अमेरिका और रूस में से भारत किसे चुनेगा यह सबसे बड़ा सवाल है! यूक्रेन युद्ध और ताइवान में जंग जैसे हालात के बीच चीन-रूस के नेतृत्व वाले शंघाई सहयोग संगठन SCO की 15 सितंबर को उज्बेकिस्तान के समरकंद शहर में शिखर बैठक होने जा रही है। इस आर्थिक और सुरक्षा से जुड़े गठबंधन की दो दिवसीय बैठक में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा लेंगे। एससीओ के कुल 8 सदस्य देश हैं जिसमें भारत, पाकिस्तान, रूस, चीन, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल हैं। बताया जा रहा है इसमें ईरान और बेलारूस भी शामिल हो सकते हैं। कई पश्चिमी विश्लेषकों का कहना है कि एससीओ अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो के खिलाफ चीन और रूस का एक सैन्य गठबंधन है जिसे ताजा तनाव के बीच पुतिन और जिनपिंग बढ़ावा दे रहे हैं। कई विश्लेषक इसे नया ‘वॉरसा पैक्ट’ या ‘पूर्वी देशों का नाटो’ बता रहे हैं। एससीओ की इस बैठक में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति के बीच मुलाकात की अटकलें लगाई जा रही हैं। आइए जानते हैं कि शंघाई सहयोग संगठन किस ओर बढ़ रहा है और भारत के रुख पर क्यों दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं!
दरअसल, एससीओ की यह बैठक ऐसे समय पर हो रही है जब भारत और चीन के बीच लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश की सीमा तक तनाव चरम पर है। दोनों ही देशों के 50-50 हजार से ज्यादा सैनिक सीमा पर जमे हुए हैं। लद्दाख के कई इलाकों में चीनी सेना ने अपनी घुसपैठ की है और कई दौर की बातचीत के बाद अब जाकर पीपी-15 को लेकर समझौता हुआ है। अभी देपासांग समेत कई इलाकों में तनाव जस का तस बना हुआ है। चीन की सेना ने अक्साई चिन को सैन्य किले के रूप में बदलना शुरू कर दिया है और बड़े पैमाने पर हथियारों की तैनाती की है। इस तनाव के बीच भारत और अमेरिका की सेनाएं एससीओ की बैठक के बीच औली में एक बड़ा युद्धाभ्यास करने जा रही हैं जो चीन की सीमा से मात्र 100 किमी की दूरी पर होगा। यही नहीं यूक्रेन युद्ध को लेकर भी एससीओ देशों के रुख में मतभेद है। यूक्रेन युद्ध में जहां किर्गिस्तान ने पुतिन का समर्थन किया है, वहीं ताजिकिस्तान जो रूस पर बुरी तरह से निर्भर है, वह दुविधा में है। इस बीच कजाखस्तान ने खुलकर रूस के यूक्रेन पर हमले का विरोध किया है।
इस बीच अमेरिका को झटका देने के लिए चीन ईरान को सदस्य बनाने पर पूरा जोर दिए हुए है। माना जा रहा है कि बैठक के दौरान पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति के बीच मुलाकात हो सकती है। चीनी पक्ष इसकी तैयारी कर रहा है लेकिन भारत ने कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया है। शुक्रवार को भारत ने ऐलान किया कि गोगरा-हॉट स्प्रिंग इलाके के पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 से दोनों ही देशों की सेनाएं हट रही हैं। भारत ने कहा कि यह प्रक्रिया 12 सितंबर तक पूरी होगी। ऐसी अटकलें हैं कि यह सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया अगर पूरी हो जाती है तो समरकंद में पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हो सकती है। रूस की कोशिश है कि एससीओ के जरिए भारत और चीन को एक साथ लाकर पश्चिमी देशों के खिलाफ एकजुटता का संदेश दिया जाए। यूक्रेन युद्ध के बीच जहां पश्चिमी देशों में एकजुटता बढ़ी है, वहीं रूस अलग-थलग पड़ा है और केवल चीन ही उसकी खुलकर मदद कर रहा है।
शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना साल 2001 में हुई थी। कई विश्लेषक इसे पश्चिमी देशों के खिलाफ ‘पूर्वी’ देशों का ब्लॉक बताते हैं जो ‘नया वॉरसा पैक्ट’ या ‘पूर्वी नाटो’ बताते हैं। एससीओ खुद को आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद के खिलाफ बनाया गया संगठन बताता है। अमेरिका में 11 सितंबर के आतंकी हमले के बाद यह संगठन अस्तित्व में आया था और उसकी भाषा में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को सता रहा खतरा छिपा हुआ है। एससीओ का मुख्य लक्ष्य है कि सदस्य देशों के बीच आपसी भरोसा और सच्चे पड़ोसी की भावना विकसित करना। राजनीति, व्यापार, अर्थव्यवस्था, शोध, तकनीक, पर्यावरण संरक्षण और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी सहयोग करना। क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त प्रयास करना और उसे बनाए रखना। एक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष और विवेकपूर्ण नई अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की ओर बढ़ना शामिल है।
एससीओ को पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नाटो के खिलाफ पूर्वी देशों की ओर से बनाए गए संगठन के रूप में देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि भारत की सदस्यता से आतंकवाद और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों का प्रभावी तरीके से समाधान हो सकेगा। इस संगठन में दुनिया की दो सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन और भारत शामिल हैं जिससे यह संगठन विश्व में सबसे ज्यादा आबादी को अपने दायरे में लाता है। भारत ने साल 2020 में पहली बार राष्ट्राध्यक्षों की बैठक को आयोजित किया था। भारत साल 2017 में इस संगठन का सदस्य बना था। भारत के लिए एससीओ का महत्व मुख्य तौर पर आर्थिक और भूराजनीतिक है। एससीओ एक ऐसा संगठन है जिसके जरिए भारत ऊर्जा से समृद्ध मध्य एशियाई देशों में अपनी नीतियों को बढ़ा सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि एससीओ नाटो के खिलाफ खड़ा नहीं हो सकता है। इसके पीछे वे कई वजहें बताते हैं। इसकी बड़ी वजह एसीसीओ का चार्टर है और उसमें भी आर्टिकल 2 है जो साफतौर पर कहता है कि एससीओ किसी दूसरे देश या अंतरराष्ट्रीय संगठनों के खिलाफ नहीं है। इसके अलावा नाटो की तरह से एससीओ देशों के बीच कोई ‘सामूहिक सुरक्षा संधि’ नहीं है। इसके तहत नाटो के एक देश पर विदेशी हमला पूरे संगठन पर हमला माना जाता है।
चीन इन दिनों न केवल भारत के पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका, मालदीव को बल्कि दुनिया के कई छोटे द्वीपीय राष्ट्रों को सस्ते कर्ज के जाल में फंसा चुका है। वहीं दूसरी ओर रूस यूक्रेन युद्ध में बुरी तरह से फंसा हुआ है और पश्चिमी देशों की ओर से बेहद कड़े प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। पुतिन का लक्ष्य रूस को ग्रेटर यूरेशिया देशों के समूह का लीडर बनाना चाहते हैं और यही वजह है कि उन्हें बीजिंग और नई दिल्ली दोनों की ही जरूरत है। अब भारत को यह तय करना है कि वह किस तरह से एससीओ और क्वॉड के बीच संतुलन बनाता है। भारत रूसी हथियारों पर बुरी तरह से निर्भर है, इसलिए वह पुतिन को नाराज नहीं कर सकता है। वहीं कई विश्लेषकों का कहना है कि पुतिन इस समय शी जिनपिंग को नाराज नहीं कर सकते हैं और अगर भारत-चीन युद्ध हुआ तो वह हथियारों की सप्लाइ करेंगे या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है। उधर, पुतिन इस दुविधा को देखते हुए भारत और चीन के रिश्ते को पटरी पर लाना चाहते हैं ताकि पूरा फोकस नाटो पर किया जा सके।