आज हम आपको एक ऐसे GRP हेड कॉन्स्टेबल की कहानी सुनाएंगे, जिसने 150 से ज्यादा भीख मांगने वाले बच्चों की जिंदगी बदल दी है! ट्रेन में भीख मांगने वाले बच्चों को कलम पकड़ाने वाले जीआरपी के मुख्य आरक्षी रोहित कुमार को मुख्यालय पुलिस महानिदेशक ने सम्मानित करने का निर्णय लिया है। इस संबंध में उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक झांसी को पत्र भेजकर आज एक सितंबर को वर्किंग यूनिफॉर्म में एक उपनिरीक्षक के साथ भेजने को कहा है। यह सम्मान रोहित कुमार को जीआरपी में मुख्य आरक्षी के रूप में काम करते हुए भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के चलते दिया जा रहा है। रोहित ने भीख मांगने वाले चार बच्चों के साथ एक पेड़ के नीचे एक क्लास शुरू की थी। आज यह विद्यालय भवन में व्यवस्थित हो गया है, और छात्रों की संख्या भी डेढ़ सौ के पार हो गई है।
इटावा जिले के भरथना थाना अंतर्गत मुरैना निवासी मुख्य आरक्षी रोहित कुमार फ्रीडम फाइटर परिवार से जुड़े हैं। जिनके बाबा स्वर्गीय तेज सिंह और नाना रामेश्वर दयाल फ्रीडम फाइटर रह चुके हैं। जबकि पिता चंद्र प्रकाश यादव एयर फोर्स से सेवानिवृत्त हुए थे। रोहित कुमार ने बताया कि उनके गांव में शिक्षा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। खासकर लड़कियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था। उनके गांव के आसपास हमेशा पानी भरा रहता था। जिसके बीच से उन्हें पढ़ाई के लिए जाना पड़ता था।
रिटायरमेंट होने के बाद उनके पिताजी चंद्रप्रकाश द्वारा बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए गांव में ही 1986 में विद्यालय खोला गया। इसी बीच एक व्यापार भी डाला गया। लेकिन व्यापार में काफी नुकसान हो गया। इसका असर विद्यालय पर भी पड़ा और 1990 में विद्यालय बंद हो गया। यहीं से उनके अंदर विचार आया कि यदि वह कुछ बन जाते हैं तो अभाव में रहने वाले बच्चों के लिए एक विद्यालय खोलेंगे।मुख्य आरक्षी रोहित कुमार उन्नाव से रायबरेली के बीच चलने वाली ट्रेन में ड्यूटी कर रहे थे। उन्होंने देखा कि कोरारी रेलवे स्टेशन पर कुछ बच्चे भीख मांग रहे हैं। ड्यूटी पूरी करने के बाद रोहित कुमार कोरारी पहुंचे और उन्होंने बच्चों के साथ उनके अभिभावकों से भी बातचीत की। उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। रेलवे स्टेशन के पास एक पेड़ के सहारे ब्लैकबोर्ड खड़ा करके चार बच्चों को रोहित कुमार ने पढ़ाना शुरू किया। इस बात का भी प्रयास करते रहे कि और अधिक लड़के पढ़ने के लिए आएं। एक बार शुरुआता हुई तो मलिन बस्ती में रहने वाले तमाम बच्चे पढ़ने के लिए आने लगे।
रोहित कुमार का विद्यालय ‘हर हाथ कलम में पाठशाला’ उस समय चर्चा में आया। जब उनका स्थानांतरण उन्नाव जंक्शन रेलवे स्टेशन से झांसी सिविल पुलिस में कर दिया गया।इसका असर विद्यालय पर भी पड़ा और 1990 में विद्यालय बंद हो गया। यहीं से उनके अंदर विचार आया कि यदि वह कुछ बन जाते हैं तो अभाव में रहने वाले बच्चों के लिए एक विद्यालय खोलेंगे।मुख्य आरक्षी रोहित कुमार उन्नाव से रायबरेली के बीच चलने वाली ट्रेन में ड्यूटी कर रहे थे। उन्होंने देखा कि कोरारी रेलवे स्टेशन पर कुछ बच्चे भीख मांग रहे हैं। ड्यूटी पूरी करने के बाद रोहित कुमार कोरारी पहुंचे और उन्होंने बच्चों के साथ उनके अभिभावकों से भी बातचीत की। उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। रेलवे स्टेशन के पास एक पेड़ के सहारे ब्लैकबोर्ड खड़ा करके चार बच्चों को रोहित कुमार ने पढ़ाना शुरू किया। इस बात का भी प्रयास करते रहे कि और अधिक लड़के पढ़ने के लिए आएं। एक बार शुरुआता हुई तो मलिन बस्ती में रहने वाले तमाम बच्चे पढ़ने के लिए आने लगे। स्थानांतरण की खबर मिलते ही विद्यालय के छात्रों और उनके अभिभावकों में उदासी छा गई। बच्चे अपने रोहित भैया से लिपटकर बिलख बिलखकर रोने लगे। वीडियो वायरल होने के बाद यह विद्यालय चर्चा में आया।
उनके इस कार्य को पुलिस महानिदेशक कार्यालय द्वारा सराहा गया और उन्हें 2 सितंबर को पुरस्कृत करने का निश्चय किया। इसके पूर्व जीआरपी एसएसपी मोहम्मद मुस्ताक लखनऊ और आगरा अनुभाग के निर्देश पर जीआरपी थानाध्यक्ष ने विद्यालय जाकर बच्चों को कलम किताबों आदि का वितरण किया।रेलवे स्टेशन के पास एक पेड़ के सहारे ब्लैकबोर्ड खड़ा करके चार बच्चों को रोहित कुमार ने पढ़ाना शुरू किया। इस बात का भी प्रयास करते रहे कि और अधिक लड़के पढ़ने के लिए आएं। एक बार शुरुआता हुई तो मलिन बस्ती में रहने वाले तमाम बच्चे पढ़ने के लिए आने लगे। जीआरपी थानाध्यक्ष राज बहादुर सिंह ने कहा कि आप लोगों को रोहित कुमार की कमी महसूस नहीं करने दी जाएगी। कॉस्टेबल अंकित वर्मा और शिखा तोमर की पाठशाला में ड्यूटी पढ़ाने में लगाई गई है।