गुजरात चुनाव में आम आदमी पार्टी को कुछ नया करके दिखाना होगा! गुजरात विधानसभा चुनाव में पहली बार किस्मत आजमा रही आम आदमी पार्टी AAP पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में है। चुनाव तारीखों का ऐलान अगले कुछ ही दिनों में होने वाला है। इससे पहले आज शनिवार आम आदमी पार्टी ने क्लियर कर दिया कि गुजरात चुनाव में स्थानीय चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी। गुजरात में आम आदमी पार्टी की ओर से सीएम का चेहरा कौन होगा इसके लिए कैंपेन चलाया जाएगा और इस पर लोगों से राय ली जाएगी। पंजाब के बाद गुजरात में AAP वही फॉर्मूला अपनाने जा रही है। दिल्ली, पंजाब , उत्तराखंड और दूसरे राज्यों को भी देखा जाए तो आम आदमी पार्टी ने चुनाव को लेकर कुछ अपनी रणनीति में बदलाव किया है तो वहीं एक फॉर्मूला ऐसा भी है जिसे उसने आज तक नहीं बदला है। किसी नए राज्य में कदम रखने से पहले नए राजनीतिक दल को लेकर तमाम आशंकाएं व्यक्त की जाती हैं। हालांकि इस मामले में आम आदमी पार्टी की स्ट्रैटजी अलग रही है और यही वजह है कि AAP को लेकर ऐसे दावे नहीं किए जाते। जीत-हार और कितनी सीटें मिलेंगी यह आगे की बात है लेकिन आम आदमी का एक फॉर्मूला हिट है और उसे वह छोड़ना भी नहीं चाहती।
आम आदमी पार्टी की जब भी बात होगी दिल्ली का जिक्र जरूर ही होगा। आम आदमी पार्टी की पहचान के पीछे दिल्ली का अहम रोल है। आम आदमी पार्टी की रणनीति और आगामी योजना में दिल्ली है। आज आम आदमी पार्टी की दिल्ली के बाहर पंजाब में सरकार है और जिस तरीके से पार्टी आगे बढ़ रही है उसे राष्ट्रीय दल का दर्जा भी जल्द मिलने की संभावना है। दिल्ली में 2015 से आम आदमी पार्टी की सरकार है इससे पहले भी 2013 में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई लेकिन सिर्फ 49 दिनों के लिए। अगला चुनाव अपने दम पर लड़ा और शानदार जीत दर्ज की। दिल्ली के चुनावी इतिहास में 28 दिसंबर 2013 की तारीख एक बड़े उलटफेर के साथ दर्ज हैं। इसी दिन आम आदमी पार्टी (आप) ने कांग्रेस की मदद से दिल्ली में पहली बार सरकार बनाई। 2015 में 67 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाया और फिर 2020 में 62 सीटें जीतकर दोबारा सत्ता में आए। पहली बार चुनाव मैदान में गए और जो स्ट्रैटजी अपनाई उसे आज तक AAP ने नहीं छोड़ा। दिल्ली, पंजाब और दूसरे राज्यों में एंट्री ऐसी कि सत्ता में आने वाले हैं। इसमें कामयाबी भी मिली और फेल भी हुए लेकिन आज भी इसमे बदलाव नहीं आया है।
अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन छोड़कर राजनीति में आए केजरीवाल के नेतृत्व में 2013 में चुनावी समर में उतरी आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा में अपनी किस्मत आजमाई और 28 सीटें जीतकर सारे राजनीतिक विश्लेषकों के अनुमानों को गलत साबित कर दिया। इस चुनाव से पहले किसी को यकीन नहीं था कि आम आदमी पार्टी इतनी सीटें जीतेगी। जिस दिन से आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में तैयारी शुरू की उसी दिन से अरविंद केजरीवाल समेत पार्टी के दूसरे नेता एक बात कहते थे कि वह सरकार बनाने जा रहे हैं। वह सत्ता में आ रहे हैं। आम आदमी पार्टी की ओर से सर्वे और कई दूसरे रिपोर्ट का हवाला देकर यह प्रोजेक्शन कि हम सत्ता में आ रहे हैं। सीटों की संख्या भी बताई गई। यह विश्वास काम आया। दिल्ली के 2015 और 2020 के चुनाव में और भी नतीजे शानदार रहे। दिल्ली के बाद पंजाब में भी यह स्ट्रैटजी अपनाई गई। पहले चुनाव में सीधे दूसरे बड़े दल और अगले चुनाव में सत्ता भी मिल गई। यह प्रयोग कुछ राज्यों में फेल भी हुआ जिसमें उत्तराखंड शामिल है लेकिन AAP ने अपने इस फॉर्मूले को नहीं बदला है। गुजरात में भी वही देखने को मिल रहा है। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने दावा किया कि आम आदमी पार्टी को इस चुनाव में 90 से 93 सीटें मिलेंगी।
पंजाब चुनाव 2017 में जब आम आदमी पार्टी चुनाव में गई तब पहली बार में पार्टी दूसरे नंबर पर आ गई। वह पंजाब की कुर्सी तक नहीं पहुंची लेकिन लोगों लगा कि यहां पार्टी चुनाव जीत सकती है। पार्टी के नेताओं ने भी मंथन शुरू किया कि क्या कमी रह गई और क्या कुछ किया जिससे अगले चुनाव में पार्टी को जीत मिले। अरविंद केजरीवाल समेत दूसरे नेताओं ने यह महसूस किया कि किसी स्थानीय नेता का चेहरा आगे करना होगा। पार्टी ने भगवंत मान का नाम बढ़ाया और उस नाम पर सहमति बनी। इसका पार्टी को गजब का फायदा हुआ और शानदार जीत करते हुए आम आदमी पार्टी की यहां सरकार बनी। 2022 में पंजाब में सीएम चेहरा तय करने पार्टी ने एक मोबाइल नंबर जारी करके लोगों से मुख्यमंत्री का चेहरा बताने शुरुआत की थी। इस कैंपेन के बाद भगवंत मान का नाम तय किया था। पंजाब का यह सफल प्रयोग गुजरात में भी हो रहा है। पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने गुजरात के लिए पार्टी की ओर से सीएम चेहरा कौन होगा इसके लिए एक नंबर जारी किया। अरविंद केजरीवाल ने कहा कि 6357000360 पर मैसेज करके लोग अपनी राय रख सकते हैं। इसके साथ ही यह तय हो गया कि पार्टी स्थानीय चेहरे पर दांव लगाएगी। पहले यह रणनीति का हिस्सा नहीं था लेकिन पंजाब चुनाव के बाद पार्टी इस ओर आगे बढ़ी है। उत्तराखंड में भी पार्टी ने ऐसा किया था हालांकि यहां सफलता नहीं मिली।
अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी ने आगामी गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों की सातवीं सूची जारी कर दी है। पार्टी ने अब तक 86 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिये हैं। आम आदमी पार्टी जिस राज्य में चुनाव में जाती है वहां वह पहले ही उम्मीदवारों की सूची जारी करती है। आम आदमी पार्टी इस मामले में दूसरे दलों से थोड़ा अलग प्रयोग करती है। एक ओर जहां दूसरे दल आखिरी वक्त उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं करते। वहीं आम आदमी पार्टी चुनाव से काफी पहले सूची जारी करती है। कुछ दल जहां दूसरे दलों के कैडिंडेट पर नजर लगाए रखते हैं और इस बात के इंतजार में रहते हैं कि टिकट न मिलने पर यहां आएंगे तो टिकट देंगे। इस मामले में आम आदमी पार्टी का प्रयोग अलग है। गुजरात में अब तक जिन सीटों उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की गई, उनमें काडी (एससी), गांधीनगर (उत्तर), वाधवान, मोरबी, जसदान, जेतपुर, कलावाड़ (एससी), जामनगर (ग्रामीण), महमेदाबाद, लूनावाड़ा, सांखेड़ा (एसटी), मांडवी (एसटी) और महुवा (एसटी) शामिल हैं।
किसी राज्य में जहां किसी नए राजनीतिक दल की एंट्री होती है तो उसको लेकर तमाम आशंका व्यक्त की जाती है। कितनी सीटें मिलेंगी क्या रिजल्ट रहेगा… ऐसे तमाम सवाल। इस मामले में आम आदमी पार्टी की स्ट्रैटजी अलग है। उनकी ओर से बदलाव की बात की जाती है साथ ही दूसरे दलों पर दबाव भी डाला जाता है। दिल्ली के शुरुआती दो चुनाव यदि याद है तो ऑटो पर वह तस्वीर आज तक लोग नहीं भूले। शीला दीक्षित, अरविंद केजरीवाल वहीं बीजेपी की ओर से कौन इसको लेकर सवाल पूछा जाता था। इस प्रेशर पॉलिटिक्स का नतीजा रहा कि बीजेपी ने आनन-फानन में किरण बेदी के नाम का ऐलान किया। वहीं शीला दीक्षित या अरविंद केजरीवाल कौन इसको लेकर सवाल पूछे गए। 2014 वाराणसी का चुनाव जहां अरविंद केजरीवाल पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने पहुंचे थे वहां भी उन्होंने रायशुमारी का सवाल उठाया। आम आदमी पार्टी के प्रचार का जो तरीका है उससे कई बार दूसरी पार्टियां बैकफुट पर आ जाती हैं। हालांकि इस बार गुजरात में मुकाबला है जहां बीजेपी कई वर्षों से सत्ता में है।