आज हम आपको प्रधानमंत्री के गेरुआ वस्त्र वाले स्वामी के बारे में बताने जा रहे हैं! तीन दिन में दूसरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक खास मकसद से अपने गृह राज्य गुजरात पहुंचे। उन्होंने अहमदाबाद में स्वामीनारायण संप्रदाय के संत प्रमुख स्वामी महाराज के शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया। यहां उन्होंने स्वामी जी और संप्रदाय से अपने लगाव के बारे में कई दिलचस्प किस्से सुनाए। प्रधानमंत्री ने प्रमुख स्वामी महाराज के साथ अपने संबंधों को याद करते हुए कहा कि महान संत उन्हें बेटे की तरह मानते थे। उन्होंने राजकोट से अपना पहला राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए नामांकन पत्र पर जिस कलम से हस्ताक्षर किए थे वह प्रमुख स्वामी महाराज ने ही भेजी थी। वह हर बार नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए कलम भेजा करते थे। जब मोदी ने वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ा तो स्वामी जी ने भगवा रंग वाली कलम भेजी थी। अक्षरधाम मंदिर पर 2002 में हुए आतंकी हमले के समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने उस समय प्रमुख स्वामी के साथ हुई अपनी बातचीत का भी जिक्र किया। गुजरात ही नहीं, दिल्ली और दुनियाभर के लोग अक्षरधाम मंदिर के बारे में जानते हैं। ऑकलैंड, शिकागो, ह्यूस्टन, लंदन, लॉस एंजिलिस, नैरोबी, सिडनी समेत दुनिया के कई शहरों में स्वामीनारायण मंदिर है। देश के सबसे अमीर मंदिरों में स्वामीनारायण मंदिर गिना जाता है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प हो जाता है कि देश के समृद्ध स्वामीनारायण संप्रदाय का इतिहास क्या है।
अक्षरधाम मंदिर जाने वाले लोगों को पता होगा कि इस संप्रदाय का कनेक्शन यूपी से जुड़ा है। जी हां, यूपी में अयोध्या के पास छपिया (छप्पैया) गांव में घनश्याम पांडे का जन्म हुआ था। तारीख थी 3 अप्रैल 1781, एक बार जानेमाने संत मार्कण्डेय मुनि घर आए और उन्होंने भविष्यवाणी की कि घनश्याम धरती पर धर्म की स्थापना करेंगे। वह लोगों के दुख दूर करेंगे और दुनिया में उनका नाम होगा। संत की बातें सच होनी शुरू हो गईं। बचपन में ही घनश्याम ने संस्कृत पढ़ना शुरू किया। आध्यात्म में रुचि बढ़ी और 1792 में घर छोड़ दिया।
जो भी उनके संपर्क में आता, अनुयायी बन जाता। वह बड़े हुए और देश के भ्रमण पर निकल पड़े। कई राज्यों से होते हुए वह सौराष्ट्र के द्वारका और फिर अहमदाबाद पहुंचे। वह घनश्याम से सहजानंद स्वामी बन चुके थे। गुजरात में ही उन्होंने हिंदू धर्म के स्वामीनारायण संप्रदाय की नींव रखी। कुरीतियों को खत्म करने में उन्होंने बड़ा योगदान दिया। प्राकृतिक आपदा के समय स्वामी जी ने अपने अनुयायियों को लोगों की मदद करने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने वंचित तबके (गैर-ब्राह्मण, गैर-बनिया जातियों) को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की। बताते हैं कि स्वामीनारायण ने अपने दो भतीजों को यूपी से बुलाया। एक को कालूपुर मंदिर और दूरे को वडताल मंदिर की गद्दी सौंप दी। विरोध होने लगा तो स्वामीनारायण संप्रदाय दो खेमों में बंट गया। घनश्याम पांडे के खेमे ने वंश परंपरा को आगे बढ़ाने पर जोर दिया और दूसरे गुट ने साधु परंपरा को बढ़ाया। आगे चलकर 20वीं शताब्दी में साधु परंपरा के महाराज ने नई गद्दी चलाई, जिसे बोचासनवासी अक्षय पुरुषोत्तम संप्रदाय यानी BAPS कहा जाता है।
स्वामीनारायण संप्रदाय वैष्णव परंपरा का हिस्सा है। इस संप्रदाय की शुरुआत वैष्णव आंदोलन से हुई, जिसने 18वीं शताब्दी की शुरुआत में हिंदू सनातन धर्म के मूल्यों पर जोर दिया। संप्रदाय के प्रमुख को बहुत प्रभावशाली माना जाता है और अपने 10 लाख से अधिक अनुयायियों के साथ उनका महत्वपूर्ण जुड़ाव होता है। संप्रदाय के छठे और वर्तमान प्रमुख महंत स्वामी महाराज (89) हैं।
BAPS परंपरा वाले अक्षय पुरुषोत्तम पाटीदार थे। गुजरात के पाटीदारों की आर्थिक स्थिति बेहतर रही है। 19वीं सदी के आखिर में गुजरात में अकाल पड़ा तो बड़ी संख्या में पाटीदार समुदाय के लोग अफ्रीका और इंग्लैंड चले गए। बिजनस में पाटीदार बढ़ते गए और उनके साथ स्वामीनारायण संप्रदाय भी लोकप्रिय होता चला गया। शास्त्रीजी महाराज के बाद योगीजी महाराज, प्रमुख स्वामी महाराज और अब मंहत स्वामी महाराज हैं।
प्रमुख स्वामी महाराज भगवान स्वामीनारायण के पांचवें आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। उनके बारे में ही प्रधानमंत्री मोदी ने कई रोचक बातें बताईं। मोदी ने कहा कि जब वह भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी के साथ कश्मीर में (1992) तिरंगा फहराने गए थे, तब संत प्रमुख स्वामी महाराज ने सबसे पहले उन्हें फोन किया था और उनकी कुशलक्षेम पूछी थी। प्रधानमंत्री ने प्रमुख स्वामी महाराज को एक सुधारक के रूप में याद किया। मोदी ने कहा कि प्रमुख स्वामी महाराज ने उन्हें लोगों की सेवा करना सिखाया और हर मौके पर उनका मार्गदर्शन किया। पीएम ने याद किया कि स्वामीजी उन्हें हर साल एक जोड़ी कुर्ता-पायजामा भेजते थे। यह सिलसिला 40 वर्षों तक जारी रहा।
प्रमुख स्वामी महाराज ने 1950 और 2016 के बीच स्वामीनारायण समुदाय की 16 शाखाओं में सबसे लोकप्रिय बीएपीएस का पांचवें आध्यात्मिक गुरु के तौर पर नेतृत्व किया। नई दिल्ली और गांधीनगर में अक्षरधाम मंदिर हैं और एक मंदिर न्यू जर्सी में जल्द ही खुलने वाला है।
दिल्ली के स्वामीनारायण अक्षरधाम परिसर का निर्माण 11,000 कारीगरों और हजारों बीएपीएस बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था स्वयंसेवकों के प्रयासों से पांच साल में पूरा हुआ था। रिपोर्ट की मानें तो यहां भगवान की मूर्ति सोने से बनी है और 500 करोड़ रुपये मंदिर बनाने में खर्च हुए हैं। इससे यह भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक हो जाता है। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज दुनिया के सबसे बड़े विस्तृत हिंदू मंदिर परिसर का उद्घाटन 6 नवंबर 2005 को किया गया था। देश के कोने-कोने से लोग घूमने के लिए राजधानी आते हैं तो वह अक्षरधाम मंदिर अवश्य जाते हैं।