भारत चीन के भारत में घुसने के सपने को तोड़ने के पूरे प्रयास कर रहा है! व्लादिवोस्तोक, रूस का वह शहर जिस पर चीन की नजरें हमेशा से गड़ी हैं। बुधवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां पर ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम को संबोधित करने वाले हैं। चीन ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए अपने सबसे महत्वपूर्ण शख्स को भेजा है। इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि कहीं न कहीं चीन को अब इस हिस्से को लेकर घबराहट होने लगी है। रूस के पूर्व में स्थित इस जगह से भारत के कई हित जुड़े हैं। आप इसे रूस का ‘बलूचिस्तान’ कह सकते हैं। यानी यह रूस की वह जगह है जहां पर संसाधनों की कमी नहीं है। लेकिन अभी तक इसका सही प्रयोग नहीं हो सका है। भारत ने अब इस जगह में अपने हितों को साधने के लिए एक ऐसा प्लान बनाया है जो चीन के कब्जा करने के सपने को हमेशा के लिए चकनाचूर कर देगा।
भारत के प्लान के बारे में जानने से पहले जानिए कि आखिर यह शहर कहां है। व्लादिवोस्तोक, रूस के पूर्व में स्थित एक पोर्ट सिटी है जो चीन और साउथ कोरिया से बॉर्डर साझा करती है। यह जगह ट्रांस-सर्बियन रेलवे का टर्मिनस भी है जो इसे मॉस्को से जोड़ता है। रूस की राजधानी मॉस्को से अगर ट्रेन के जरिए यहां के लिए निकला जाए तो एक हफ्ते में व्लादिवोस्तोक पहुंचा जा सकता है। व्लादिवोस्तोक, जापान के समुद्र के साथ तटीय सीमा साझा करता है। साथ ही यहां पर एक सेंट्रल स्क्वॉयर भी है। इस सेंट्रल स्क्वॉयल पर हर साल उन रूसी सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है जिन्होंने जापान के साथ युद्ध में अपनी जान गवां दी थी। यहां से ईस्ट चाइना सी काफी पास है जिस पर चीन और जापान दोनों ही दावा ठोंकते हैं।
चीन हमेशा से संसाधनों से भरेपूरे हिस्से पर गंदी नजर रखता आया है। चीन के मंसूबे पर पानी फेरने के लिए भारत ने जो प्लान बनाया है, उसका नाम है चेन्नई- व्लादिवोस्तोक मैरिटाइम कॉरिडोर। इस कॉरिडोर के जरिए तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई को रूस के इस शहर से जोड़ना है। इस नए सी-रूट के बाद रूस और भारत के बीच ट्रांसपोर्टेशन में 24 दिनों का समय ही लगेगा। अभी यूरोप के रास्ते आने वाले सामान को भारत और रूस तक पहुंचने में 40 दिन का समय लग जाता है। साल 2019 में जब पीएम मोदी ने ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम में शिरकत की था तो उसी समय इस पर चर्चा हुई थी। पीएम मोदी ने रूस के इस हिस्से के विकास के लिए 1 अरब डॉलर की मदद देने का ऐलान किया था।
व्लादिवोस्तोक, प्राकृतिक संसाधनों का खजाना है। इसके बाद भी रूस की अर्थव्यवस्था में सिर्फ पांच फीसदी योगदान ही कर पाता है। इसके अलावा यहां के लोगों का रहन-स्तर भी देश के बाकी हिस्सों की तुलना में बहुत काफी निम्न है। 1990 के दशक में जब सोवियत संघ का पतन हुआ तो व्लादिवोस्तोक से काफी लोग पलायन कर गए। सोवियत संघ के पतन के बाद भारत वह पहला देश था जिसने व्लादिवोस्तोक में अपना दूतावास खोला था। इसके बावजूद भारत ने यहां पर कभी निवेश नहीं किया। कोई प्रोजेक्ट साल 1990 में भारत ने शाखलिन में 20 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी। वह भारत का इकलौता निवेश था।
चीन की भूख को खत्म करने के लिए भारत ने जापान को भी साथ लाने का मन बनाया। साल 2020 में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस पर एक बयान दिया था। उन्होंने कहा था, ‘रूस के एकदम पूर्व में आर्थिक सहयोग की संभावना है क्योंकि भारत ने यहां और प्रशांत द्वीप के कई प्रोजेक्ट्स में शामिल होने की इच्छा जताई है। हमने यहां पर पार्टनरशिप के साथ ही राजनीतिक कदम भी रख दिए हैं।’ अगर भारत, जापान को भी साथ लेकर आता है तो यह वह मास्टरस्ट्रोक होगा, जिसके बारे में कभी नहीं सोचा गया था। रूस हमेशा से ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शामिल होने से हिचकता रहा है। यह वह जगह है जहां पर चीन के दबदबे का जवाब देने के लिए क्वाड का गठन किया गया। जापान और भारत दोनों ही क्वाड के अहम हिस्से हैं।
व्लादिवोस्तोक 160 साल पुराना शहर है और साल 2020 में चीन ने इस पर अपना दावा ठोंक दिया था। सन् 1860 में चीन को ब्रिटिश और फ्रांस की सेना से अफीम युद्ध में शिकस्त का सामना करना पड़ा था। चीन के एक जर्नलिस्ट की मानें तो रूस ने इस पर कब्जा किया हुआ है। उन्होंने लिखा था, ‘व्लादिवोस्तोक, जिसका शाब्दिक अर्थ है पूरब का शासक और इसका इतिहास सन् 1860 से है जब रूस ने यहां पर एक मिलिट्री बंदरगाह बना लिया था। लेकिन शहर हाइशेनवाई था और यह चीन की जमीन थी।
उनका कहना था कि रूस ने चीन के साथ हुई असमान संधि के जरिए इस पर कब्जा कर लिया था।’ चीन का दावा है कि व्लादिवोस्तोक 19वीं सदी में चीन की सीमा में था। व्लादिवोस्तोक, मन्चूरिया राज्य के किंग साम्राज्य का हिस्सा था और उस समय इसका नाम हाइशेनवाई था। लेकिन सन् 1860 में रूस ने इस पर आक्रमण किया और इस पर कब्जा कर लिया।