आज हम आपको सबसे बड़े किसान गिरजा शंकर मौर्य के बारे में बताने जा रहे हैं! प्राकृतिक खेती में लागत कम और उपज की कीमत ज्यादा है। यह सिर्फ कहने की बात नहीं है। गिरजा शंकर मौर्य ने इसे साबित भी किया है। 34 साल के इस किसान ने नैचुरल फार्मिंग का शानदार मॉडल पेश किया है। इसे अब उनके गांव में हर कोई अपना रहा है। यह उनके गांव में खुशहाली का फॉर्मूला बन चुका है। इसने गांव वालों में जबर्दस्त कॉन्फिडेंस पैदा किया है। सबूत यह है कि गांव ‘भ्रष्टाचार मुक्त’ होने का दावा करता है। गिरजा एक एकड़ से भी कम खेत में 12 फसलें उगाते हैं। दूसरे किसानों से यह इस तरह अलग कि अमूमन वे अपने खेत से 1-2 फसलें ही ले पाते हैं। गिरजा की खेती के मॉडल में कुछ भी खराब नहीं जाता है। इसके कारण चोखी कमाई के साथ वह जमीन की उर्वरकता को भी बढ़ा रहे हैं। पद्मश्री सुभाष पालेकर से प्राकृतिक खेती का गुर सीखकर उन्होंने अपने खेतों में जो प्रयोग किया, अब वह उसे गांव वालों को भी अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उनके खेतों की उर्वरकता और खेती के तरीके को देखकर वैज्ञानिक भी उन्हें गोद लेना चाहते हैं। गिरजा शंकर मौर्य को प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।जमीन में जीवाणुओं को बढ़ाकर उसकी उर्वरकता और नाइट्रोजन कंटेंट को बढ़ाया जा सकता है। फिर रासायनिक खादों की जरूरत नहीं है। यही काम रासायनिक खाद करती है। लेकिन, उसके साइड इफेक्ट होते हैं। आज पूरी दुनिया में प्राकृतिक खेती के महत्व को पहचाना जा चुका है। यह खेती का ऐसा मॉडल है जिसमें लागत कम और कमाई शानदार है।
गिरजा अपने खेत में मल्टी लेयर फार्मिंग करते हैं। इसके लिए वह खेत को दो हिस्सों में बांट देते हैं। एक खेत में 4-5 फसल और दूसरे में 12-14 फसल उगाते हैं। इनमें उड़द, हल्दी, अरहर, अमरूद, केला, पपीता, परवल, कुंदरू, धनिया, तरोई, लौकी, कद्दू और नैपियर तक शामिल होते हैं। उन्होंने बताया नैपियर पशु चारे के काम आता है। इसके अलावा वह खेतों की बाउंड्री पर मनोकामिनी लगाते हैं। यह नैचुरल बाउंड्री का काम करती है। मनोकामिनी को पशु नहीं खाते हैं। यह सजावट में काम आती है। इसे अलग से बेचा जा सकता है। यह खेतों में कीटनाशकों को आने से भी रोकती है। लिहाजा, कीटनाशकों का भी इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ती है।
लखनऊ स्थित भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में आयोजित वर्कशॉप में गिरजा शंकर ने 2017 में पद्मश्री से सम्मानित सुभाष पालेकर से ‘जीरो बजट खेती सिद्धांत’ का प्रशिक्षण लिया। इसके अलावा कृषि विज्ञान केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और लखनऊ के गन्ना अनुसंधान संस्थान (कृषि विभाग) से तकनीकी सहयोग हासिल किया। फिर उन्होंने अपने खेत में इसका प्रयोग शुरू किया। उन्होंने एक खेत में उड़द, हल्दी, अरहर, नैपियर (चारा) और मनोकामिनी की खेती की। दूसरे में 12 -14 फसल उगाईं। इनमें आम (40 बाई 40); अमरूद (20 बाई 40); केला (20 बाई 20); पपीता (10 बाई 20); परवल (6 बाई 10); कुंदरू (6 बाई 10); खेतों के किनारे नैपियर शामिल थे। इसके अलावा उन्होंने इसी खेत में तरोई, लौकी और कद्दू को भी उगाया।
डॉ भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में माइक्रोबायलॉजी विभाग की HOD डॉ संगीता सक्सेना ने हाल में गिरजा के खेतों का भ्रमण किया था। वह इसकी उर्वरकता से इतना खुश हुईं कि उन्होंने गिरजा को गोद तक लेने की बात कह डाली। हालांकि, गिरजा ने बड़ी विनम्रता से हंसते हुए उन्हें यह कहकर मना किया कि उनके पत्नी और दो बच्चे भी हैं। अगर उन्हें गोद लिया गया तो बीवी और बच्चों का क्या होगा।
गिरजा शंकर मौर्य ने बताया कि पिछले साल मल्टी लेयर मॉडल खेती की मदद से उन्होंने 0.40 एकड़ खेत से 1.5 लाख रुपये की आमदनी की। इसमें उन्होंने 12-14 फसल उगाईं। वहीं, 0.8 एकड़ खेत से उन्हें 3.5 लाख रुपये की आमदनी हुई। गिरजा शंकर के अनुसार, प्राकृतिक कृषि में उद्यमिता को अपनाकर कम लागत में एक हेक्टेयर जमीन से हर महीने लगभग 60 हजार रुपये का शुद्ध लाभ कमाया जा सकता है।
गिरजा शंकर को कृषि क्षेत्र में कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। 27 अक्टूबर 2021 को उन्हें खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड ने ‘सम्पूर्ण स्वदेशी सम्मान’ से नवाजा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (रहमान खेड़ा, लखनऊ) ने उन्हें प्रगतिशील कृषक सम्मान से पुरस्कृत किया। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान ने 26 अप्रैल 2022 को प्राकृतिक खेती में उत्कृष्ठ कार्य के लिए गिरजा शंकर को सम्मानित किया।
प्राकृतिक खेती के विस्तार के लिए गिरजा शंकर ग्राम संसद और ग्राम उत्सव जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। इसमें उन्हें ग्राम प्रधान विजय लक्ष्मी से भी भरपूर सहयोग मिलता है। मलिहाबाद के भदेसरमऊ के जिस गांव में वह रहते हैं, वह खुद को भ्रष्टाचार मुक्त होने का दावा करता है। गिरजा शंकर कहते हैं कि ग्राम उत्सव कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग शिरकत करते हैं। अपने पूरे परिवार के साथ लोग आते हैं। प्रकृति की गोद में उनके पूरे खाने-पीने का प्रबंध किया जाता है। इसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।