शी जिनपिंग 21वीं सदी के सबसे ताकतवर तानाशाह साबित हो सकते हैं! चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी अपनी 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस 16 अक्टूबर को करने जा रही है। माना जा रहा है कि इस अहम बैठक में शी जिनपिंग को अगले 5 साल के लिए फिर से राष्ट्रपति चुना जा सकता है। यह शी जिनपिंग का तीसरा कार्यकाल होगा। इससे पहले शी जिनपिंग को लेकर पार्टी के अंदर विरोध की खबरें आई थीं लेकिन अब माना जा रहा है कि इसको दबा दिया गया है। कम्यूनिस्ट पार्टी की बैठक पर न केवल चीन बल्कि पूरी दुनिया की नजरें टिकी होंगी। इस तीसरे कार्यकाल में शी जिनपिंग देश के सबसे ताकतवर इंसान रहेंगे और उनके पास दो सबसे शक्तिशाली पद कम्यूनिस्ट पार्टी के महासचिव और सेंट्रल मिलिट्री कमिशन के चेयरमैन का पद बरकरार रह सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि घरेलू और बाहरी चुनौतियों से जूझ रहे चीन में शी जिनपिंग ने अपराजेय ताकत हासिल कर ली है जिसका असर आने वाले समय में उनकी नीतियों में भी नजर आएगा। वह ‘तानाशाह’ जैसे फैसले ले सकते हैं।
चीन में पार्टी कांग्रेस की यह बैठक ऐसे समय पर होने जा रही है जब देश कई सारी चुनौतियों से जूझ रहा है। शी जिनपिंग ने पिछले एक दशक के कार्यकाल में अपनी ताकत को बहुत ज्यादा बढ़ा लिया है। वह तीसरी बार सत्ता संभाल सकते हैं जिससे 1990 के दशक से उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों की ओर से चली आ रही परंपरा टूट जाएगी। शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल के लिए संकेत साल 2018 में हुए संविधान संशोधन से मिल गया था। हालांकि उनका एक दशक का कार्यकाल काफी विवादों से भरा रहा है। शी जिनपिंग ने बहुत क्रूरता के साथ देश में जीरो कोविड नीति लागू की और कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए बहुत कठोर लॉकडाउन लगाए। शी जिनपिंग की यह नीति शुरू में तो कारगर रही लेकिन ओमिक्रोन वेरिएंट आने के बाद यह फेल साबित हुई।
चीन ने देश के वित्तीय केंद्र कहे जाने वाले शंघाई में दो महीने तक लॉकडाउन लगाया जिससे जनता भड़क उठी और कई बार प्रदर्शन हुए। इस नीति की वजह से चीन की आर्थिक विकास दर भी प्रभावित हुई जो लंबे समय से पार्टी की वैधता दिलाने का एक प्रमुख स्रोत रही है। चीन पिछले कुछ समय में युवा बेरोजगारी दर 20 फीसदी पहुंच गई है। यही नहीं चीन में कई बैंकिंग घोटाले और प्रॉपर्टी संकट से देश में जोरदार प्रदर्शन हुए हैं। उधर, कूटनीतिक मोर्चे पर देखें तो शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ‘दोस्ती’ में कोई सीमा नहीं होने का ऐलान किया है। वह भी तब जब यूक्रेन युद्ध चल रहा है और पश्चिमी देशों के साथ तनाव चरम पर है। चीन ने यूक्रेन युद्ध की आलोचना नहीं की है। अब शिंजियांग में उइगर मुस्लिमों के दमन पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने चीन की पोल खोलकर रख दी है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि उइगर मुस्लिमों पर यह ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ हो सकता है। इस रिपोर्ट ने चीन की यह पोल ऐसे समय पर खोली है जब लगातार ड्रैगन ने मानवाधिकारों के उल्लंघन नहीं होने का दावा किया है। इससे पहले अफवाह उड़ी थी कि चीन में शी जिनपिंग विरोध का सामना कर रहे हैं और उनकी सत्ता से पकड़ कमजोर हो रही है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसे बहुत बहुत बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया। सत्ता में आने के बाद शी जिनपिंग ने कथित रूप से भ्रष्टाचार के खिलाफ कई अभियान चलाए। वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि इन अभियानों के नाम पर शी जिनपिंग ने अपने विरोधियों को निपटा दिया और असहमति प्रकट करने वालों को दबा दिया। शी जिनपिंग चीन की सेना को न केवल पुर्नगठित किया बल्कि उस पर अपनी पकड़ को भी बहुत मजबूत कर लिया है। वह अब तीनों ही सेनाओं के चीफ हैं।
शिकागो विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञानी दाली यांग ने सीएनएन से कहा, ‘बहुत संभावना है कि जहां चुनौतियां हों, वह सुप्रीम लीडर के लिए खराब नहीं है। दरअसल, सर्वसत्तवादी नेता जैसे शी जिनपिंग चुनौतियों पर ही और आगे बढ़ते हैं और अक्सर वे इस तरह के संकट का इस्तेमाल अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए करते हैं।’ उन्होंने कहा कि शी जिनपिंग अपने लोगों को शीर्ष पदों पर नियुक्त करके सत्ता पर अपनी पकड़ को मजबूत कर सकते हैं। एक अन्य विशेषज्ञ का कहना है कि कम्यूनिस्ट पार्टी की बैठक का ऐलान यह दर्शाता है कि शी जिनपिंग ने अपने तीसरे कार्यकाल के लिए पार्टी को तैयार कर लिया है। अब यह तय है कि उन्हें तीसरा कार्यकाल मिलने जा रहा है और उनके विरोधी हालात को बदलने में सक्षम नहीं हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि शी जिनपिंग अपनी राजनीतिक छाप को पार्टी कांग्रेस पर छोड़ना चाहते हैं। अक्टूबर में इस पार्टी कांग्रेस की वजह से वह आसानी से नवंबर में कई बड़े अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में हिस्सा ले सकेंगे। इसमें इंडोनेशिया में जी-20 की बैठक शामिल है। शी जिनपिंग ने पिछले तीन साल से देश को छोड़ा नहीं है। कोरोना की शुरुआत के बाद से वह किसी भी विदेश दौरे पर नहीं गए हैं। इसका चीन की कूटनीति पर बुरा असर पड़ रहा है। अब तक चीन में पार्टी कांग्रेस की बैठक को बहुत गंभीरता से जनता नहीं लेती थी लेकिन अंतहीन कोविड लॉकडाउन और कोरोना जांच से परेशान जनता के लिए यह बैठक एक राहतभरी खबर लेकर आई है। उन्हें उम्मीद है कि इस बैठक के बाद चीन का कोरोना के प्रति रवैया बदल सकता है। एक अन्य चीनी विशेषज्ञ डॉक्टर यू जिए का कहना है कि पार्टी कांग्रेस की बैठक का ऐलान होना यह दर्शाता है कि शी जिनपिंग की कम्यूनिस्ट पार्टी पर पकड़ पूरी तरह से कायम हो गई है। उन्होंने अपने विरोधियों को भी साधने में सफलता हासिल कर ली है।