Saturday, December 28, 2024
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ऐसा गांव जो बसता है समुंदर में!

आज हम आपको ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जो समुंदर में है! जैसे हम आप जमीन पर बड़ी आसानी से घूमते हैं, अपना कामकाज करते हैं ठीक उसी तरह से समंदर के भीतर भी एक दुनिया पलती है। इंसान समंदर की गहराइयों में ‘खेती’ करते हैं। चौंकिए मत, ये हल जोतने वाले किसान नहीं होते हैं। पेट पालने के लिए ये लोग सी-फूड की तलाश में समुद्र की तलहटी खोदते हैं। आपको शायद लगे कि पूल में डाइव तो हम भी लगाते हैं लेकिन जरा सोचिए आप पानी के भीतर कितनी देर तक सांसें थामे रह सकते हैं। कुछ सेकेंड या मुश्किल से 1 मिनट। आपको जानकारी हैरानी होगी कि ये अजूबे इंसान 200 फीट की गहराई में 5 से 13 मिनट तक पानी के अंदर रह सकते हैं। ये कहानी है एक जनजाति की। दुनिया उन्हें बजाऊ समुदाय कहकर पुकारती है। उनके लिए चमचमाती सड़कें, इंटरनेट, मोबाइल जैसी मॉडर्न चीजों का कोई मतलब नहीं है। ये आज भी बरसों पुराने तरीके से अपना गुजर-बसर कर रहे हैं।

पुतली से टूटकर आंख में बाल चला जाए तो लोग टब या पानी से भरी बाल्टी में अपना चेहरा डालकर आंखें खोलते हैं। लेकिन जैसे ही आपको सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगती है आपका शरीर ऊपर की तरफ भागने लगता है। ऐसे समय में हार्ट रेट कम हो जाता है और शरीर में कई बदलाव देखने को मिलते हैं जिससे ऑक्सीजन की कमी होने पर ऊर्जा को बचाया जा सके। लेकिन पानी के भीतर बड़े आराम से घूमने वाले इन लोगों को क्या कहेंगे, जिनकी डाइविंग कमाल की है। इनकी पीठ पर कोई ऑक्सीजन सिलेंडर भी नहीं होता है। यह समुदाय मूल रूप से फिलीपींस के आसपास के इलाकों में समुद्र में रहता है। ये जमीन पर बहुत ही कम दिखते हैं। लोग इन्हें समुद्र के बंजारे भी कहते हैं। इनके पास किसी देश की राष्ट्रीयता नहीं है। शादी के समय ये काफी चमक-धमक वाले कपड़े पहनते हैं, बाकी समय तो ऐसे ही रहना है।

इनके पानी में हमेशा रहने के पीछे की एक कहानी है। बताते हैं कि फिलीपींस के इन लोगों को बैन कर दिया गया था, यानी इन्हें जमीन से बेदखल कर दिया गया तो इन्होंने बरसों पहले समुद्र पर ही गांव बसा लिया। ये मलेशिया और इंडोनेशिया के तटों पर भी बांस के बने खंभों के सहारे खड़े घरों में पाए जाते हैं। कुछ नावों पर ही जीवन गुजारते हैं। आप इनकी जिंदगी को अजीब कह सकते हैं लेकिन यह कितना तकलीफदेह होता होगा कि बच्चों को पढ़ाई-लिखाई नहीं नाव चलाने और मछली पकड़ने का करतब सीखने पर ही पूरा जोर दिया जाता है।

छोटे-छोटे बच्चे इतने प्रशिक्षित कर दिए जाते हैं कि पानी में देखने की उनके भीतर अद्भुत क्षमता विकसित हो जाती है। वे गहरे पानी में उतरकर अपनी आंखों से अच्छे से देखकर शिकार करते हैं। इस जनजाति के बच्चे जब समंदर में तैरते हैं तो आंखें बिल्कुल खुली रहती है। ये छोटी डॉल्फिन की तरह दिखते हैं। इन बच्चों का ज्यादातर समय समंदर की गहराइयों में भोजन की तलाश करते ही बीतता है।

आपको शायद ताज्जुब हो कि ये अब भी मछली पकड़ने के लिए भाले का इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ ही ये समुद्र की गहराइयों से ऐसी प्राकृतिक चीजें इकट्ठा करते हैं जिसका इस्तेमाल क्राफ्ट बनाने में किया जा सके।सील एक ऐसा समुद्री स्तनधारी जीव होता है जो ज्यादातर समय अपना जीवन पानी में बिताता है। इन इंसानों की तुलना भी सील से की जाती है। शोध में पता चला कि इनका इम्युन सिस्टम धरती पर रहने वाले लोगों की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा पाया गया। हालांकि अब इस समुदाय के जीवन में जोखिम बढ़ रहा है। आधुनिक तरीके से मछली पकड़ने की तरकीब आने से इनके लिए भोजन की चीजें कम हो रही हैं। बजाऊ, ओरांग लाउट और मोकेन ये तीन जन समूहों को समुद्री खानाबदोश कहते हैं।

जनजाति के लोग रोज घंटों पानी के अंदर रहकर मछलियां पकड़ते हैं। आपके मन में सवाल उठ सकता है कि आखिर शरीर में ऐसा क्या होता है कि ये लोग ज्यादा देर तक पानी में रह पाते हैं? शरीर का एक अंग होता है प्लीहा (spleen), लेकिन इसकी बात काफी काम होती है। बहुत लोगों को इसके बारे में जानकारी भी नहीं होती। तकनीकी रूप से देखें तो आप इस अंग के बगैर भी जीवित रह सकते हैं लेकिन अगर आपके पास है तो यह अंग इम्युन सिस्टम को सपोर्ट करता है। यह रेड ब्लड सेल्स को रिसाइकल करता है।

शोधकर्ता पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीन और स्पिट कलेक्शन किट्स लेकर इन लोगों के घर पहुंचे। उन्होंने कई तस्वीरें लीं। दों अलग-अलग सैंपल लिए गए। पहला, उनका जो इंडोनेशिया के मेनलैंड पर रहते थे और दूसरा, वे जो पानी पर घर बनाकर रह रहे थे। दोनों सैंपल्स की तुलना करने पर पता चला कि बजाऊ समुदाय के व्यक्ति का स्प्लीन 50 प्रतिशत बड़ा था। यह देखकर साइंटिस्ट भी हैरान रह गए।

पेट के पीछे की ओर रहने वाला स्प्लीन लंबाई में 5 इंच, चौड़ाई में 4 इंच और 1 इंच मोटा होता है। स्प्लीन गाढ़े पर्पल रंग का और 150 ग्राम तक वजनी हो सकता है। इसके अंदर दो ब्लड वेसेल होती हैं। एक से ऑक्सीजन वाला ब्लड आता है और दूसरे से डी-ऑक्सीजेनेटड ब्लड बाहर निकलता है। शरीर में घुसपैठ करने वाले वायरस के साथ आए संक्रमण को खत्म करने में इसकी अहम भूमिका होती है। स्प्लीन ब्लड प्लेट्स स्टोर करते हैं, एंटीबॉडी बनाते हैं और खून में असामान्य कोशिकाओं को नष्ट करने में मदद करते हैं।

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