कौन होगा कांग्रेस का नया अध्यक्ष? जानिए

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कांग्रेस अपना नया अध्यक्ष बनाने की लड़ाई लड़ रही है! अध्यक्ष की लड़ाई में अब दोनों उम्मीदवार अपनी अपनी जगह उतर चुके हैं!कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव के लिए तस्‍वीर काफी कुछ साफ है। अशोक गहलोत बनाम शशि थरूर की टक्कर के लिए पिच तैयार है। फिलहाल अभी तीसरा बैट्समैन नहीं दिख रहा है। हालांकि, संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। मैदान अभी पूरी तरह खुला हुआ है। चुनाव की अधिसूचना जारी होने से एक दिन पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत और पार्टी के वरिष्ठ नेता थरूर ने चुनावी समर में उतरने का स्पष्ट संकेत दे दिया। इस तरह 22 साल बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी का प्रमुख इलेक्‍शन के जरिये चुने जाने का रास्‍ता भी साफ हो गया है। किसी तीसरे ने कुद्दी नहीं लगाई तो यह चुनाव बहुत दिलचस्‍प होगा। इसमें दो बिल्‍कुल अलग तरह के अंदाज और मिजाज के नेता आमने-सामने होंगे। हालांकि, लोगों के मन में कुछ सवाल हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि दोनों में पलड़ा किसका भारी होगा? कांग्रेस की पॉलिसी में कौन फिट बैठेगा? किसे कांग्रेसियों का ज्‍यादा समर्थन मिलेगा? आइए, यहां इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।

इसके पहले कि हम आगे बढ़ें, पहले थोड़ा पीछे चलते हैं। बात साठ के दशक की है। कांग्रेस की पकड़ कमजोर हो रही थी। इस बात को सबसे पहले कामराज ने महसूस किया था। तब उन्होंने सुझाया था कि पार्टी के बड़े नेताओं को सरकार में अपने पदों से इस्तीफा देना चाहिए। अपनी ऊर्जा कांग्रेस में जान फूंकने के लिए लगानी चाहिए। इस योजना के तहत उन्होंने खुद भी इस्तीफा दिया था। लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई समेत कई नेताओं ने भी सरकारी पद छोड़े थे। यही योजना कामराज प्लान के नाम से जानी जाती है। इस प्लान के कारण केंद्र की राजनीति में कामराज बेहद मजबूत हो गए थे। नेहरू के निधन के बाद शास्त्री और इंदिरा को पीएम बनवाने में उनकी भूमिका अहम थी। वह तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष रहे। कामराज मानते थे कि जिसे हिंदी और अंग्रेजी नहीं आती है, उसे इस देश का पीएम नहीं बनना चाहिए।आज कांग्रेस उसी तरह के दोराहे पर खड़ी है। वह बेहद कमजोर हो चुकी है। उसे टॉनिक की जरूरत है। गहलोत या थरूर दोनों में से कोई भी अध्‍यक्ष बने, उससे चमत्‍कार की उम्‍मीद लगाई जाएगी। गांधी परिवार अब पल्‍ला झाड़ चुका है। उसने गेंद उछाल दी है। इसे लपकने की दौड़ में गहलोत और थरूर सबसे आगे खड़े हैं। दोनों में कई बुनियादी अंतर हैं। ये अंतर बहुत बड़ा फर्क पैदा करते हैं। इनमें से कई के कारण गहलोत थरूर के मुकाबले फेवरेट दिखाई देते हैं।

भाषा के संदर्भ में कामराज ने जो बात कही थी, वह काफी प्रासंगिक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण हिंदी में उनका बातचीत करना है। वह दुभाषियों के जरिये दुनिया के शीर्ष नेताओं के साथ भी हिंदी में बात करते हैं। यह उन्‍हें देश की बड़ी आबादी से जोड़ देती है। लोग उनकी नीतियों और एजेंडों को समझ पाते हैं। गहलोत के आगे थरूर यहां साफ तौर पर कमजोर दिखते हैं। गहलोत राजस्थान, दिल्ली, गुजरात और मध्‍य प्रदेश में जाने-पहचाने जाते हैं। हिंदी हार्टलैंड को कवर करने के लिए गहलोत कांग्रेस के लिए हर तरह से ज्‍यादा मुफीद रहेंगे। थरूर की बात करें तो अंग्रेजी पर उनका जबर्दस्‍त कमांड है। लेकिन, हिंदी में उनका हाथ तंग है। यह भी सही है कि उनके ज्ञान को चैलेंज करना मुश्किल है। हालांकि, अपनी सीमाओं के चलते एक बड़े वर्ग तक थरूर नहीं पहुंच पाते हैं।

गहलोत के पक्ष में जो दूसरी सबसे बड़ी बात जाती है वह है उनकी गांधी परिवार से वफादारी। अध्‍यक्ष पद के लिए सामने आने के बाद भी वह एक बात बराबर कह रहे हैं। वह यह है कि राहुल गांधी को ही कांग्रेस के शीर्ष पद की कमान सौंपी जाए। बुधवार को सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद भी गहलोत ने दो टूक कहा कि वह पार्टी का फैसला मानेंगे। लेकिन, उससे पहले राहुल गांधी को अध्यक्ष बनने के लिए मनाने का एक आखिरी प्रयास करेंगे। यानी वह गांधी परिवार से आगे जाने की दौड़ में नहीं हैं। पहले भी वह राहुल गांधी को अध्‍यक्ष बनाने की पैरवी करते रहे हैं। गांधी परिवार भी नहीं चाहेगा कि कमान पूरी तरह से स्‍वतंत्र हाथों में चली जाए। उस पैरामीटर में भी देखें तो गहलोत थरूर से मैदान मारते हुए दिखते हैं। गांधी परिवार के लिए थरूर की लॉयलिटी पर संदेह है। वह कांग्रेस के उन जी-23 नेताओं के ग्रुप में शामिल हैं जिन्‍होंने 2020 में कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी। इसने तभी संगठन में बड़े बदलाव की अपील की थी। यही नहीं, पार्टी की दुर्दशा के लिए केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे। जाहिर तौर पर नेताओं का यह समूह चाहता है कि पार्टी गांधी परिवार की गिरफ्त से बाहर निकले।

कांग्रेस लगातार अंदरूनी कलह का शिकार रही है। इस कलह के कारण उसने कई राज्‍य गंवाए हैं। इनमें पंजाब भी शामिल है। गहलोत के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है। वह संगठन को एकजुट कर सकते हैं। वह सौम्‍य व्‍यवहार के हैं। गांधी परिवार के भी वफादार हैं। इसके चलते कांग्रेस के नेताओं का वह खेमा भी उनकी छतरी के नीचे आ सकता है जो पार्टी में बदलाव नहीं चाहता है या फिर गांधी परिवार के किसी सदस्‍य के हाथों में पार्टी की कमान को देखना चाहता है। वहीं, थरूर के हाथों में कांग्रेस गई तो इस कलह के बढ़ने की आशंका रहेगी। उनका राजनीतिक अनुभव पार्टी के कई नेताओं से कम है। उनके लिए इकाई और संगठन स्‍तर पर लोगों के साथ संवाद स्‍थापित करना और उन्‍हें अपनी राह पर चलाना मुश्किल होगा। पुराने कांग्रेसियों को भी दिख रहा है कि वह अध्‍यक्ष पद के लिए अतिउत्‍साही हो गए हैं।

राजस्‍थान की राजनीति भी अदरूनी कलह से अछूती नहीं है। लेकिन, अशोक गहलोत ने इसे कभी हावी नहीं होने दिया। काफी समय से सचिन पायलट और उनके बीच खींचतान की खबरें हैं। हालांकि, उन्‍होंने कभी पायलट को अपने ऊपर नहीं आने दिया। उन्‍हें सियासत का जादूगर कहा जाता है। पेशे से भी वह जादूगर रह चुके हैं। उनकी जादूगरी वोटरों के सिर चढ़कर बोलती है। विरोधी भी उनके अंदाज के कायल हैं। आज राजस्‍थान की राजनीति में वह कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा हैं। केंद्रीय हाईकमान पर उन्‍हें हमेशा बहुत भरोसा रहा है। उन्‍हें दिल जीतने का माहिर कहा जाता है। जब भी हाईकमान मुश्किल में पड़ा है, गहलोत ने उसे उबारा है। थरूर के मामले में यह बात अब तक नहीं आजमाई गई है।