भारतीय छात्र विदेशों में धूम मचा रहे है! दुनियाभर से करीब 1 करोड़ 80 लाख लोगों ने अपना देश छोड़कर विदेशों का रुख किया। ऐसे में सबसे बड़ी आबादी भारतीयों की है। दूसरे स्थान पर मेक्सिको है। वहां के 1 करोड़ 12 लाख लोग विदेश चले गए। इस लिस्ट में क्रमशः रूस और चीन का नाम तीसरे और चौथे नंबर पर आता है। दोनों देशों की 1 करोड़ से अधिक आबादी ने विदेशों का रुख किया। मेक्सिको छोड़ने वाली वहां की ज्यादातर आबादी पड़ोसी देश अमेरिका जाती है, लेकिन भारतीय दुनिया के कई देशों का रुख करते हैं। पढ़ाई से रोजगार तक, भारतीय अलग-अलग मकसद से दुनियाभर में फैले हैं। वर्ष 2019 में 6 लाख भारतीय स्टूडेंट्स विदेश पढ़ने गए। इनमें सबसे ज्यादा संख्या कनाडा जाने वालों की थी। उसके बाद अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूके का नंबर आता है। ध्यान रहे कि 2019 में न कोविड था और न ही रूस-यूक्रेन युद्ध।
कोविड-19 महामारी के बावजूद सात लाख से ज्यादा भारतीय रोजगार की तलाश में विदेश गए।दोनों देशों की 1 करोड़ से अधिक आबादी ने विदेशों का रुख किया। मेक्सिको छोड़ने वाली वहां की ज्यादातर आबादी पड़ोसी देश अमेरिका जाती है, लेकिन भारतीय दुनिया के कई देशों का रुख करते हैं। पढ़ाई से रोजगार तक, भारतीय अलग-अलग मकसद से दुनियाभर में फैले हैं। वर्ष 2019 में 6 लाख भारतीय स्टूडेंट्स विदेश पढ़ने गए। इनमें सबसे ज्यादा संख्या कनाडा जाने वालों की थी। उसके बाद अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूके का नंबर आता है। ध्यान रहे कि 2019 में न कोविड था और न ही रूस-यूक्रेन युद्ध। 2022 में विदेश जाने वाले भारतीयों की संख्या बढ़कर 13 लाख हो गई। इनमें 15 प्रतिशत भारतीयों ने ईसीआर के 18 देश गए।
इनमें ज्यादातर खाड़ी और पश्चिम एशियाई देश हैं।दोनों देशों की 1 करोड़ से अधिक आबादी ने विदेशों का रुख किया। मेक्सिको छोड़ने वाली वहां की ज्यादातर आबादी पड़ोसी देश अमेरिका जाती है, लेकिन भारतीय दुनिया के कई देशों का रुख करते हैं। पढ़ाई से रोजगार तक, भारतीय अलग-अलग मकसद से दुनियाभर में फैले हैं। वर्ष 2019 में 6 लाख भारतीय स्टूडेंट्स विदेश पढ़ने गए। इनमें सबसे ज्यादा संख्या कनाडा जाने वालों की थी। उसके बाद अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूके का नंबर आता है। ध्यान रहे कि 2019 में न कोविड था और न ही रूस-यूक्रेन युद्ध।दोनों देशों की 1 करोड़ से अधिक आबादी ने विदेशों का रुख किया। मेक्सिको छोड़ने वाली वहां की ज्यादातर आबादी पड़ोसी देश अमेरिका जाती है, लेकिन भारतीय दुनिया के कई देशों का रुख करते हैं। पढ़ाई से रोजगार तक, भारतीय अलग-अलग मकसद से दुनियाभर में फैले हैं। वर्ष 2019 में 6 लाख भारतीय स्टूडेंट्स विदेश पढ़ने गए। इनमें सबसे ज्यादा संख्या कनाडा जाने वालों की थी। उसके बाद अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूके का नंबर आता है। ध्यान रहे कि 2019 में न कोविड था और न ही रूस-यूक्रेन युद्ध। ध्यान रहे कि ईसीआर पासपोर्ट कम तनख्वाह के रोजगार की तलाश में विदेशों का रुख करने वालों को जारी किया जाता है। ये स्कूल की पढ़ाई भी नहीं किए होते हैं और मजदूरी करते हैं।
वर्ष 2021 में भारत को विदेशों में काम कर रहे अपने नागरिकों से 89 अरब डॉलर मिले। इनमें ईसीआर देशों से मिलने वाले धन का बड़ा हिस्सा है।दोनों देशों की 1 करोड़ से अधिक आबादी ने विदेशों का रुख किया। मेक्सिको छोड़ने वाली वहां की ज्यादातर आबादी पड़ोसी देश अमेरिका जाती है, लेकिन भारतीय दुनिया के कई देशों का रुख करते हैं। पढ़ाई से रोजगार तक, भारतीय अलग-अलग मकसद से दुनियाभर में फैले हैं। वर्ष 2019 में 6 लाख भारतीय स्टूडेंट्स विदेश पढ़ने गए। इनमें सबसे ज्यादा संख्या कनाडा जाने वालों की थी।दोनों देशों की 1 करोड़ से अधिक आबादी ने विदेशों का रुख किया। मेक्सिको छोड़ने वाली वहां की ज्यादातर आबादी पड़ोसी देश अमेरिका जाती है, लेकिन भारतीय दुनिया के कई देशों का रुख करते हैं। पढ़ाई से रोजगार तक, भारतीय अलग-अलग मकसद से दुनियाभर में फैले हैं। वर्ष 2019 में 6 लाख भारतीय स्टूडेंट्स विदेश पढ़ने गए। इनमें सबसे ज्यादा संख्या कनाडा जाने वालों की थी। उसके बाद अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूके का नंबर आता है। ध्यान रहे कि 2019 में न कोविड था और न ही रूस-यूक्रेन युद्ध। उसके बाद अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूके का नंबर आता है। ध्यान रहे कि 2019 में न कोविड था और न ही रूस-यूक्रेन युद्ध। हालांकि, वहां पलायन करने वालों का 15 प्रतिशत भारतीय आबादी ही है।हर वर्ष औसतन एक लाख से ज्यादा भारतीय अपनी नागरिकता छोड़ देते हैं। 2011 के बाद से 16 लाख भारतीय उन देशों में ही बस गए जहां वो रोजगार के लिए गए थे।