अरविंद केजरीवाल जीत पाएंगे गुजरात?

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गुजरात में अब केजरीवाल आ सकते हैं! राजनीति में हुई फेरबदल से साफ तौर पर यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि गुजरात की सीट पर अरविंद केजरीवाल आ सकते हैं! बात 2002 की है जब नरेंद्र मोदी के लिए वजुभाई वाला ने ये सीट खाली थी। उपचुनाव में मोदी ने लगभग 14 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। 1985 से ही इस सीट पर वजुभाई काबिज रहे। लेकिन जब आप मार्जिन देखेंगे तो ट्विस्ट मिलेगा। 1985 से 2012 तक जीत एकतरफा नहीं रही। हार जीत का अंतर लगभग 15 हजार ही रहा है। पिछले चुनाव में विजय रूपाणी ने फासला बढ़ा दिया और 53 हजार मतों से जीत हासिल की। इस बार उनका टिकट कट गया है। राजकोट की युवा डिप्टी मेयर दर्शिता शाह मैदान में हैं। दर्शिता के पिता प्रफुल्ल दोशी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी थे। 2016 में उनका निधन हो गया था। आम आदमी पार्टी ने दिनेश जोशी को मैदान में उतारा है।

राजकोट सफाई की रैंकिंग में छठे पायदान पर है तो सच है। सड़कें साफ, सीवर ढके हुए मिले। लेकिन मशक्कत करनी पड़ती है महानगरपालिका को। अहमदाबाद से लेकर राजकोट तक पान मसाले की पीक से सड़कों के किनारे रंगे मिलेंगे। हर चौथा आदमी मसाला घिस रहा होता है। सुपारी के साथ कई और मसाले मिलाकर खुद ही मिक्स करने का प्रचलन है। सुबह-सुबह होटल नेक्सॉन के सामने सड़क किनारे चाय से शुरुआत हुई। कप का साइज यहां भी अहमदाबाद जैसा ही है। बिहार-यूपी-दिल्ली की कटिंग चाय यहां फुल होती है लेकिन दाम वही 10 रुपए। दुकान पर मुंबई से आए करीब यूसुफ मिले। चीनी मिल का पार्ट-पुर्जा खरीदने आए थे।हिमाचल प्रदेश के बद्दी से भी तजबीज कर आए। राजकोट में ही सबसे सस्ता माल मिला। राजकोट फाउंड्री का हब है और डीजल से चलने वाली मशीनें लेने यहां देश भर से लोग आते हैं। यूसुफ यहां के इलेक्शन पर बोले कि महाराष्ट्र जैसा नहीं है। वहां तो एक-दूसरे पर पिल पड़ते हैं लेकिन यहां लगता ही नहीं कि इलेक्शन है। बगल में मंसुख झाला बैठे थे। कुरेदने पर कहते हैं- आएगा तो भाजप ही लेकिन लोग परेशान है। वो चाय वाले की तरफ इशारा कर कहते हैं – ये बोल नहीं सकता, इसकी हालत देखिए। जिस गैस पर चाय बना रहा है उसका दाम कितन बढ़ गया। वो इशारे में झाला की बात की तस्दीक करता है।

सौराष्ट्र में अब तक जहां जहां गए वहां 10 रुपए का सिक्का नहीं चला। मोरबी, सुरेंद्रनगर और अब राजकोट। पूछने पर हर छोटा बड़ा दुकानदार कहता है कि इसके नकली होने का खतरा है। जिस होटल ज्योति में ठहरा हूं, यहां के वेटर से बात हुई। वो कहता है अब झाड़ू लगाने का समय आ गया है। सबको देख लिया। किसने क्या किया। गुस्से में है लेकिन यहां के और लोगों की तरह नाम जाहिर नहीं करने का अनुरोध करता है। हम यहां से सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी की तरफ कूच कर गए दोपहर में। तभी रास्ते में श्रीमती केएसएन कंसाग्रा महिला कॉलेज मिला। हम ठहरे। लड़कियों से बात की। अधिकांश लड़किया कॉमर्स पढ़ रही हैं। दस में सात ने यही बताया – बी कॉम या एम कॉम। एम कॉम फर्स्ट ईयर की दो लड़कियों भाविशा जडेजा और चेतना से कुछ देर तक बात की। ये पहली बार वोट डालेंगी। भाविशा से पूछा कि क्या वो सीए या सीएस करना चाहती है तो जवाब मिला एमबीए। सरकारी नौकरी के बारे में पूछने पर कहती है – मत पूछिए। चार साल पांच साल पर वैकेंसी आती है। आती है तो क्वश्चन पेपर पहले ही लीक हो जाता है। बैंक में अप्लाई करते हैं तो कॉलेज की पढ़ाई काम नहीं आती। ऐसा सिलेबस बनना चाहिए जो नौकरी के लिए जो एक्जाम होता है उसमें काम आए।

नरेंद्र मोदी पॉपुलर हैं। चेतना ने कहा – नहीं आम आदमी पार्टी अभी सबसे बेहतर है। कोई अगर एजुकेशन की बात कर रहा है तो वो है केजरीवाल। सहेली की भावना पर भाविशा की प्रतिक्रिया थी – दुनिया में डंका बज रहा है इंडिया का मोदी के कारण। यूक्रेन में देखिए कैसे एक फोन से जंग रुकवा दिया। कई और लड़कियों से भी यहां बात हुई। जिससे हमें लगा कि अरविंद केजरीवाल स्टूडेंट्स के बीच जगह बना रहे हैं। चेतना ने यहां तक कह दिया कि मोदीजी भाषण से इमोशन कर देते हैं लेकिन केजरीवाल जमीन पर काम करते भी हैं।

सेशन एकदम टाइम से है। बिहार जैसी लेट लतीफी नहीं है। तीन साल का कोर्स है तो तीन साल में ही कंपलीट होता है। यहां भी मिलीजुली राय दिखी। लेकिन कोई राहुल गांधी से प्रेरित नहीं मिला। फिर हम पत्रकारिता विभाग पहुंचे। वहां की एक टीचर से बात हुई तो पता चला सारे बच्चे गुजराती या अंग्रेजी में ही पढ़ते हैं। गुजराती मीडिया में नौकरियों का अवसर कम है इसलिए प्लेसमेंट नहीं हो पाता। यहां के बच्चे बाहर नहीं जाना चाहते हैं। इस मामले में बंगाल से मिलता चुलता मामला है। ये प्रोफेसर भी अपना नाम लिखने से मना करती हुई कहती हैं कि पब्लिक परेशान है, लेकिन विकल्प नहीं है, सत्ता में तो भाजप (भाजपा) ही आएगी।राजकोट वेस्ट में दर्शिता को टिकट देकर भाजपा ने दांव खेला है। ये परिवार आरएसएस से हमेशा से जुड़ा रहा है। नरेंद्र मोदी जब इमरजेंसी के समय गुजरात संघर्ष समिति से जुड़े थे तभी से दर्शिता शाह के घर उनका आना जाना रहा है। बाद में जब दर्शिता से हम खुद मिले तो उन्होंने भी बताया कि संघ उनके परिवार की नस-नस में है। सामने ही एक आलीशान भवन दिखा। ये अल्फ्रेड स्कूल था जिसे पांच साल पहले महात्मा गांधी म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया। बापू ने माध्यमिक शिक्षा इसी स्कूल से पूरी की थी। बेहद शानदार बना हुआ। लेकिन देखने वालों से ज्यादा यहां के स्टाफ। पूछा तो पता चला कभी कभी स्कूल वाले ट्रिप में आते है तभी भीड़ रहती है। एक ने तो यहां कह तक कहा कि इसे स्कूल ही बनाए रखते तो बेहतर था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही इसका उदघाटन किया था।

कोई जीते क्या फर्क पड़ता है। गरीब की देखने वाला कोई नहीं। राजेश तो भाजपा से गुस्से में दिखे। कहते हैं – कांग्रेस गई। अब अरविंद केजरीवाल को चांस देना बनता है। हम तो उसी को वोट करेंगे। यहां एक साल में सीएनजी के दाम डबल, भाड़ा वही। क्या खाएं, क्या बचाएं। महंगाई बढ़ गई, कमाई घट गई। यही तो मोदी मॉडल का हाल है। मयूर पठान ने एक रोचक बात बताई – आप शहर में घूम रहे हो न, हो सकता है भाजप वाले ही मिले। लेकिन गांव में जाओ। मैं तो भावनगर से हूं। कोई वोट नहीं करेगा भाजप को। इस बार देंगे केजरीवाल को। सरकार इस बार नहीं बनेगी तो आगे बनेगी लेकिन गरीब के लिए जो बोला है वो कर के दिल्ली और पंजाब में दिखाया है। हालांकि प्रदीप ने तपाक से कहा – जीतेगी तो भाजपा ही लेकिन केजरीवाल बदलाव लाएगा।

एक नमकीन की दुकान पर गए तो वहां भी केजरीवाल सपोर्टर मिला। उसने बताया कि बगल वाली दुकान दिनेश जी की है जो आप के कैंडिडेट हैं, उनका नाम बहुत पहले से क्लियर था। इस बार कांग्रेस के बदले बहुत सारे लोग दिनेश भाई को वोट करेंगे। यहां से हम राजकोट ईस्ट की तरफ बढ़ गए। जैसे ही आजि नदी पार की नजारा बिल्कुल अलग। शहर की चकाचौंध खत्म हो जाती है। रेलवे लाइन के पार करते ही झुग्गियां दिखी और फिर एक बस्ती आई – जकात नाका। यहां बिहार-यूपी से आए कुछ लोग मिले। यहां भी आम आदमी पार्टी के कुछ सपोर्टर मिले। हालांकि भाजपा के नए उम्मीदवार उदयकुमार कांगड़ की छवि लोगों ने बेहतर बताई। यहीं से कांग्रेस के इंद्रनील राजगुरु ताल ठोक रहे हैं जो हाल ही में केजरीवाल की पार्टी छोड़ कर वापस कांग्रेस में आए हैं। गुजरात के सबसे रईस उम्मीदवार हैं।राजकोट की सभी चारों शहरी सीटों पर भाजपा ने उम्मीदवार बदल दिए है। माहौल में ये बात भी तैर रही है। विधायकों के प्रति नाराजगी दूर करने के लिए भाजपा ने ये कदम उठाया है, ऐसा कई लोगों ने बताया। राजकोट के भीतर आठ विधानसा सीटे हैं – राजकोट ईस्ट, राजकोट वेस्ट, राजकोट ग्रामीण, गोंडल,धोरजी और जसदन। पिछले चुनाव में धोरजी को छोड़ सभी सातों सीटों पर बीजेपी ने परचम लहराया था।