देश की राजधानी के पार्षद और गुंडागर्दी पर उतर आए हैं! राजनीति में गुंडे भर गए हैं। दिल्ली के मेयर चुनाव के लिए जुटे पार्षदों के बीच जो हुआ, वह नजारा देखकर ‘राजनीति के अपराधीकरण’ जैसे संभ्रांत शब्दों का इस्तेमाल करना आप भी भूल जाएंगे और मेरी तरह ही सीधा-सीधा कहेंगे- ये राजनीति नहीं गुंडागर्दी है… ये नेता नहीं, गली के गुंडे हैं। दिल्ली देश की राजधानी है। यह देश की राजनीति का केंद्र है। और मजे की बात तो देखिए- गुत्थम-गुत्था होकर लात-घूंसे चलाने वालों में एक तरफ आम आदमी पार्टी (AAP) यानी आप के नेता हैं तो दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) यानी भाजपा के। कितनी हैरत की बात है कि आप राजनीति बदलने आई थी, बीजेपी तो ‘पार्टी विद डिफरेंस’ के तमगे पर आज भी दावेदारी करती है। आप को नया-नया राष्ट्रीय दल का दर्जा मिला है, बीजेपी खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहती है। सोचिए, जब राजनीति की दशा-दिशा बदलने का सपना दिखाने वाली आंदोलन से उपजी पार्टी और शुचिता की राजनीति करने का दंभ भरने वाले दल के नेता ऐसे हैं तो इस देश की सियासत किस अंधेरे कुएं में है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल तो नहीं ही है।
4 दिसंबर को दिल्ली नगर निगम (MCD) के चुनाव हुए। मतदाताओं ने 250 पार्षदों को चुनने के लिए जो फैसला दिया, उससे 7 दिसंबर को पर्दा उठा। चुनाव परिणाम में आप को 134 सीटें मिलीं जबकि 105 पार्षदों तक सिमटी बीजेपी ने एमसीडी में 15 साल की सत्ता खो दी। 6 जनवरी, शुक्रवार को मेयर का चुनाव होना था। लेकिन इसकी प्रक्रियाओं को लेकर ही आप और बीजेपी में ठनने लगी। एलजी ने गुरुवार को आदेश जारी कर गौतमपुरी वॉर्ड से बीजेपी पार्षद सत्या शर्मा को पीठासीन अधिकारी नियुक्त किया। वह ईस्ट एमसीडी की पूर्व मेयर रह चुकी हैं। इस पर आप ने आपत्ति जता दी। आम आदमी पार्टी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि आमतौर पर निगम में चुने गए सबसे वरिष्ठ नेता को पीठासीन अधिकारी बनाने की परंपरा रही है, लेकिन बीजेपी सभी लोकतांत्रिक परंपराओं को खत्म करने पर तुली है। आम आदमी पार्टी ने अपने वरिष्ठ और अनुभवी पार्षद मुकेश गोयल को सदन का नेता नियुक्त करने की घोषणा की।
फिर बारी आई मेयर चुनाव की। शुक्रवार को आप और बीजेपी के सभी निर्वाचित पार्षद, मनोनीत पार्षद और अधिकारी सिविक सेंटर स्थित एमसीडी सदन पहुंचे। एलजी की तरफ से नियुक्त पीठासीन अधिकारी सत्य शर्मा ने शपथ ग्रहण की। उसके बाद उप-राज्यपाल द्वारा मनोनीत 10 पार्षदों के शपथ ग्रहण का सिलसिला शुरू हुआ। तभी आप के कार्यकर्ताओं नारे लगाने लगे। उन्होंने आपत्ति जताते हुए कहा कि पहले जनता से चुनकर आए पार्षदों का शपथ ग्रहण होना चाहिए। इस पर आप की तरफ से हंगामा नहीं थमा तो बीजेपी के पार्षदों की ओर से भी नारे लगने लगे। पार्षद टेबल पर चढ़ने लगे। फिर तो नारेबाजी कब हंगामे और मारपीट में तब्दील हो गई, पता ही नहीं चला। मार्शल और सुरक्षा अधिकारियों की तरफ से बीच-बचाव के बीच पार्षदों के बीच धक्का-मुक्की होने लगी और लात-घूंसे चलने लगे। बीजेपी सांसद मनोज तिवारी का तो दावा है कि आप नेताओं ने ब्लेड तक चलाए।
सदन के अंदर जो हुआ, कुछ हद तक उसकी पृष्ठभूमि मेयर चुनाव को लेकर कांग्रेस के ऐलान से भी तैयार हुई। आप ने कहा कि दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को मेयर बनाने का मैंडेट दिया है, लेकिन बीजेपी इसका अपमान करके अपना मेयर बनाने का तिकड़म कर रही है और कांग्रेस भी इस साजिश में बीजेपी के साथ आ गई है। दरअसल, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी अनिल कुमार ने कहा कि कांग्रेस के निगम पार्षद शुक्रवार को सिविक सेंटर में होने वाले दिल्ली नगर निगम के लिए मेयर और डिप्टी मेयर सहित स्थायी समिति के चुनावों का हिस्सा नहीं बनेंगे। उन्होंने कहा कि दिल्ली की जनता ने कांग्रेस को बीजेपी और आप के खिलाफ समर्थन दिया है जिसका हम सम्मान करते हुए मेयर, डिप्टी मेयर और स्थायी समिति के चुनाव से दूरी बनाएंगे। चौधरी ने कहा कि दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को बहुमत दिया तो केजरीवाल अपना मेयर बनाएं और दिल्ली की जनता की सेवा करें। आप ने इसे बीजेपी और कांग्रेस की मिलीभगत करार दिया। सदन में चुनाव के वक्त बीजेपी की तरफ से कुछ ‘खेल’ होने की आशंका से लबालब आप पार्षदों ने कमर कस रखी थी, इसलिए जैसे ही निर्वाचितों की जगह मनोनितों को पहले शपथ दिलाया जाने लगा, उन्होंने ताल ठोंक दी। फिर जो हुआ, वो पूरे देश ने देखा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि बीजेपी नेताओं की तरफ से आ रहे बयानों और उसकी रणनीतियों से आप घबराई लग रही है। दिल्ली बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने हमारे सहयोगी अखबार द सान्ध्य टाइम्स से बातचीत में कहा कि ‘हम आश्वस्त हैं। एकीकृत निगम में केंद्र सरकार की बड़ी भूमिका और महत्व रहेगा। सभी पार्षद इसे समझते हैं। पीएम नरेंद्र मोदी की नीतियों और विकास को वोट मिलेगा। नगर निगम में बीजेपी के बेहतरीन अनुभव को वोट मिलेगा और हमारी जीत होगी।’ बहरहाल, ‘माननीयों’ के हो-हंगामे और उनकी शर्मनाक हरकतों के कारण शुक्रवार को मेयर चुनाव नहीं हो सका। वर्ष 2012 के बाद फिर से एकीकृत हुए दिल्ली नगर निगम के लिए इस बार एक मेयर का चुनाव होना है। नियम के मुताबिक, इस बार किसी महिला को ही मेयर चुना जाएगा। इसके लिए नई तारीख का ऐलान किया जाएगा। क्या दिल्ली और देश की जनता ‘माननीयों’ से उम्मीद कर सकती है कि अगली बार वो जब भी जुटें तो ऐसा संदेश दें कि वो अपने किए से खुद भी नाखुश हैं?