भारत का मसाला रूट चीन के सिल्क रूट को टक्कर दे सकता है! दुनियाभर में अपनी बादशाहत को फिर से कायम करने के लिए चीन ने बेल्ट एंड रोड परियोजना के नाम पर नया ‘सिल्क रूट’ बनाने का काम शुरू किया है। सिल्क या रेशम मार्ग वह रास्ता था जिसके जरिए प्राचीन रोमन काल में चीन पश्चिमी देशों के साथ व्यापार करता था। इसी मार्ग के जरिए पहली बार रेशम यूरोप पहुंचा था। अब चीन 900 अरब डॉलर के भारी भरकम बजट की मदद से इसी रेशम मार्ग को फिर से तैयार करने की कोशिश कर रहा है ताकि कई वर्षों तक पूरी दुनिया पर एकछत्र राज किया जा सके। इसके लिए चीन पानी की तरह से पैसा बहा रहा है और भारत के करीबी देशों श्रीलंका, पाकिस्तान, कंबोडिया जैसे देशों को अपने कर्ज जाल में फंसा चुका है। सिल्क रूट के जरिए चीन की ओर से हो रही इस घेरेबंदी का करारा जवाब देने के लिए भारत ने भी अपने प्राचीन ‘हथियार’ में फिर से धार देना शुरू कर दिया है। भारत प्राचीन समय में प्रचलित ‘मसाला रूट’ को फिर से गति दे रहा है।
भारत में नीदरलैंड के राजदूत रह चुके फोन्स स्टोलिंगा ने एक ट्वीट करके अडानी ग्रुप के इजरायल के हाइफा बंदरगाह को खरीदने के कदम की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा, ‘भारत अपना खुद का नया सिल्क रूट जिसे अब नया स्पाइस रूट कहिए, इजरायल, दुबई और अबूधाबी के सहयोग से बना रहा है। अडानी पोर्ट ने जो इजरायल के हाइफा बंदरगाह का अधिग्रहण किया है, वह बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह बहुत चालाकी से उठाया गया कदम है।’ भारत के इस कदम की यूं ही तारीफ नहीं हो रही है, इसकी बड़ी वजह भी है। भारत में सबसे बड़े निजी बंदरगाह मुंद्रा को संचालित करने वाले अडानी ग्रुप ने पिछले दिनों इजरायल के दूसरे सबसे बड़े बंदरगाह हाइफा का 1.18 अरब डॉलर में अधिग्रहण किया है। अडानी ग्रुप ने कहा है कि इस बंदरगाह की मदद से हम यूरोप के बंदरगाह क्षेत्र में अपनी पकड़ को मजबूत कर सकेंगे। इसमें पश्चिम एशिया का विशाल बाजार भी शामिल है।
अडानी समूह ने कहा है कि इसके लिए वह भारत में अपने पोर्ट से हाइफा के बीच एक रणनीतिक व्यापार लेन को विकसित करेगी। कंपनी का मानना है कि इजरायल उसके लिए इजरायल और पश्चिम एशिया से जोड़ने का रास्ता साबित होगा। भारत का इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात से बहुत करीबी संबंध है और यह दोस्ती अब भारत के मसाला रूट का प्रमुख मार्ग साबित होने जा रही है। दरअसल, चीन के सिल्क रूट को लॉन्च करने के बाद अब समुद्र में खासतौर पर हिंद महासागर में अपने प्रभाव को बढ़ाने की होड़ लग गई है। भारत चीन के सिल्क रूट को टक्कर देने के लिए प्राचीन मसाला मार्ग पर दांव लगा रहा है। यही वजह है कि भारत ओमान के साथ अपनी दोस्ती को मजबूत कर रहा है जो मसाला मार्ग का प्रमुख पड़ाव था। भारत के केरल राज्य से मसाले ओमान के मस्कट तक जाते थे। भारत से मसाला खरीदकर अरब व्यापारियों ने भी जमकर पैसा कमाया था। रोमन साम्राज्य भी भारत से मसाले आयात करता था। केरल से मसालों का निर्यात 600 ईसापूर्व तक पुराना है।
यूरोपीय उपनिवेशवादी ताकतों के आने तक अरब व्यापारियों का मसालों के कारोबार पर दबदबा बना रहा था। प्राचीन काल में कई सदियों तक ओमान से भारत को खजूर और सोने का निर्यात होता था, वहीं भारत मसाला और कपड़े मस्कट भेजता था। इस लेनदेन से दोनों ही देशों को काफी फायदा हुआ था। दोनों ही सभ्यताओं के बीच एक सांस्कृतिक और व्यापारिक रिश्ता बना था जिसका असर आज भी ओमान में साफ तौर पर देखा जाता है। ओमान के रास्ते भारतीय मसाला यूरोप के बाजार तक पहुंच जाता था। भारत अब सक्रिय रूप से हिंद महासागर के देशों के साथ अपने समुद्री और रणनीतिक रिश्ते को मजबूत कर रहा है ताकि चीन के बढ़ते प्रभाव को जवाब दिया जा सके। चीन ने पूर्वी अफ्रीका, सेशेल्स, मारिशस, मालदीव, बांग्लादेश, म्यांमार, पाकिस्तान और श्रीलंका के साथ जहां करीबी संबंध बना लिया है, वहीं भारत भी अब बहुत तेजी से चीन को टक्कर दे रहा है। कंगाली की हालत से गुजर रहे श्रीलंका को भारत ने 4 अरब डॉलर की मदद दी है।
चीन ने नए सिल्क रूट की मदद से जहां न केवल अपने आर्थिक और ऊर्जा हित को सुरक्षित कर रहा है, वहीं भारत की जोरदार घेरेबंदी भी कर रहा है। चीन के दबाव के आगे झुकते हुए श्रीलंका ने भारत के विरोध के बाद भी पिछले दिनों जासूसी जहाज को अपने यहां रुकने के मंजूरी दे दी थी। माना जा रहा है कि आने वाले समय में चीन के घातक युद्धपोत और पनडुब्बियां इस इलाके में अपनी गश्त को बढ़ाने जा रहे हैं। इसी खतरे को देखते भारत ने प्रॉजेक्ट मौसम शुरू किया है। भारत अब खाड़ी देशों के साथ अपने व्यापारित रिश्ते को नई ऊंचाई दे रहा है जहां लाखों की तादाद में भारतीय समुदाय के लोग रहते हैं। ये भारतीय कामगार अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा हर साल भारत भेजते हैं। केवल ओमान में भी 7 लाख से ज्यादा भारतीय समुदाय के लोग रहते हैं। भारत ओमान के साथ अपने सैन्य रिश्ते को भी मजबूत कर रहा है। भारत और यूएई के बीच अभी हर साल 60 अरब डॉलर का व्यापार होता है जिसे अगले दो साल में बढ़ाकर 100 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा गया है। पीएम मोदी के शासन काल में यूएई के साथ बहुत करीबी रिश्ते हो गए हैं और हाल ही में प्रधानमंत्री यूएई गए भी थे। यही नहीं यूएई में 34 लाख से ज्यादा भारतीय रहते हैं जो वहां की कुल आबादी का 38 फीसदी है।