चीन भारत और ताइवान पर हमला करने की फिराक में है! साल 2012 में शी जिनपिंग ने पहली बार चीन के राष्ट्रपति का पद संभाला था। उन्हें सत्ता पर काबिज हुए 10 साल हो चुके हैं। इस एक दशक में वह न केवल चीन बल्कि पूरी दुनिया के ताकतवर नेता बन गए हैं। राजधानी बीजिंग के ग्रेट हॉल में रविवार से सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं नेशनल कांग्रेस का आगाज हुआ है। पांच साल में एक बार होने वाले इस कार्यक्रम के पहले दिन जिनपिंग ने हांगकांग और ताइवान पर जो कुछ भी हुआ, उससे इस बात का तो तीसरा इशारा मिल गया कि अगले कुछ सालों में उनके तेवर कैसे होने वाले हैं।
इस राष्ट्रीय कांग्रेस में जिनपिंग अपने तीसरे कार्यकाल की तरफ बढ़ रहे हैं। वह न केवल पार्टी के जनरल सेक्रेटरी हैं बल्कि चाइना मिलिट्री कमीशन के भी चेयरमैन हैं। 69 साल के जिनपिंग को पार्टी की तरफ से एक बार फिर पांच सालों के लिए देश की कमान सौंपी जा सकती है। जिनपिंग अब देश के संस्थापक माओत्से तुंग से भी ज्यादा ताकतवर हो गए हैं। मार्च 2023 में उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है लेकिन इसे एक बार फिर बढ़ाए ये जाने की पूरी संभावना है।जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने न सिफ घरेलू स्तर पर बल्कि विदेश नीति के स्तर पर भी कई बदलाव देखे हैं। जिनपिंग की लीडरशिप में कम्युनिस्ट पार्टी अब इतनी मजबूत हो गई है कि चीन के चप्पे-चप्पे पर जो उसकी नजरें हैं ही साथ ही साथ विदेशों में भी उसके जासूस मौजूद हैं। चीन की सोसायटी दुनिया का वह हिस्सा है जिस पर सबसे ज्यादा जासूसी, उसकी सरकार ही करती है है।
चीन ने जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद ‘वोल्फ वॉरियर’ की नीति अपनाई। यानी वह विदेश नीति जो काफी आक्रामक है, खासतौर पर अमेरिका से जुड़े मसलों को लेकर। आए दिन अमेरिका पर आक्रामक बयान दिए जाते हैं। इसके अलावा अमेरिका की अगुवाई वाले पश्चिमी ब्लॉक जापान को लेकर भी चीन काफी आक्रामक है। विदेश नीति के पूर्व नेता देंग शियाओपिंग मानते थे ‘अपनी ताकत को छिपाकर अपना समय बिताने की कोशिशें करें।’जिनपिंग इससे अलग सोचते हैं और अपनी ताकत को सबके सामने लाने में यकीन करते हैं।
घरेलू स्तर पर जापान के खिलाफ चीन में राष्ट्रवाद की भावना मजबूत हो रही है। दक्षिण कोरिया ने भी जिनपिंग के पहले कार्यकाल में ही मुश्किल समय देख लिया था। उस समय दक्षिण कोरिया के सामान का बायकॉट चीन में किया गया और इससे उसका बिजनेस खतरे में आ गया। वर्तमान समय में ताइवान विदेश नीति के केंद्र में है।जुलाई 2021 में सीपीसी ने 100 वर्ष पूरे किए थे। उस समय जिनपिंग ने वादा किया था कि वह ताइवान को चीन के साथ मिलाकर रहेंगे। साथ ही उन्होंने ताइवान के आजादी हासिल करने के किसी भी तरह के प्रयासों को कुचलने की बात भी कही थी। अगस्त में जब अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान गईं तो पीएलए ने अपनी सबसे बड़ी मिलिट्री ड्रिल लॉन्च कर दी।
इससे साफ हो गया कि चीन की सेनाओं ने पहले ही मिलिट्री ड्रिल की तैयारी कर रखी थी। ताइवान पर चीन मिलिट्री एक्शन लेगा या नहीं, इस बात का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है। लेकिन इस बात में कोई शंका नहीं है कि पीएलए के एयरक्राफ्ट और जहाज अब ताइवान की सीमा में बिना रुके घुसपैठ करते रहेंगे।
अमेरिका, ताइवान के करीब हो रहा है और चीन के रिश्ते इस वजह से बिगड़ते जा रहे हैं। जुलाई में जब जिनपिंग ने अपने अमेरिकी समकक्ष जो बाइडेन से फोन पर बात की थी तो उन्होंने साफ कर दिया था कि ताइवान पर वह आग से खेल रहे हैं।
वहीं रूस के साथ चीन की बढ़ती नजदीकी अमेरिका को परेशान करने वाली हैं। इस साल फरवरी में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चीन गए थे और उन्होंने यह पर जिनपिंग के साथ साझा बयान जारी किया था। पुतिन ने कहा था, ‘दोनों देशों के बीच दोस्ती की कोई सीमा नहीं है और ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां पर आपसी सहयोग न हो।’ चीन ने रूस की तरफ से यूक्रेन पर किए गए हमले की निंदा नहीं की है। उसने न ही इस जंग को कोई हमला माना है। वहीं चीन प्रतिबंधों के लिए पश्चिमी देशों की निंदा कर रूस को राजनयिक मदद भी मुहैया करा रहा है। पुतिन भी ताइवान पर पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप के विरोध आवाज उठा चुके हैं।
अगर बात भारत की करें तो साल 2020 से ही ईस्टर्न लद्दाख में एलएसी पर टकराव जारी है। जून 2020 में गलवान हिंसा के बाद से हालात गंभीर हो गए हैं। जिनपिंग ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एससीओ सम्मेलन में हिस्सा लिया और एक दूसरे के साथ फोटोग्राफ भी खिचवाईं। साल 2018 और 2019 में मोदी और जिनपिंग की मुलाकात हुई थी। दोनों नेता दो बार अनौपचारिक सम्मेलनों के तहत मिले थे। फिलहाल इस समय दोनों देशों के बीच न तो कोई डायरेक्ट फ्लाइट है और आपसी सहयोग भी बहुत कम है।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में चीन के मामलों के जानकार वू गूओगुआंग की मानें तो साल 2012 से जिनपिंग के शासन को देखने के बाद विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि अगले पांच सालों में कुछ नया नहीं होने वाला है और ऐसे में लोगों को कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। दुनिया के लिए बस एक सकारात्मक बात है कि जिनपिंग ने अपनी पार्टी का असली रंग सबके सामने लाकर रख दिया है। उनके दो कार्यकाल दमनकार रहे हैं और अब तीसरा शुरू होने वाला है।