Friday, February 7, 2025
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क्या राहुल गांधी की राजनीति के पीछे हैं दिग्विजय सिंह?

राहुल गांधी की पदयात्रा के बारे में तो आपने सुना ही होगा! कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के चार दिन हो चुके हैं। पार्टी के बड़े नेताओं के साथ हजारों लोगों की भीड़ यात्रा में राहुल के साथ चल रही है। यात्रा में सबसे अहम भूमिका मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह निभा रहे हैं। यात्रा के लिए बनाई गई समिति के वे अध्यक्ष हैं। यात्रा की प्लानिंग से लेकर इसके रूट, बीच में राहुल किन लोगों से मिलेंगे, जनसभाएं- ये पूरा खाका दिग्विजय ने ही तैयार किया है। इस यात्रा का कोई घोषित राजनीतिक उद्देश्य नहीं है और दिग्विजय को ऐसी यात्राओं का पुराना अनुभव है। करीब पांच साल पहले दिग्गी मध्य प्रदेश में नर्मदा परिक्रमा यात्रा पर निकले थे। यह यात्रा भी राजनीतिक नहीं थी, लेकिन प्रदेश की राजनीति में इसने बड़ा खेल कर दिया था। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने में इस यात्रा की बड़ी भूमिका थी। भारत जोड़ो यात्रा की जिम्मेदारी उन्हें दिए जाने का कारण केवल दिग्विजय का अनुभव ही नहीं है। वे गांधी परिवार के सबसे विश्वासपात्र नेताओं में शामिल हैं। राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी ने कभी दिग्विजय को राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाया था। अब राहुल के लिए यही भूमिका दिग्विजय निभा रहे हैं।

गांधी परिवार और दिग्विजय सिंह की करीबियों की शुरुआत साल 1987 में हुई थी जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। राजीव ने एक दिन अचानक दिग्विजय को बुलाया और बताया कि वे उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। दिग्विजय ने यह बात अपने राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह को बता दी। पता लगते ही अर्जुन सिंह, राजीव से मिलने चले गए और उन्हें अध्यक्ष बनाए जाने की मांग कर दी। राजीव ने इसके बाद दिग्विजय को बुलाकर पूछा कि अर्जुन सिंह को यह बात कैसे पता चली। दिग्गी ने अपनी गलती मान ली। तब राजीव ने उन्हें समझाया कि सियासत में कोई किसी का गुरु नहीं होता, सब एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी होते हैं। आगे चलकर दिग्विजय ने स्वीकार किया कि यह उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक सीख थी।

राजीव गांधी से अपने जुड़ाव के चलते दिग्विजय धीरे-धीरे उनके परिवार के करीब आने लगे। वे इतने भरोसेमंद बन गए कि राजीव की हत्या के कई साल बाद जब सोनिया गांधी ने राजनीति में प्रवेश का फैसला लिया तो इसकी औपचारिक घोषणा दिग्विजय ने ही की थी। यह वे दौर था जब सोनिया को हिंदी में भाषण देने में दिक्कत होती थी। इसके बावजूद पचमढ़ी चिंतन शिविर में हिंदी में लंबा भाषण देकर उन्होंने सबको चौंका दिया था। इस चिंतन शिविर और सोनिया के भाषण की सारी तैयारी दिग्विजय ने ही की थी।

अपने अल्पसंख्यक-समर्थक बयानों के लिए अक्सर विरोधियों के निशाने पर आने वाले दिग्विजय ने ही कांग्रेस को सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता दिखाया था। सोनिया गांधी इसको लेकर असहज थीं, लेकिन दिग्विजय ने उन्हें भी तैयार कर लिया। इसी दौरान उम्होंने सिवनी के पास दिघौरी में तीन शंकराचार्यों को एक मंच पर जमा किया और राम मंदिर के मुद्दे पर कांग्रेस के लिए अलग रणनीति का रास्ता तैयार किया। दिघौरी में धर्म गुरुओं के मंच पर सोनिया को खड़ा कर दिग्विजय पहली बार यह संदेश देने में सफल रहे थे कि हिंदुत्व पर किसी एक पार्टी का अधिकार नहीं है। साथ ही, यह भी कि कांग्रेस हिंदुओं की विरोधी नहीं है।

2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेस पार्टी लगातार पतन की ओर जा रही है। हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। इसके तीन साल बीतने के बाद भी पार्टी को नया अध्यक्ष नहीं मिल पाया है। सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में काम कर रही हैं। एक के बाद एक चुनावों में कांग्रेस को लगातार हार मिल रही है। बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। इस बीच, पार्टी नेताओं का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस की बागडोर गांधी परिवार के बाहर किसी व्यक्ति को देने की मांग कर रहा है। इसके चलते राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य पर भी सवालिया निशान खड़े होने लगे हैं!

भारत जोड़ो यात्रा की रणनीति काफी सोच-समझकर बनाई गई है। इसका उद्देश्य यह है कि राहुल ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिल सकें और पूरे भारत को समग्रता से समझ सकें। इसके साथ वे अपनी सोच और विजन के बारे में लोगों को बताएं जिससे उनके बारे में प्रचलित भ्रांतियां खत्म हों। यह रणनीति कितनी कारगर होगी, इसका आकलन करना अभी मुश्किल है। अभी तो चार दिन ही हुए हैं, लेकिन जिस तरह विपक्षी दल इसको लेकर राहुल पर हमलावर हो रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि दिग्विजय की प्लानिंग सही रास्ते पर है।

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