आज हम आपको बसंतसर की जंग के बारे में बताने जा रहे हैं! भारत-पाकिस्तान के बीच आज तक जितनी भी जंग हुई हैं, उनमें दुश्मन देश को धूल चाटनी पड़ी है। इनमें 1971 की जंग सबसे यादगार है। इसका जिक्र होते ही एक तस्वीर अपने आप आंखों के सामने आ जाती है। ढाका में आत्मसमर्पण करते लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी और उन्हें गर्वीली आंखों से देखते ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा। तब अरोड़ा पूर्वी कमान के कमांडर थे। महज 13 दिनों में भारत ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया था। यह लड़ाई कई मोर्चों पर हुई थी। हर मोर्चे पर पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी। इस लड़ाई ने पूर्वी पाकिस्तान का नक्शे से नामो-निशान मिटा दिया था। इसने बांग्लादेश के तौर पर एक नए मुल्क की नींव रखी थी। इस युद्ध की पहली किस्त के तहत आज बात बसंतसर की लड़ाई की जो 1971 के युद्ध का हिस्सा थीn, बसंतसर। यह पंजाब में रावी की एक सहायक नदी है। यहां लड़ाई 10 दिन तक चली। 6 दिसंबर से शुरू होकर 16 दिसंबर 1971 तक। रणनीतिक रूप से यह इलाका बहुत महत्वपूर्ण था। तब पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्तान को भारत का मुकाबला करने में काफी परेशानी हो रही थी। लिहाजा, ध्यान भटकाने के लिए उसने पश्चिमी सेक्टर में मोर्चा खोल दिया। इसका मकसद था, युद्ध को लंबा खींचना। लेकिन, भारत के जांबाजों ने उसकी सारी प्लानिंग पर पानी फेर दिया।
बंसतपुर की लड़ाई को शकरगढ़ या बारापिंड की जंग से भी जाना जाता है। बसंतपुर नदी पंजाब और हिमाचल से गुजरती है। यह जंग शकरगढ़ सेक्टर में लड़ी गई। यह दोनों देशों के लिहाज से बेहद अहम क्षेत्र था। यह पंजाब से जम्मू को जोड़ता था। अगर पाकिस्तान अपने मंसूबों में कामयाब हो जाता तो पूरे जम्मू से बाकी भारत का संपर्क कट सकता था। पाकिस्तान की नीयत हर हाल में इस इलाके को कब्जे में लेने की थी। उसे उम्मीद थी कि इस क्षेत्र में कब्जा करने के बाद वह कश्मीर और पठानकोट के बीच भारतीय सेना के लिंक को काट देगा। इसके बाद वह आसानी से जम्मू-कश्मीर पर हमला कर सकता है।
यह और बात है कि भारतीय सेना ने चौंकाते हुए इलाके में पाकिस्तानी चौकियों पर हमला किया। इस तरह 6 दिसंबर को बसंतसर की लड़ाई शुरू हो गई। इस लड़ाई में भारतीय सैनिकों ने गजब का जज्बा दिखाया। कुछ दिनों की तीखी लड़ाई के बाद भारतीय सेना पाकिस्तान को पीछे खदेड़ चुकी थी। सिर्फ इतना ही नहीं, वह अंदर-अंदर घुसते-घुसते सियालकोट के पास पहुंच गई थी। पाकिस्तानी सेना युद्ध में अपनी हार से मुकर जाती है। लेकिन, यहां भारत ने इतनी तगड़ी चोट की थी कि उसके पास कहने को कुछ था ही नहीं। पाकिस्तान के पास इस मोर्चे पर अडवांटेज होने के बाद भी भारत ने उसे रगड़ दिया था।
दोनों देशों के बीच युद्ध का ऐलान होने के कुछ ही दिन बाद इस सेक्टर में आक्रमण हुआ था। भारतीय सेना प्रमुख क्षेत्रों को कब्जे में लेने के मकसद से यहां उतरी थी। मेजर जनरल डब्ल्यूएजी पिंटो की अगुआई में 54 इनफैंट्री डिवीजन और 16 आर्मर्ड ब्रिगेड मोर्चा लेने के लिए बढ़ी थीं। पाकिस्तान ने सेना के रास्ते में कई चुनौतियां पेश कीं। एक-एक कर भारतीय सेना दुश्मन के टैंकरों को ध्वस्त करते हुए आगे बढ़ती गई। शुरू में जो पाकिस्तानी सेना भारत के मुकाबले कई तरह से फायदे में दिख रही थी। वह कुछ ही दिनों में बस यह चाहने लगी थी कि कैसे भी उसका पिंड छूट जाए। जब नौबत यह आ गई कि भारतीय सेना सियालकोट के करीब पहुंच गई तो पाकिस्तान के ‘कागजी धुरंधरों’ के हाथ-पांव फूलने लगे।
नतीजा, यह हुआ कि डर के मारे उसने बिना शर्त आत्मसमर्पण का प्रस्ताव भेज दिया। इसके बाद जाकर संघर्ष विराम हुआ।इस लड़ाई में भारतीय सैनिकों ने गजब का जज्बा दिखाया। कुछ दिनों की तीखी लड़ाई के बाद भारतीय सेना पाकिस्तान को पीछे खदेड़ चुकी थी। सिर्फ इतना ही नहीं, वह अंदर-अंदर घुसते-घुसते सियालकोट के पास पहुंच गई थी। पाकिस्तानी सेना युद्ध में अपनी हार से मुकर जाती है। लेकिन, यहां भारत ने इतनी तगड़ी चोट की थी कि उसके पास कहने को कुछ था ही नहीं। पाकिस्तान के पास इस मोर्चे पर अडवांटेज होने के बाद भी भारत ने उसे रगड़ दिया था। हालांकि, तब तक भारत ने 1,000 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा के इलाके पर कब्जा कर लिया था। इसमें से बाद में पाकिस्तान के 350 वर्ग मील इलाके को भारत में शामिल किया गया। पाकिस्तान को हिमाकत करने का जवाब बहुत बुरा मिला था। इसके लिए अरुण खेत्रपाल और मेजर होशियार सिंह दहिया को परमवीर चक्र से नवाजा गया था।