शी जिनपिंग चीन के तीसरी बार भी राष्ट्रपति बन सकते हैं! शी जिनपिंग तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। वे रविवार को सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के एक ऐतिहासिक कांग्रेस की शुरुआत करेंगे। इसी दौरान चीन के नए राष्ट्रपति चुनने की औपचारिकता पूरी की जाएगी। जिनपिंग आधुनिक चीन के संस्थापक माओत्से तुंग के बाद चीन के सबसे शक्तिशाली शासक के रूप में जगह लेने को तैयार हैं। हालांकि, उनकी ताजपोशी उस मुश्किल वक्त में हो रही है, जब जीरो कोविड पॉलिसी के कारण चीन की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है। एक दिन पहले ही चीन में शी जिनपिंग के विरोध में जबरदस्त और ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं। रूस के व्लादिमीर पुतिन के लिए उनके समर्थन ने चीन को पश्चिम से अलग कर दिया है। इसके बावजूद शी की पकड़ चीन की सत्ता पर काफी मजबूत है। ऐसे में सवाल उठता है कि शी जिनपिंग का तीसरी बार राष्ट्रपति बनना भारत और दुनिया के लिए कैसा होगा।
अनुमान है कि शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल के दौरान चीन की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता, अर्थव्यवस्था पर अधिक सरकारी नियंत्रण, मुखर और आक्रामक कूटनीति और एक मजबूत सेना के निर्माण पर जोर दिया जाएगा। इतना ही नहीं, ताइवान पर कब्जे के लिए बढ़ते दबाव को प्राथमिकता देने वाली नीतियों को भी बनाया जा सकता है। आशंका यह भी है कि जिनपिंग अपने तीसरे कार्यकाल के अंत के पहले बलपूर्वक ताइवान पर कब्जा करने की कोशिश भी कर सकत हैं। हफ्ते भर चलने वाली कांग्रेस में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के करीब 2300 प्रतिनिधि हिस्सा लेगें। तियानमेन स्क्वायर पर स्थित विशाल ग्रेट हॉल के बंद दरवाजों के पीछे शी जिनपिंग की ताजपोशी पर मुहर लगाई जाएगी। इसके लिए चीन की राजधानी बीजिंग में सुरक्षा को बढ़ा दिया गया है। पूरे शहर में कोविड स्क्रीनिंग को भी तेज कर दिया गया है। बीजिंग की हवा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए हेबेई प्रांत में मौजूद स्टील मिलों और दूसरे उद्योगों को परिचालन में कटौती करने का निर्देश दिया गया है।
शी जिनपिंग के एक दशक के शासन के दौरान चीन ने दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना का निर्माण किया। दुनिया की सबसे बड़ी स्थायी सेना को नया और आधुनिक रूप दिया। चीन ने किसी भी दुश्मन को परेशान करने के लिए एक परमाणु और बैलिस्टिक शस्त्रागार में बड़ा इजाफा भी किया। यही कारण है कि चीन के पड़ोसी देश भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ताइवान और वियतनाम अब अपनी सैन्य शक्ति को चीन के बराबर में खड़ा करने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में शी जिनपिंग के अगले पांच साल के कार्यकाल में इंडो-पैसिफिक में हथियारों की दौड़ तेज होने की संभावना है। दक्षिण कोरिया ब्लू-वाटर नेवी विकसित कर रहा है, ऑस्ट्रेलिया परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां खरीद रहा है। भारत भी नई-नई मिसाइलें, एयर डिफेंस, पनडुब्बियां, लाइट टैंक जैसे हथियारों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। ऐसे में पूरे क्षेत्र में हथियारों की खरीदारी बढ़ गई है।
लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के आंकड़ों के मुताबिक, एशिया-प्रशांत का रक्षा खर्च पिछले साल अकेले 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो गया। चीन, फिलीपींस और वियतनाम ने पिछले एक दशक में खर्च को लगभग दोगुना कर दिया है। दक्षिण कोरिया, भारत और पाकिस्तान भी पीछे नहीं हैं। यहां तक कि जापान भी रिकॉर्ड रक्षा बजट का प्रस्ताव कर रहा है और तेजी से गंभीर सुरक्षा वातावरण का हवाला देते हुए अपनी लंबे समय से चली आ रही नो फर्स्ट स्ट्राइक नीति को समाप्त करने की ओर अग्रसर है। ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के पूर्व ऑस्ट्रेलियाई रक्षा अधिकारी मैल्कम डेविस ने कहा कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के सभी प्रमुख खिलाड़ी चीन के सैन्य आधुनिकीकरण का जवाब दे रहे हैं। वे उतनी तेजी से अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ा रहे हैं, जितनी उनकी ताकत है। वर्षों से सैन्य इतिहासकार चीनी सेना को दुनिया के सबसे बड़े सैन्य संग्रहालय के तौर पर देखते हैं। उनका दावा है कि चीन अपने हथियारों और सेना की ताकत को हमेशा बढ़ा-चढ़ाकर बताता है।
कोरियाई युद्ध में 200,000 चीनी लोगों की जान चली गई थी। 1979 में वियतनाम पर आक्रमण की कीमत 10 हजार से अधिक चीनी सैनिकों से चुकाई थी। आशंका यह भी है कि चीन ने इस युद्ध में अपने सैनिकों की मौत का आंकड़ा वास्तविकता से काफी कम बताया था। 2013 में जब शी पीएलए के कमांडर-इन-चीफ बने, तो कुछ सुधार पहले से ही चल रहे थे। वे 1990 की दशक में जियांग जेमिन खाड़ी युद्ध और तीसरे ताइवान जलडमरूमध्य संकट के दौरान अमेरिकी सैन्य कौशल से प्रभावित थे। यही कारण था कि उन्होंने अपनी सेना की क्षमता को बढ़ाने और उसे आधुनिक बनाने की कोशिश में जुट गए। उनके ही कार्यकाल के दौरान चीनी नौसेना का पहला विमानवाहक पोत लियाओनिंग कमीशन किया गया था। इस पोत को यूक्रेन से होटल बनाने के नाम पर एक चीनी कंपनी ने कबाड़ की तरह खरीदा था। हालांकि, बाद में करोड़ों डॉलर खर्च कर इसे विमानवाहक पोत की शक्ल दी गई और इस पर जे-15 लड़ाकू विमानों को तैनात किया गया।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, चीन का सैन्य बजट अब लगातार 27 वर्षों से बढ़ा है। आज, चीन के पास दो सक्रिय विमानवाहक पोत, सैकड़ों लंबी और मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें, हजारों युद्धक विमान और एक नौसेना है जो अमेरिका से भी आगे है। अगस्त में चीन ने ताइवान की एक संक्षिप्त और आंशिक नाकेबंदी शुरू करने के बाद, एक शीर्ष अमेरिकी सैन्य अधिकारी ने भी स्वीकार किया कि चीन को रोकना अमेरिका के लिए भी आसान नहीं होगा। अमेरिकी नौसेना के सातवें बेड़े के कमांडर कार्ल थॉमस ने कहा था कि उनके पास एक बहुत बड़ी नौसेना है और अगर वे ताइवान के आसपास जहाजों को धमकाना और तैनात रखना चाहते हैं, तो वे बहुत कुछ कर सकते हैं।
इस बीच, चीन का परमाणु भंडार तेजी से बढ़ रहा है। पेंटागन के अनुसार, चीन के पास अह परमाणु मिसाइलों को जमीन, समुद्र और हवा से लॉन्च करने की क्षमता हासिल कर ली है। परमाणु वैज्ञानिकों के बुलेटिन के अनुसार, चीन के पास लगभग 350 परमाणु हथियार हैं, जो शीत युद्ध के दौरान बनाए गए चीनी हथियारों से दोगुना है। अमेरिकी खुफिया विभाग का अनुमान है कि 2027 तक चीन के परमाणु हथियारों का भंडार फिर से दोगुना होकर 700 हो सकता है। चीन देश के उत्तर-पश्चिम में नए परमाणु मिसाइल साइलो बना रहा है। पिछले साल पेंटागन की एक रिपोर्ट में कहा गया था, चीन ही एकमात्र ऐसा देश जो अपनी आर्थिक, राजनयिक, सैन्य और तकनीकी शक्ति को एक स्थिर और खुली अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के लिए निरंतर चुनौती देने में सक्षम है। बीजिंग अपनी सत्तावादी व्यवस्था और राष्ट्रीय हितों के साथ बेहतर तालमेल बिठाने के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को नया रूप देना चाहता है।