एक टाइगर के शावक को पालना बहुत बड़ा मिशन कहलाता है! बच्चे इंसान के हों या जानवरों के, माता-पिता ही उन्हें जीवन के गुर सिखाते हैं। उन्हें अच्छा इंसान और जानवरों के केस में सर्वाइव करना सिखाते हैं। लेकिन अगर जानवर का बच्चा भटक जाए तो क्या होगा? आपने देखा भी होगा भीड़भाड़ वाली जगहों पर छोटे बच्चों का हाथ पकड़कर रखा जाता है कि कहीं वे रास्ता भटक न जाएं। जंगल में जानवर भी कुछ ऐसा ही करते हैं। छोटे शावकों को अपने साथ लेकर चलते हैं लेकिन बच्चों का मन तो चंचल होता है। वे भटक जाते हैं। अब जरा सोचिए टाइगर का कोई बच्चा भटक गया हो और इंसानों को मिल जाए तो उसे सर्वाइव करने वाला जंगली टाइगर कैसे बनाया जाएगा? ये सच्ची कहानी है। कैसे खूंखार जानवर के बच्चे को पालने के लिए अपने घरबार से दूर दिन-रात दो इंसान मेहनत कर रहे हैं।
तमिलनाडु में 28 सितंबर 2021 को आठ महीने के टाइगर के एक बच्चे को बचाया गया था। वह एक बागान में फंस गया था। वह कमजोर और घायल हो गया था। साही ने उस पर जानलेवा हमला किया था। शावक को 10,000 वर्ग फीट के क्षेत्र में छोड़ा गया जहां एक गुफा और एक तालाब भी था। जंगली जानवर के इस बच्चे की देखरेख करने के लिए चार लोगों को जिम्मेदारी सौंपी गई। दो लोग पास जाकर खाने-पीने का इंतजाम देखते हैं और दो ऐक्टिविटी पर नजर रखते हैं।खास बात यह है कि टाइगर के इस बच्चे को जंगली बनाने के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। जो दो लोग उसके करीब जाते हैं, वे शरीर पर गोबर लगाए होते हैं और चेहरे पर तेंदुए का मास्क पहने होते हैं। इसका मकसद यह होता है कि शावक को इंसान के पसीने की गंध या किसी भी तरह से इंसानों की मालूमात न हो क्योंकि जंगल में उसका सामना जंगली जीवों से ही होने वाला है। केयरटेकर्स के कपड़े भी धुले नहीं होते हैं।
डी. कुमार ने अपने यूनिफॉर्म को एक साल से नहीं धोया है। तमिलनाडु फॉरेस्ट डिपार्टमेंट पहली बार इस तरह का प्रोग्राम चला रहा है। टीम एक साल से 24 घंटे काम कर रही है जिससे टाइगर के बच्चे को उस स्थिति में लाया जा सके कि वह अपने स्वाभाविक ठिकाने की तरफ लौट सके और वहां रहने की स्थिति बन सके।टाइगर का शावक उस समय 8 महीने का था जब पिछले साल सितंबर में उसे अन्नामलाई टाइगर रिजर्व में पाया गया। कुमार बताते हैं कि रिवाइल्डिंग एक लंबी प्रक्रिया है। उन्होंने कहा, ‘मेरे दिन की शुरुआत सुबह 4 बजे होती है और शावक की सीसीटीवी फुटेज देखना शुरू हो जाता है। अगर मुझे शावक के पास जाना होता है तो मैं जंगली छाप वाला यूनिफॉर्म पहनता हूं, जिसे मैंने एक साल से नहीं धोया है। इसकी वजह यह है कि शावक को साबुन या केमिकल की गंध न पता चले।’
उन्होंने बताया कि वह शेर, तेंदुआ या गोरिल्ला का मास्क पहनकर ही शावक के पास जाते हैं, जिससे वह इंसानों से अपरिचित रहे। बायोलॉजिस्ट टी वणिदास 24×7 मॉनिटरिंग करते हैं। उन्होंने बताया कि हम दो लोग ही टाइगर के करीब गए हैं। हम अपने शरीर पर कीचड़ या गोबर लगाते हैं जिससे पसीने की गंध टाइगर तक न पहुंचे।टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी की गाइडलाइंस के अनुसार, यह रिवाइल्डिंग प्रॉसेस करीब 2 साल का वक्त लेती है और जंगल में छोड़ने से पहले जानवर का कम से कम 50 जंगली जानवरों का शिकार जरूरी होता है। सर्जरी के बाद टाइगर का यह बच्चा खरगोश के अलावा तीन जंगली सूअरों का शिकार कर चुका है। कुमार उसी गेस्ट हाउस में रहते हैं जहां करीब में टाइगर को रखा गया है। वह बताते हैं कि उन्होंने अपने परिवार को हफ्तों से नहीं देखा है।
11 साल की बेटी के पिता कुमार ने कहा, ‘वणिदास और मैं, महीने में एक बार घर जाते हैं।’ वह कहते हैं कि मैं छुट्टी लेना नहीं चाहता क्योंकि इस टाइगर के बच्चे की चिंता लगी रहती है। वणिदास की चार साल की बेटी है और वह एक साल में केवल 12 बार घर गए थे।
अब शावक का वजन 114 किलो है। एक्सपर्ट कहते हैं कि बच्चे ने शिकार करना शुरू कर दिया है और दांतों की सर्जरी के बाद खाने में कोई दिक्कत नहीं है। जंगल में छोड़ने से पहले अब उसे बड़े बाड़े में डालने की चर्चा चल रही है।