एक ऐसा भी समय था जब पीएम मोदी ने महज़ 23 दिनों के अंदर एक किताब लिख दी थी! 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल लागू रहा था। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में इसे काले अध्याय के तौर याद किया जाता है। इस दौर को जिन लोगों को ने देखा है, वे अपने हिसाब से हालात बयां करते हैं। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं। नरेंद्र मोदी तब युवा थे। आपातकाल के दौर में वे भूमिगत भी रहे थे, लेकिन इस दौरे एक एक अच्छी बात यह हुई थी कि मोदी को लिखने की आदत पड़ी, आगे चल मोदी की यह आदत शौक में बदल गई। पीएम मोदी अब तक खुद कई किताबें लिख चुके हैं। पिछले साल उन्होंने स्कूल के विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर एक्जॉम वॉरियर्स किताब लिखी थी जो काफी सुर्खियों में रही थी। जानकर आश्चर्य होग कि युवावस्था में मोदी आपातकाल के दौर को बयां करती ‘संघर्ष में गुजरात’ किताब को महज 23 दिन में लिख डाला था। इस दौरान मोदी ने खाना भी छोड़ दिया और सिर्फ नीबू पानी पीकर इस किताब को लिखा था। दिलचस्प तथ्य यह है कि नरेंद्र मोदी की इस किताब को अहमदाबाद खमासा गेट पर पास लांच किया गया था। इस जगह पर अहमदाबाद नगर निगम की ऑफिस है। बुक लांच करने के लिए तब तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूभाई जसभाई पटेल खुद पहुंचे थे और किताब को लांच किया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपातकाल के काफी ऐसे पहलुओं को बयां किया गया है, जिनमें उस वक्त की दुश्वारियों का सजीव उल्लेख मिलता है। 25 साल आयु के नरेंद्र मोदी ने उस दौर में जो कुछ सहा, भोगा और देखा। उसे इसमें समेटा है। इतना ही नहीं इस किताब के जरिए मोदी ने यह बताने की कोशिश की है, उस दौरे में गुजरात ने किस तरह से आपातकाल के खिलाफ संघर्ष में केंद्रीय भूमिका निभाई थी। मोदी ने इस किताब में आपातकाल के दौर में हुई घटनाओं को काफी सरल अंदाज में बताया है। गुजरात का नवनिर्माण आंदोलन हो या फिर आपातकाल के दौरान उनका भूमिगत संषर्घ इसके तमाम किस्से गुजरात में मौजूद हैं।
पीएम मोदी ने महिला और नोट से जुड़ा वाकया भी लिखा है। मोदी लिखते हैं कि बस के अंदर एक महिला जा रही थी और कंडक्टर से जब उसने टिकट लिया और पैसे वापस दिए, एक रुपये की नोट थी, गरीब महिला थी वो उसको कह रही थी कंडक्टर को कि नोट बदल दो। कंडक्टर कह रहा था कि नोट अच्छा है, क्यों बदल दूं? वो उसको समझा रही थी, भाई मुझे नोट अच्छा कड़क चाहिए, नई चाहिए मुझे नोट तो मुझे दो। वो कंडक्टर कहने लगा नोट चले कि नहीं चले.. झगड़ा हो गया उनके बीच। तो मैं वहां अंदर बैठा था, और हम उस समय भी पता नहीं हमकों पुलिस क्या करेगी। चुनाव तो घोषित हो चुका था, तो मैंने जरा दखल देने की कोशिश की मैंने उस मां को पूछा कि मां यह नोट खराब नहीं है। यह चल सकती है, आप क्यों झगड़ा कर रही हो? उसने जो जवाब दिया मेरे लिए वो लोकतंत्र की सबसे बड़ी प्रेरणा था। उसने कहा आज हमारे गांव में बाबू भाई जस भाई पटेल आने वाले हैं शाम को और मुझे यह उनको एक रुपया दान में देना है। इसलिए मुझे कड़क नोट चाहिए, क्योंकि मुझे यह जयप्रकाश जी का जो काम चल रहा है न, उसके लिए देना है। मोदी लिखते हैं कि आपातकाल के खिलाफ हम संघर्ष कर रहे थे, तो अपना समर्थन हर तरह से दे रहे थे। यह उसका उहाहरण है।
बीजेपी में आने से पहले वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में थे। उसे वक्त उन्हें लिखने का शौक लगा था। कहते हैं मोदी अक्सर छुपकर लिखते थे और बाद में अपने परिचतों को पढ़ाकर पूछते भी थे, कि उनका लेखन कैसा है? संघर्ष में गुजरात किताब में मोदी ने जिस दौर को बयां किया है, वह गुजरात के भी उथल-पुथल वाला था। नव निर्माण मूवमेंट के चलते राज्य के 8वें कांग्रेसी सीएम चिमनभाई पटेल के इस्तीफे के बाद विधानसभा भंग कर दी गई थी। इसके बाद जब दोबारा चुनाव हुए तो 14 साल तक रहे कांग्रेसी शासन को हटाकर 18 जून 1975 को जनता मोर्चा के बाबूभाई पटेल राज्य के 9वें मुख्यमंत्री बने। वह राज्य के पहले गैर-कांग्रेसी सीएम थे। उनके सीएम बनने के हफ्तेभर बाद ही देश में आपातकाल लागू कर दिया गया, लेकिन फिर भी उन्होंने मार्च, 1976 में फिर वापसी की और सीएम की कुर्सी संभाली। 1977 में वह जनता पार्टी की तरफ से एक बार फिर राज्य के सीएम की कुर्सी पर बैठे। इसी कार्यकाल में उन्होंने नरेंद्र मोदी की पुस्तक संघर्ष में गुजरात का विमोचन किया। दूसरे कार्यकल में बाबूभाई जसभाई पटेल 2 साल 312 दिनों तक सीएम रहे।