मलिहाबाद के खास आम पर कीटों का प्रकोप बढ़ चुका है! पिछले 20 साल से आम के बगीचे में काम कर रहा। यहां और कुछ है भी तो नहीं। लेकिन अब इससे पेट भी पालना मुश्किल हो गया है। ये तीसरा साल है जब आम बहुत कम आया। 100 पेड़ के बागीचे में मुश्किल से पांच पेड़ में आम है। वह भी दागी। जिसमें दाग नहीं हैं, उसे कीड़े खा रहे। पेट पालने के लिए अब चाय, पान की दुकान चला रहा, 20 हजार रुपए उधारी लेकर।’ मलिहाबाद के रानीपारा में रहने वाले श्यामलाल कहते-कहते एक दम निराश हो जाते हैं। जब हम उनके पास रुके तो उन्हें लगा कि शायद हम आम के खरीदार हैं। गाड़ी रुकते ही उन्होंने कहा- एक भी आम नहीं है, आगे के बागों में देख लीजिए। आम के बागों में काम कर दो पैसे कमाने वाले श्यामलाल के पास इस साल कोई काम नहीं है। क्योंकि बगीचे के पेड़ों में आम के फल नहीं लगे। जो लगे, वे मौसम की मार से बबार्द हो गये। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर मलिहाबाद अपने दशहरी आम के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। लेकिन इस साल पेड़ों में आम न के बराबर है। जो थोड़ा बहुत है भी तो उसे कीट चट कर जा रहे। लगभग 70 से 80 फीसदी आम की फसल बर्बाद हो चुकी है। बाहर से जो ऑर्डर आए मिले थे, उन्हें रद्द किया जा रहा। मलिहाबाद के आम किसान लगातार तीसरे साल नुकसान उठा रहे। इससे पहले के सालों में कोरोना की मार थी तो अब मौसम की। लेकिन इस साल तो कमर टूट गई। किसानों ने बताया कि पिछले 40-50 सालों में पहली बार फसल इतनी कम हुई है। कीटों से बचाव के लिए दवा का छिड़काव तो कर रहे। लेकिन उसका कोई असर नहीं दिख रहा।
लतीफपुर के शंकर के पास तीन बीघे लगभग 1 एकड़ में आम का बाग है। वे हमें लागत और नफा नुकसान का गणित समझाते हैं। जब हम उनके बाग में पहुंचे तो आंठवीं बार दवा का छिड़काव कर रहे थे।
वे बताते हैं, ‘आज आठवीं बार दवा का छिड़काव कर रहा। कल 31 मई को नौंवी बार करूंगा। हर छिड़काव में कम से कम 3,000 रुपए का खर्च आता है। मतलब अब तक लगभग 24 हजार रुपए खर्च हो चुका है। फल मुश्किल से 10 फीसदी ही बचा है। दाग की वजह से आम बाहर नहीं जा पायेगा। जो आम पहले 40 से 45 रुपए किलो में बिकता था, वह अब 25 से 27 रुपए में बिक रहा। आमदनी इतनी ही होगी कि एक, दो महीने का खर्च चल जायेगा। पहले इतनी कमाई होती थी कि सालभर बैठकर खाते थे।’
सबसे बड़ी बात तो यह कि कीटों पर दवाओं का असर ही नहीं हो रहा। जब बौर था, तभी से कीड़े लगे हैं। पहले मुश्किल से 2, 3 बार छिड़काव करना पड़ता था। अब तो 8 बार में भी कोई असर नहीं दिख रहा। स्थिति ऐसी रही तो मलिहाबाद में न तो आम बचेंगे और न ही किसान।’ निराश होकर शंकर बाइक स्टार्ट कर कहीं चले जाते हैं। जबकि यह समय बाग की रखवाली का होता था।
कई किसानों ने बताया कि कीटों का प्रकोप इतना ज्यादा कभी नहीं था। इस बारे में हमने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के पूर्व डायरेक्टर डॉक्टर राजन से बात की। वे बताते हैं, ‘आम की फसलों में जो कीड़े लगे हैं, इन्हें सेमी लूपर्स कहते हैं। ये कई तरह के आ गये हैं। कुछ तो फल को काटकर नीचे गिरा दे रहे तो कुछ दो आमों के बीच रगड़ पैदाकर उसे दागी बना रहे। कुछ तो पूरी फसल ही चट का जा रहे। लगतार दवाओं के छिड़काव की वजह से इन्होंने खुद को ढाल लिया है। इन्हें नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है। ऐसे में इसे लेकर बहुत रिसर्च करने की जरूरत है।’
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के कीट वैज्ञानिक डॉ एचएस सिंह भी इस बर्बादी के लिए सेमी लूपर कीड़े को वजह मानते हैं। वे कहते हैं कि इधर के कुछ वर्षों में इसका असर बढ़ा है। लेकिन आगे भी रहेगा, ऐसा जरूरी नहीं। कुछ किसान अच्छे कीट नियंत्रक का प्रयोग नहीं कर रहे हैं। इसीलिए बार-बार छिड़काव करने से भी इसका फायदा नहीं पहुंच रहा। इसका असर यही नहीं, देश के कई हिस्सों में देखने को मिल रहा। ऐसा नहीं है कि इसे रोका नहीं जा सकता। लेकिन इसके लिए किसानों को जागरूक होना पड़ेगा।
लगभग 4 एकड़ के बगीचे के मालिक ओम प्रकाश पांडेय के बगीचे का आम इस समय टूट रहे हैं। पैकिंंग हो रही। इससे पहले हम जिस भी बगीचे में गये, वहां आम न के बराबर थे। लेकिन आम का साइज बहुत छोटा था। आम दो तीन अलग-अलग कंटेनर में रखे जा रहे थे। ओम प्रकाश इशारा करके बताते हैं कि वो जो सबसे किनारे पैक हो रहा, वह यहीं के लोकल बाजार के लिए है। उससे अच्छा वाला आम दूसरे जिले में जाएगा। दूसरे देश तो छोड़िए, हमारे पास ऐसा आम भी नहीं है कि हम उसे अपने ही देश के दूसरे राज्य में भेज पाएं। ये आम देखकर महिलाबाद की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी।