जानिए क्या है पावर ऑफ अटॉर्नी?

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आज हम आपको पावर ऑफ अटॉर्नी के बारे में बताने जा रहे हैं! कानूनी दस्तावेजों को बनवाने, संपत्ति वगैरह की खरीदफरोख्त जैसे कामों के लिए आम बोलचाल में एक शब्द प्रचलित है- लिखापढ़ी। एक औसत भारतीय को इस शब्द से थोड़ा डर लगता है। धोखाधड़ी की गुंजाइश जो रहती है। पावर ऑफ अटॉर्नी भी ऐसा ही एक लिखापढ़ी वाला काम है। सबसे पहले तो समझते हैं कि ये सब जानने की आखिर जरूरत ही क्यों है। मान लीजिए कोई शख्स बीमार हो, बिस्तर पकड़ चुका हो या नौकरी के सिलसिले में कुछ सालों से विदेश में हो। अगर उसे कोई संपत्ति खरीदनी या बेचनी हो, कोई इम्पॉर्टेंट ट्रांजैक्शन करनी हो, आईटीआर भरना हो, बैंक से जुड़ा कोई काम करना हो तो वह क्या करेगा? ऐसी ही स्थिति के लिए है पावर ऑफ अटॉर्नी। इसे ऐसे समझिए। मान लीजिए कोई शख्स नौकरी के सिलसिले में कुछ सालों से विदेश में हो। इस बीच उसे यहां कोई संपत्ति खरीदने या बेचने की जरूरत पड़ गई। अब वह बार-बार घर तो आ नहीं सकता, इसमें खर्च जो है। छुट्टी वगैरह की बंदिशें भी हैं। ऐसे में वह क्या करे? यहां वह पावर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल कर सकता है। इसे मुख्तारनामा भी कहते हैं। वह अपनी तरफ से किसी रिश्तेदार को अधिकृत कर सकता है। वह उसकी जगह तरफ से सारी प्रक्रियाओं को औपचारिकताओं को पूरा कर देगा।

पावर ऑफ अटॉर्नी एक कानूनी दस्तावेज है जिसके जरिए कोई शख्स किसी अन्य व्यक्ति को अपनी तरफ से जरूरी ट्रांजैक्शन करने के लिए अधिकृत करता है। इसका इस्तेमाल आम तौर पर तब होता है जब कोई शख्स विदेश में हो या बहुत ज्यादा बीमार हो या फिर बढ़ती उम्र से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा हो और इस वजह से वह संपत्ति खरीदने-बेचने, टैक्स रिटर्न फाइल करने, बैंक से जुड़े कामों वगैरह को करने में असमर्थ हो। जो व्यक्ति पावर ऑफ अटॉर्नी जारी करता है उसे प्रिंसिपल, गारंटर या डोनर कहा जाता है। और वह जिस व्यक्ति के नाम इसे जारी करता है यानी जिसे अपनी तरफ से अधिकृत करता है उसे एजेंट या पावर ऑफ अटॉर्नी एजेंट कहा जाता है।

जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी में अधिकृत किए गए व्यक्ति यानी एजेंट के पास बहुत ज्यादा अधिकार मिलते हैं। वह गारंटर की तरफ से बैंक से पैसा निकाल सकता है, टैक्स भर सकता है, इन्वेस्टमेंट कर सकता है, संपत्ति खरीद या बेच सकता है, अदालत में चल रहे मामलों आदि में उसका प्रतिनिधित्व कर सकता है। चूंकि इसमें एजेंट को बहुत सारे अधिकार मिलते हैं इसलिए इसके दुरुपयोग का खतरा भी ज्यादा होता है। इसलिए जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी में एजेंट का चुनाव करते वक्त सावधानी बरतें। उसे ही चुने जो आपका बेहद भरोसेमंद हो।

अब बात स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी की। इसमें गारंटर अपने एजेंट को कुछ खास अधिकार ही देता है। जैसे उसे अपनी तरफ से अदालती कामकाज के लिए अधिकृत कर सकता है या संपत्ति को बेचने के लिए अधिकृत कर सकता है। एक बार वह काम हो गया तो पावर ऑफ अटॉर्नी अपने आप एक्सपायर हो जाएगी यानी वैध नहीं रहेगी।

गारंटर पावर ऑफ अटॉर्नी को ऐसे किसी भी शख्स के नाम जारी कर सकता है जो 18 वर्ष से ऊपर हो और जिस पर उसे भरोसा हो। वह एक साथ कई PoA भी जारी कर सकता है और यह भी तय कर सकता है कि कोई फैसला लेते समय सभी एजेंट मिलकर काम करें या नहीं। आमतौर पर एक से ज्यादा पावर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल बैकअप के तौर पर किया जाता है। जैसे अगर एजेंट बीमार हो जाए या जख्मी हो जाए तो बैकअप व्यक्ति संबंधित कामकाज कर सके। इस तरह आप अपने परिवार के किसी सदस्य, दोस्त या यहां तक कि संबंधित क्षेत्र के किसी एक्सपर्ट या पेशेवर शख्स के नाम भी जारी कर सकते हैं।

एजेंट चुनते वक्त सावधानी जरूरी है। किसी ऐसे शख्स को ही चुनिए जो भरोसेमंद हो। याद रखिए, पावर ऑफ अटॉर्नी पर साइन करना एक तरह से ब्लैंक-चेक पर दस्तखत करने जैसा है। इसलिए समझदारी से एजेंट का चुनाव जरूरी है।

जिंदा रहते हुए गारंटर कभी भी पीओए को रद्द करा सकता है बशर्ते कि वह मानसिक तौर पर पूरी तरह स्वस्ध हो। स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी में तो कम जोखिम होता है क्योंकि काम पूरा होते ही यह अपने आप खत्म हो जाता है। लेकिन जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी में जोखिम ज्यादा होता है। ऐसे में अगर गारंटर पीओए को वापस लेना चाहे तो कभी भी वापस ले सकता है। इसके लिए उसे एजेंट को इस बारे में लिखित जानकारी देनी होती है। इसके बाद पब्लिक नोटरी की मौजूदगी में डॉक्यूमेंट पर दस्तखत करके उसे एजेंट को भेज दीजिए। डॉक्यूमेंट को एजेंट के अलावा उन सभी पक्षों को भी भेजा जाना चाहिए जिनसे साथ उसकी डीलिंग रही है या डील कर रहा हो।

कुछ ऐसे काम हैं जिन्हें एजेंट नहीं कर सकता। इसका मकसद पावर ऑफ अटॉर्नी के मिसयूज की आशंका को कम करना है। जैसे एजेंट अगर किसी अन्य शख्स को अपनी जिम्मेदारी देना चाहे या गारंटर की मौत के बाद वसीयत बनाना चाहे तो वह ये नहीं कर सकता। इसके अलावा वह कोई ऐसा कदम नहीं उठा सकता जिससे उसे फायदा हो या जिस काम के लिए अधिकृत नहीं किया गया हो। जारी करने वाले शख्स की मौत के बाद पावर ऑफ अटॉर्नी खत्म हो जाती है।