क्या मध्यप्रदेश में भी जा सकती है भाजपा की सरकार?

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मध्यप्रदेश में भी अब भाजपा की सरकार खतरे में नजर आ रही है! चुनाव से पहले पूरी सरकार बदलने की भारतीय जनता पार्टी  की रणनीति कारगर साबित हो रही है। पहले पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह प्रदेश गुजरात में भाजपा ने हिट एंड रन का यह फॉर्म्युला आजमाया और एक के बाद एक दोनों जगहों पर उसे अपार सफलता मिली। कम-से-कम उत्तराखंड के लिए तो यह भी कहा जा सकता है कि वहां हाथ से फिसलती हुई सत्ता वापस मिल गई। बड़ी बात है कि हिमाचल प्रदेश में यही फॉर्म्युला नहीं अपनाया गया और परिणाम निराशाजनक आए। इसलिए, अब बीजेपी शासित एक अन्य चुनावी राज्य मध्य प्रदेश की सरकार में भी बड़े बदलाव की मांग उठ गई है। एमपी के मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को चिट्ठी लिखकर कहा है कि चूंकि अगले वर्ष प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है, इसलिए जरूरी है कि सत्ता विरोधी लहर को रोकने के लिए सरकार में आमूलचूल परिवर्तन किए जाएं। विधायक नारायण त्रिपाठी की यह चिट्ठी मीडिया में लीक हो गई है। इसके साथ ही, यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ माहौल बन रहा है? अगर इसका जवाब हां है तो बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व मध्य प्रदेश में भी उत्तराखंड और गुजरात का प्रयोग दुहराए, इसकी कितनी संभावना है? दरअसल, संभावनाओं के खेल में किसी बात पर दावेदारी नहीं की जा सकती है। ना ही कथित संभावना को सिरे से खारिज किया जा सकता है और ना ही ताल ठोंककर यह भी कहा जा सकता है कि यह होकर ही रहेगा। हां, परिस्थितियों के आकलन के आधार पर हां या ना के बीच पलड़ा किस तरफ झुका है, इसका अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है। तो सवाल है कि मध्य प्रदेश की परिस्थितियां कैसी हैं?

शिवराज सिंह चौहान चौथी बार सीएम हैं। पार्टी के अंदर ही एक खेमा चाहता है कि बदलाव हो। हालांकि बड़े नेता यह कहते रहे हैं कि शिवराज सिंह चौहान अच्छा काम कर रहे हैं। वहीं, कुछ दिनों पहले ग्वालियर में अमित शाह ने कहा था कि आप मोदी जी पर भरोसा कीजिए और हमें वोट दीजिए। इसके बाद यह सवाल उठ रहे थे कि एमपी में काम कर रहे शिवराज तो वोट मोदी के नाम पर क्यों? वहीं, सीएम पद की रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम की चर्चा सबसे ज्यादा होती है। पार्टी के कुछ पुराने नेता उनके करीब जा रहे हैं। इसमें कैलाश विजयवर्गीय से लेकर उमा भारती तक का नाम है। बीजेपी के सामने अभी सबसे बड़ी मुश्किल है सिंधिया समर्थकों और अपने पुराने नेताओं को एडजस्ट करने की। सिंधिया के आने के बाद ग्वालियर-चंबल में उन्हीं की चलती है। ऐसे में पार्टी के पुराने नेताओं का क्या होगा, इस पर संशय है।

कैबिनेट विस्तार में क्षेत्रीय और जातीय संतुलन का अभाव है। चर्चा है कि शिवराज कैबिनेट में बदलाव हो सकता है। इसमें कुछ मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है। साथ ही अगले विस्तार में क्षेत्रीय और जातीय संतुलन का पूरा ख्याल रखा जाएगा।

मध्य प्रदेश सरकार धर्म नीति और हार्डकोर हिंदुत्व की राह पर आगे बढ़ रही है। धर्म नीति पर आगे बढ़ने के लिए सरकार ने महाकाल लोक का निर्माण करवाया। ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की सबसे बड़ी प्रतिमा का निर्माण करवाया जा रहा है। इसके साथ ही ओरछा राजा राम के दरबार को संवारा जा रहा है।

हार्डकोर हिंदुत्व के लिए सरकार लव जिहाद के खिलाफ कानून लेकर आई। इसके साथ ही धर्मांतरण लेकर सरकार सख्ती दिखा रही है। ईसाइयों के बड़े धर्मगुरु पूर्व बिशप पीसी सिंह पर कार्रवाई की गई है। खरगोन दंगे के आरोपियों के घर तोड़े गए।

मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार आदिवासियों को अपने पाले में रखने के लिए खूब मशक्कत कर रही है। एमपी में 47 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। 84 सीटों पर इनका असर है। आदिवासी वोट जिस ओर जाता है, उसकी सरकार बन जाती है। चौथी बार सत्ता में आने के बाद आदिवासी क्षेत्रों में कुछ घटनाएं घटी। 2018 के चुनाव में आदिवासियों ने शिवराज सरकार को गच्चा दे दिया था और सत्ता से बीजेपी बेदखल हो गई थी। सरकार ने इससे सबक लिया है। बिरसा मुंडा की जयंती पर सरकार ने जनजातीय गौरव दिवस मनाने का निर्णय लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इसमें आए थे। रानी कमलापति रेलवे स्टेशन का नाम गोंड रानी के नाम पर किया, पेसा एक्ट लागू किया गया है और पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम भी आदिवासी नायक टाट्या भील के नाम पर किया गया।

ध्यान रहे कि मध्य प्रदेश के अलावा अगले वर्ष दो अन्य बीजेपी शासित राज्य कर्नाटक और त्रिपुरा चुनावों में जाने वाले हैं। भाजपा इन दोनों राज्यों में पूरी सरकार तो नहीं, लेकिन मुख्यमंत्री बदल चुकी है। कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा की जगह बासवराज बोम्मई को जुलाई 2021 में कर्नाटक की सत्ता सौंप दी गई। वहीं, त्रिपुरा में इसी वर्ष मई महीने में बिप्लब देब से मुख्यमंत्री का ताज छीनकर डॉ. माणिक साहा के सर पर सजा दिया गया। सवाल है कि आखिर किस राज्य में मुख्यमंत्री बदलना है, किस राज्य में मुख्यमंत्री के साथ पूरी कैबिनेट और किस राज्य में कोई छेड़छाड़ नहीं करनी है, बीजेपी के पास इसका कौन सा पैमाना है? राजनीति के जानकार बताते हैं कि बीजेपी ने प्रदेश सरकारों की चुनावी क्षमता परखने के तीन बड़े आधार तय कर रखे हैं। इनमें पहला है- प्रदेश में सरकारी योजनाओं का जमीन तक पहुंचने का अनुपात, पार्टी संगठन के साथ संबंधित प्रदेश सरकार की तालमेल का स्तर और जनता में मुख्यमंत्री की लोकप्रियता।

बहरहाल, मध्यप्रदेश के विधायक नारायण त्रिपाठी ने 11 दिसंबर को नड्डा को लिखे पत्र में लिखा है, ‘गुजरात में पार्टी की शानदार और ऐतिहासिक विजय के लिए आपको शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए विनम्र निवेदन है कि मध्यप्रदेश में हमारे जैसा छोटा कार्यकर्ता चाहता है कि राज्य में दोबारा गुजरात की तर्ज पर सरकार बने।’ इसमें आगे कहा गया है, ‘इसके लिए कार्यकर्ताओं की मंशा के अनुरूप यहां भी सत्ता एवं संगठन में पूरी तरह बदलाव किया जाय ताकि प्रदेश में नए युग की शुरुआत हो।’ आगे कहा गया है, ‘पुन: निवेदन है कि मध्यप्रदेश में सत्ता एवं संगठन में पूरी तरह बदलाव के मेरे जैसे तमाम कार्यकर्ताओं के आकलन एवं मंशा पर विचार करने की कृपा करेंगे ताकि यहां फिर से भाजपा की सरकार बन सके और विकास एवं जनकल्याण की गति निर्बाध रूप से जारी रह सके।’