्ष नेताओं और अधिकारियों की यात्रा, हथियारों का सौदा और सैन्य प्रशिक्षण जैसी चीजें शामिल हैं।

एशिया में चीन तो यूरोप में रूस अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन है। अमेरिका नाटो के सहारे रूस के पर कतरना चाहता है इसलिए वह ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ मिलकर सैन्य गठबंधन के विस्तार पर जोर देता है ताकि रूस का घेराव किया जा सके। अमेरिका रूसी हमले के खिलाफ यूक्रेन को हथियार और सैन्य सहायता देने वाला सबसे बड़ा देश है। उसने रूस पर प्रतिबंध भी लगाए हैं और विदेशों में रूसी कुलीन लोगों की संपत्ति को भी जब्त कर रहा है। वॉशिंगटन में कोई भी रहे लेकिन पुतिन के साथ उसके रिश्ते एक जैसे रहते हैं। बाइडन के आने के बाद इनमें सुधार के बजाय और ज्यादा तल्खी बढ़ी है। अमेरिका जानता है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाकर तालिबान को अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों से निपटने के लिए मजबूर किया जा सकता है इसलिए अब उसका फोकस रूस और चीन जैसे बड़े दुश्मनों से निपटने पर है।

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