सोनिया गांधी शशि थरूर का विरोध कर सकती है, क्योंकि इस समय है मलिकार्जुन खरगे अध्यक्ष पद की ओर बढ़ते हुए दिख रहे है! कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हो रहे हैं। तीन ने पर्चा भरा था, उनमें से दो का नामांकन स्वीकार हुआ। दलित समुदाय से आने वाले वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व डिप्लोमेट और तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सांसद शशि थरूर में मुकाबला है। कहने को तो दोनों नेता इसे ‘फ्रेंडली मैच’ बता रहे हैं, मगर इसके मूल में पावर रिटेनिंग का मास्टरप्लान छिपा हुआ है। दो दशक से भी ज्यादा वक्त से पार्टी की कमान गांधी परिवार के पास है। अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से पहले कहा था कि वे किसी का पक्ष नहीं लेंगी। यह बात अलग है कि सारे संकेत खड़गे की जीत के मिल रहे हैं, न सिर्फ ऑप्टिक्स में, बल्कि लिखित में भी। इन संकेतों से यही लगता है कि थरूर का हाल जितेंद्र प्रसाद जैसा होने वाला है। प्रसाद ने 2000 में अध्यक्ष पद के लिए सोनिया को चुनौती दी थी और बुरी तरह हारे थे।
कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव की घोषणा होते ही शशि थरूर ने दावा कर दिया था। थरूर नई पीढ़ी के नेताओं में गिने जाते हैं, पुरानी पीढ़ी से कौन आएगा? सवाल का जवाब मिलते-मिलते राजस्थान कांग्रेस में बगावत के सुर उठ गए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दिल्ली लाने की पूरी तैयारी थी मगर उन्होंने ‘गेम’ कर दिया। गांधी परिवार को गहलोत ने झटका दिया तो नाम दिग्विजय सिंह का उभरा। हालांकि, बात बनी नहीं। फिर अचानक से मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम उछला। कुछ ही घंटों में साफ हो गया कि खड़गे ही थरूर को चुनौती देंगे। खड़गे पर गांधी परिवार का हाथ है, इसके साफ संकेत हैं। थरूर और खड़गे के प्रस्तावकों की सूची से साफ हो जाता है कि पलड़ा किसका भारी है।
शशि थरूर कई दिन से प्रचार में जुटे हैं। उनके प्रस्तावकों की लिस्ट में जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक के कांग्रेसी शामिल हैं। यह बात अलग है कि थरूर के समर्थन में बड़े नामों की फेहरिस्त उतनी लंबी नहीं है। सैफुद्दीन सोज, राशि साहू, प्रखर दीक्षित, मोहसिना किदवई, कार्ति चिदंबरम, सुरेश बाबू, संदीप दीक्षित जैसे नेताओं ने थरूर का समर्थन किया है।रविवार 2 अक्टूबर
को महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती थी। इस मौके पर ‘राजघाट’ और ‘विजय घाट’ जाकर दोनों विभूतियों को श्रद्धांजलि देने वालों में सोनिया भी थीं और खड़गे भी। दिलचस्प बात यह है कि सोनिया और खड़गे साथ-साथ ही गए। किसी उम्मीदवार का समर्थन न करने के ऐलान के बावजूद सोनिया का खड़गे के साथ नजर आने से मतदाताओं के बीच साफ संदेश जाएगा।खड़गे अपनी जीत को लेकर इतने निश्चिंत हैं कि नामांकन के बाद शुक्रवार देर रात ही राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष पद से अपना इस्तीफा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को दे दिया था। कहा गया कि उन्होंने यह कदम ‘एक व्यक्ति, एक पद’ के सिद्धांत के तहत उठाया।
गांधी-शास्त्री जयंती पर संसद भवन के केंद्रीय हॉल में भी श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई थी। यहां भी सोनिया और खड़गे एक बेंच पर बैठे। सोनिया आगे चल रही थीं और खड़गे उनके ठीक पीछे। तस्वीर में पीछे की बेंच पर दिख रहे हुड्डा, शुक्ला जैसे कांग्रेस नेताओं ने खड़गे का ही समर्थन किया है। इस श्रद्धांजलि सभा से थरूर नदारद थे। वह महाराष्ट्र और फिर तेलंगाना के दौरे पर थे।
जैसा माहौल बन रहा है और जो संकेत मिल रहे हैं, खड़गे का अगला कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है। ऐसा हुआ तो परोक्ष रूप से पार्टी पर गांधी परिवार का नियंत्रण बना रहेगा। थरूर का हश्र जितेंद्र प्रसाद जैसा होने की संभावना है। प्रसाद उन नेताओं में से थे जो इटली से आईं सोनिया के हाथ में कांग्रेस को नहीं देखना चाहते थे। नवंबर 2000 में जब चुनाव हुए तो सोनिया गांधी के खिलाफ प्रसाद ने पर्चा भर दिया। नतीजों ने साबित कर दिया कि कांग्रेस का गांधी परिवार की छाया से निकल पाना इतना आसान नहीं है। 7,542 वोटों में से प्रसाद को सिर्फ 94 वोट मिले थे। कांग्रेस अध्यक्ष पद के दोनों उम्मीदवार कह रहे हैं कि ‘जी-23’ जैसी कोई चीज नहीं है। मल्लिकार्जुन खडगे ने रविवार को दावा किया कि पार्टी में अब कोई जी-23 गुट नहीं है। खडगे ने कहा, ‘वे लोग (जी-23 खेमे के नेता) भी पार्टी को बचाना चाहते हैं और मिलकर बीजेपी-आरएसएस को हराना चाहते हैं, इसलिए वे मेरे साथ आए।’ जी-23 गुट उन नेताओं का ग्रुप है, जो पार्टी में बदलाव की वकालत करता है। थरूर उन नेताओं में शामिल बताए जाते हैं। हालांकि, सोमवार को ANI से बातचीत में थरूर ने भी कहा कि ‘कोई G23 ग्रुप नहीं है, यह सब मीडिया का आइडिया था।’