चाचा नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा गांधी को खत में क्या लिखा?

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भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के द्वारा अपनी बेटी इंदिरा गांधी को प्यार भरा खत लिखा गया था! एक दौर था जब चिट्ठियां हीं अपनों को जोड़ने का काम करती थीं। फौजी घर का हर हाल समाचार चिट्ठी से ही पाता था। दूर रहने वाले रिश्‍तेदार भी चिट्ठियों से ही गम और खुशियां बांटते थे। डाकिये का बेसब्री से इंतजार रहता था। यहां बेटियों के नाम लिखीं कुछ खूबसूरत चिट्ठियों के संपादित अंश जिनमें पिता का प्‍यार, मां की सीख है।

प्यारी इंदिरा, मैं आज तुम्हें पुराने जमाने की सभ्यता का कुछ हाल बताता हूं। लेकिन इसके पहले हमें यह समझ लेना चाहिए कि सभ्यता का अर्थ क्या है? कोश में तो इसका अर्थ लिखा है अच्छा करना, सुधारना, जंगली आदतों की जगह अच्छी आदतें पैदा करना। आदमी की जंगली दशा को, जब वह बिलकुल जानवरों-सा होता है, बर्बरता कहते हैं। सभ्यता बिलकुल उसकी उलटी चीज है। हम बर्बरता से जितनी ही दूर जाते हैं उतने ही सभ्य होते जाते हैं।लेकिन हमें यह कैसे मालूम हो कि कोई आदमी या समाज जंगली है या सभ्य? यूरोप के बहुत-से आदमी समझते हैं कि हमीं सभ्य हैं और एशियावाले जंगली हैं। क्या इसका यह सबब है कि यूरोपवाले एशिया और अफ्रीकावालों से ज्यादा कपड़े पहनते हैं? लेकिन कपड़े तो आबोहवा पर निर्भर करते हैं। ठंडे मुल्क में लोग गर्म मुल्कवालों से ज्यादा कपड़े पहनते हैं तो क्या इसका यह सबब है कि जिसके पास बंदूक है वह निहत्थे आदमी से ज्यादा मजबूत और इसलिए ज्यादा सभ्य है? चाहे वह ज्यादा सभ्य हो या न हो, कमजोर आदमी उससे यह नहीं कह सकता कि आप सभ्य नहीं हैं। कहीं मजबूत आदमी झल्ला कर उसे गोली मार दे, तो वह बेचारा क्या करेगा?

तुम्हें मालूम है कि कई साल पहले एक बड़ी लड़ाई हुई थी। दुनिया के बहुत से मुल्क उसमें शरीक थे और हर एक आदमी दूसरी तरफ के ज्यादा से ज्यादा आदमियों को मार डालने की कोशिश कर रहा था। अंग्रेज जर्मनी वालों के खून के प्यासे थे और जर्मन अंग्रेजों के खून के। इस लड़ाई में लाखों आदमी मारे गए और हजारों के अंग-भंग हो गए कोई अंधा हो गया, कोई लूला, कोई लंगड़ा।

तुमने फ्रांस और दूसरी जगह भी ऐसे बहुत-से लड़ाई के जख्मी देखे होंगे। पेरिस की सुरंगवाली रेलगाड़ी में, जिसे मेट्रो कहते हैं, उनके लिए खास जगहें हैं। क्या तुम समझती हो कि इस तरह अपने भाइयों को मारना सभ्यता और समझदारी की बात है? दो आदमी गलियों में लड़ने लगते हैं तो पुलिसवाले उनमें बीच बचाव कर देते हैं और लोग समझते हैं कि ये दोनों कितने बेवकूफ हैं। जब दो बड़े-बड़े मुल्क आपस में लड़ने लगें और हजारों और लाखों आदमियों को मार डालें तो वह कितनी बड़ी बेवकूफी और पागलपन है। यह ठीक वैसा ही है जैसे दो वहशी जंगलों में लड़ रहे हों और अगर वहशी आदमी जंगली कहे जा सकते हैं तो वह मूर्ख कितने जंगली हैं जो इस तरह लड़ते हैं?

अगर इस निगाह से तुम इस मामले को देखो तो तुम फौरन कहोगी कि इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, इटली और बहुत से दूसरे मुल्क जिन्होंने इतनी मार-काट की, जरा भी सभ्य नहीं हैं। फिर भी तुम जानती हो कि इन मुल्कों में कितनी अच्छी-अच्छी चीजें हैं और वहां कितने अच्छे-अच्छे आदमी रहते हैं।

अब तुम कहोगी कि सभ्यता का मतलब समझना आसान नहीं है, और यह ठीक है। यह बहुत ही मुश्किल मामला है। अच्छी-अच्छी इमारतें, अच्छी-अच्छी तस्वीरें और किताबें और तरह-तरह की दूसरी और खूबसूरत चीजें जरूर सभ्यता की पहचान हैं मगर एक भला आदमी जो स्वार्थी नहीं है और सबकी भलाई के लिए दूसरों के साथ मिलकर काम करता है, सभ्यता की इससे भी बड़ी पहचान है। मिलकर काम करना अकेले काम करने से अच्छा है और सबकी भलाई के लिए एक साथ मिल कर काम करना सबसे अच्छी बात है।

तुम दोनों उस मोड़ पर हो जहां से ज़िंदगी शुरू होती है। मैं तुमसे वह सबक साझा करना चाहता हूं जो ज़िंदगी ने मुझे सिखाए हैं। बरसों पहले बैंगलोर में एक छोटे बच्चे ने बैडमिंटन खेलना शुरू किया था। तब न तो कोई स्टेडियम थे और न ही कोई बैडमिंटन कोर्ट जहां ट्रेनिंग ली जा सके। मेरा बैडमिंटन कोर्ट तो घर के करीब केनरा यूनियन बैंक का एक शादी हॉल था। मैंने वहीं पर खेलना सीखा। हर रोज हम इंतजार करते कि हॉल में कोई फंक्शन तो नहीं है, अगर नहीं होता तो हम स्कूल से भागकर वहां पहुंच जाते जिससे कि अपने दिल की चाह पूरी कर सकें। इसके बावजूद मेरे बचपन और कच्ची उम्र की सबसे खास चीज थी कि मैंने ज़िंदगी में कभी किसी कमी की शिकायत नहीं की। मैं इसी बात से खुश रहा है कि हमें हफ्ते में कुछ दिन खेलने की सुविधा तो मिलती है। अपने करियर और ज़िंदगी दोनों से मैंने कभी कोई शिकवा नहीं किया और यही मैं तुम बच्चों को सिखाना चाहता हूं। जुनून, कड़ी मेहनत, जिद और जज्बे की जगह कोई चीज नहीं ले सकती। दीपिका जब तुमने 18 साल की उम्र में यह कहा था कि तुम्हें मुंबई जाना है क्योंकि तुम मॉडलिंग करना चाहती हो तो हमें लगा था कि तुम बड़े शहर और बड़ी इंडस्ट्री के लिए बहुत छोटी हो और तुम्हें कोई तजुर्बा भी नहीं है। लेकिन आखिर में हमने तय किया कि तुम्हें तुम्हारे दिल की इच्छा पूरी करने दी जाए। हमें लगा कि तुम्हें वह सपना पूरा करने का मौका नहीं देना गलत होगा, जिसके साथ तुम बड़ी हुई हो। तुम कामयाब हो जाती तो हमें गर्व होता और अगर नहीं होती तो तुम्हें कभी अफसोस नहीं होता क्योंकि तुमने कोशिश की थी। याद रखो कि मैंने तुम्हें हमेशा यही बताया है कि दुनिया में अपना रास्ता कैसे बनाना है, बिना अपने माता-पिता से उम्मीद किए कि वे उंगली पकड़कर तुम्हें वहां पहुंचाएंगे। मेरा मानना है कि बच्चों को अपने सपनों के लिए खुद मेहनत करनी चाहिए न कि इस बात का इंतजार कि कोई उन्हें कामयाबी लाकर देगा। आज भी जब तुम घर आती हो तो तुम अपना बिस्तर खुद लगाती हो, खाने के बाद खुद टेबल साफ करती हो। जब मेहमान घर पर होते हैं तो जमीन पर सोती हो। तुम कभी सोचती होगी कि हम तुम्हें एक स्टार समझने को क्यों तैयार नहीं हैं? तो ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम हमारे लिए बेटी पहले हो और एक फिल्म स्टार बाद में।