कांग्रेस अपने अंदर ही अंदर खत्म होती जा रही है! कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए शशि थरूर की दावेदारी को चुनौती कौन देगा? क्या राहुल गांधी कांग्रेस की राज्य इकाइयों के प्रस्ताव को मानकर अध्यक्ष पद संभालेंगे? अगर राहुल नहीं मानते तो क्या अशोक गहलोत भी पार्टी के शीर्ष पद के लिए दावा ठोकेंगे? क्या सोनिया गांधी पूरी चुनावी प्रकिया से दूर रहेंगी ताकि ‘निष्पक्षता’ प्रभावित न हो? क्या गांधी परिवार इतनी आसानी से पार्टी पर नियंत्रण हाथ से जाने देगा और कैडर इस बात को आसानी से स्वीकार कर लेगा? सवालों की फेहरिस्त लंबी है और बहुतों के जवाब नहीं मिले हैं। गुजरात, राजस्थान समेत कई राज्यों के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। 2024 के आम चुनाव में बीजेपी को रोकने की चुनौती भी है, लेकिन कांग्रेस अबतक अपना सेनापति ही नहीं तय कर सकी है।
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी हाल ही में विदेश से लौटी हैं। पार्टी के लोकसभा सांसद शशि थरूर ने सोमवार को सोनिया से मुलाकात की। करीब 40 मिनट तक चली मुलाकात में थरूर ने सोनिया को बताया कि वह अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने जा रहे हैं। थरूर G-23 नेताओं में से एक हैं जो पार्टी में आमूलचूल बदलाव चाहते हैं। सूत्रों के अनुसार, सोनिया ने थरूर को भरोसा दिया कि वह ‘निष्पक्ष’ रहेंगी। अभी तक थरूर के अलावा किसी और ने अध्यक्ष पद पर दावा नहीं किया है, मगर यह सिचुएशन बड़ी तेजी से बदल सकती है।
बीच में ऐसी खबरें आईं कि सोनिया ने वेटरन नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पार्टी संभालने को कहा। अब उनके थरूर से ‘निष्पक्ष’ रहने की बात करना बेहद अहम है। यह संदेश देने की कोशिश है कि चुनाव मुक्त और निष्पक्ष होंगे क्योंकि G-23 के नेता चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाते रहे हैं। सोनिया ने ऐसा कहकर इशारा किया कि न तो वह और न ही गांधी परिवार, आगामी चुनावों में किसी उम्मीदवार के साथ खड़ा नहीं होगा। किसी तरह के आधिकारिक नामांकन से भी साफ इनकार किया गया।AICC के संचार प्रमुख जयराम रमेश ने कहा, ‘कोई भी चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है, उसका स्वागत है। यही कांग्रेस अध्यक्ष और राहुल गांधी का मत रहा है। यह एक मुक्त, लोकतांत्रिक और पारदर्शी प्रक्रिया है। किसी को चुनाव लड़ने के लिए किसी की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है।’
गहलोत समेत कई वरिष्ठ नेताओं को उम्मीद है कि राहुल गांधी अपना मन बदलेंगे और अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे। अगर राहुल अपने फैसले पर टिके रहते हैं तो गहलोत मैदान में उतर सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो 22 साल बाद ऐसा होगा जब कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए मुकाबला होगा। पिछले 24 साल में केवल एक बार ऐसा हुआ जब गांधी परिवार को शीर्ष पद के लिए चुनौती मिली। सोनिया ने 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला था। 2000 में उन्हें जितेंद्र प्रसाद ने चुनौती दी थी। एक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ नेताओं ने कहा कि गांधी परिवार का मन है कि अगर उनकी जगह कोई और अध्यक्ष बने तो फिर चुनाव में मुकाबला हो। ऐसा इसलिए क्योंकि गांधी परिवार दिखाना चाहता है कि कांग्रेस का अगला नेता सर्वसम्मति से चुना गया है।
केरल, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, तमिलनाडु, जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र की प्रदेश समितियों ने राहुल को पार्टी अध्यक्ष बनाने की मांग करते प्रस्ताव पारित किए हैं। थरूर जिस G-23 समूह के सदस्य हैं, वे मानते हैं कि प्रदेश कांग्रेस समितियों की ओर से राहुल के पक्ष में पास हो रहे प्रस्तावों के पीछे गांधी परिवार है।
हालांकि, राहुल के करीबी लगातार कह रहे हैं कि उनकी अध्यक्ष पद में कोई दिलचस्पी नहीं है।गहलोत समेत कई वरिष्ठ नेताओं को उम्मीद है कि राहुल गांधी अपना मन बदलेंगे और अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे। अगर राहुल अपने फैसले पर टिके रहते हैं तो गहलोत मैदान में उतर सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो 22 साल बाद ऐसा होगा जब कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए मुकाबला होगा। पिछले 24 साल में केवल एक बार ऐसा हुआ जब गांधी परिवार को शीर्ष पद के लिए चुनौती मिली। सोनिया ने 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला था। 2000 में उन्हें जितेंद्र प्रसाद ने चुनौती दी थी। एक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ नेताओं ने कहा कि गांधी परिवार का मन है कि अगर उनकी जगह कोई और अध्यक्ष बने तो फिर चुनाव में मुकाबला हो। ऐसा इसलिए क्योंकि गांधी परिवार दिखाना चाहता है कि कांग्रेस का अगला नेता सर्वसम्मति से चुना गया है। वहीं, G-23 के एक नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, ‘गांधियों की जानकारी के बिना ऐसा कैसे हो सकता है। हम सब कांग्रेस में इतने लंबे वक्त से रहे हैं कि समझते हैं कि चीजें कैसे होती हैं।’