Monday, December 23, 2024
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क्या CAA पर घिरेगी मोदी सरकार?

मोदी सरकार CAA मामले मे घिर सकती है! सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर दाखिल याचिकाओं पर तीन सप्ताह बाद सुनवाई करेगा। शीर्ष अदालत में सीएए के खिलाफ 250 से ज्यादा याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इन याचिकाओं में 52 से ज्यादा केवल असम और त्रिपुरा से दाखिल की गई हैं। कोर्ट ने इन दोनों राज्यों को सीएए की संवैधानिक वैधता वाली याचिकाओं पर जवाब देने के लिए 3 सप्ताह का समय दिया है। शीर्ष अदालत ने इस मामले से जुड़े सभी पक्षों को लिखित सबमिशन मांगा है ताकि 6 दिसंबर से इस मामले की सुनवाई शुरू हो सके। केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट औरजस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ को बताया कि केंद्र ने अपना जवाब दाखिल कर दिया है। उन्होंने राज्यों की तरफ से जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा।

केंद्र की सीएए योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग पक्षों की तरफ से 250 से ज्यादा याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लॉ सीएए के खिलाफ याचिका दाखिल करने वाला मुख्य वादी है। 18 दिसंबर 2019 को इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीएए पर रोक की मांग वाली याचिका ठुकरा दी थी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को इस बाबत नोटिस जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जनवरी 2020 के दूसरे सप्ताह में इसपर जवाब दाखिल करने को कहा था। हालांकि, इसके बाद कोविड-19 के प्रतिबंधों के बाद सुनवाई फिर पूरी तरह से नहीं हो सकी थी। आखिरी बार इन याचिकाओं पर सुनवाई 15 जून 2021 को हुई थी। इसके बाद 31 अक्टूबर 2022 को सुनवाई हुई।

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने अपनी याचिका में कहा है कि इस कानून से समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है। इसके अलावा धर्म के आधार पर किसी समुदाय को छोड़ना गैरकानूनी है। इसके अलावा कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी सीएए के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। आरजेडी नेता मनोजझा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी, जमात उलेमा-ए-हिंद, ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (AASU), पीस पार्टी, सीपीआई, एनजीओ रिहाई मंच, सिटिजन अगेंस्ट हेट, वकील एम एल शर्मा समेत वकालत की पढ़ाई करने वाले कई छात्रों ने भी सीएए के खिलाफ याचिका दाखिल की थी।

नागरिकता संशोधन कानून 11 दिसंबर 2019 को संसद में पास हुआ था। हालांकि, इस कानून के पास होते ही देशभर में जोरदार विरोध-प्रदर्शन हुए थे। इस कानून को 10 जनवरी 2020 को लागू किया गया था।नागरिकता संशोधन कानून 2019 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है। पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था। इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है। यानी इन तीनों देशों के ऊपर उल्लिखित छह धर्मों के लोग अगर देश में 31 दिसंबर 2014 से पहले आए हैं तो वो भारत की नागरिकता के अधिकारी होंगे। यानी बीते एक से छह सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी। आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत के तीन मुस्लिम बहुसंख्यक पड़ोसी देशों से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में कहा था कि सीएए कानून के जरिए हिंदू, सिख, जैन, पारसी और ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों को नागरिकता मिलेगी। कोर्ट ने इस कानून से मुस्लिम को अलग रखने के तर्क को केंद्र ने समर्थन भी किया। केंद्र की तरफ से दलील दी गई कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यकों पर पिछले 70 साल से अन्याय हुआ है। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि अदालत इसपर फैसला लेते समय असम समझौते और त्रिपुरा तथा त्रिपुरा ट्राइबल फोर्सेस के बीच हुए समझौते का भी ध्यान रखना चाहिए। इन समझौते के तहत कुछ इलाकों में सीएए के लाभार्थी नहीं बसेंगे।

चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी के नेतृत्व वाली पीठ ने दो वकीलों- पल्लवी प्रताप और कनू अग्रवाल को 230 से अधिक याचिकाओं को सुचारू रूप से संभालने और याचिकओं में से प्रमुख याचिकाएं तय करने में सहायता करने के लिए नोडल वकील के रूप में नियुक्त किया। पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की इन दलीलों का संज्ञान लिया कि इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग की तरफ से दायर याचिका को मुख्य मामले के रूप में माना जा सकता है क्योंकि इस मामले में दी गईं दलीलें पूरी हैं। पीठ ने वकीलों से कहा कि वे रिकॉर्ड को आपस में डिजिटल रूप से साझा करने और लिखित दलीलें दाखिल करें जो तीन पृष्ठों से अधिक न हो। कोर्ट ने साथ ही कहा कि असम और त्रिपुरा तीन सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करेंगे। इन मामलों को छह दिसंबर, 2022 को उपयुक्त अदालत के समक्ष सूचीबद्ध करें।

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