पीएम नेहरू की नीतियों में कई कमियां पाई गई है! देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कई कदमों की आलोचना होती रही है। यह और बात है कि भारी उद्योग और बड़े कारखाने लगाने के लिए उन्हें कोई कठघरे में नहीं खड़ा करता है। इन्हें नेहरू ने ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ करार दिया था। प्रिंसटन स्थित इंटरनेशनल इकनॉमिक पॉलिसी में विजिटिंग प्रोफेसर अशोक मोदी की राय कुछ जुदा है। उन्हें लगता है कि नेहरू की यह ‘मंदिर’ रणनीति बहुत बड़ी भूल थी। अपनी नई पुस्तक ‘इंडिया इज ब्रोकन: अ पीपुल बिट्रेड, 1947 टू टुडे’ में उन्होंने नेहरू के समाजवाद को फर्जी बताया है। उनके मुताबिक, इसी के कारण भारत पीछे की ओर गया। जापान का मॉडल न अपनाकर नेहरू ने चूक की। अशोक मोदी ने हमारे सहयोगी ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ के साथ बातचीत में नेहरू की नीतियों पर कई तरह के सवाल उठाए हैं। इनका जिक्र उनकी पुस्तक में भी किया गया है। मजबूत तर्कों के साथ उन्होंने भारी उद्योग पर नेहरू की पॉलिसी को निशाने पर लिया है। दिग्गज अर्थशास्त्री अशोक मोदी के अनुसार, जब भारत आजाद हुआ तो 70 फीसदी लोग कृषि क्षेत्र में काम करते थे। यह लो प्रोडक्टिविटी वाला सेक्टर था। तब रोजगार पैदा करना प्रमुख काम था। नेहरू ने 10 साल में पूर्ण रोजगार का लक्ष्य रखा। वह समझते थे देश में शिक्षा का स्तर खराब है। कॉलेजों से निकलने वाले ग्रेजुएट लगभग किसी काम के नहीं थे। उस समय राजकपूर की आई फिल्म ‘श्री 420’ ने इस बात को काफी कुछ साफ कर दिया था। इसमें नायक बीए पास था। लेकिन, उसके पास कोई नौकरी नहीं थी। नेहरू ने नब्ज बिल्कुल सही पकड़ी थी। उनका काम कृषि में प्रोडक्टिविटी बढ़ाना और लेबर की खपत वाले मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को पुश करना था। इसके साथ ही ज्यादा से ज्यादा लोगों को शिक्षित बनाना भी एजेंडे में था। एक बार कृषि से लेबर खाली होते हैं तो उन्हें शहरी नौकरियों की जरूरत पड़ती है।
जापान ने इसकी व्यवस्था की थी। उसने टेक्सटाइल मिलें और छोटे-मध्यम आकार की फैक्ट्रियां लगाई थीं। खेतों से खाली होकर लेबर इनमें काम कर सकते थे। भारत को भी ठीक वही करना था। इसके लिए चीजें भी थीं। लुधियाना, सूरत, कोयंबटूर जैसे शहरों में छोटे उद्योगों को बढ़ावा दिया जा सकता था। इसके बजाय नेहरू ने भारी उद्योग को प्रोत्साहित किया। उन्हें पता था कि ये नौकरियां नहीं पैदा कर सकते हैं। लेकिन, यह मान्यता थी कि इसके कारण कुछ ऐसा होगा जिससे समृद्धि और रोजगार बनेंगे। प्राइमरी एजुकेशन को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। अशोक मोदी कहते हैं कि वह आईआईटी जैसे संस्थान में गए। नेहरू की पॉलिसी से उनके जैसों को फायदा हुआ। लेकिन, उनके जैसे सब भाग्यशाली नहीं हैं। प्राइमरी स्कूल न जाने का खामियाजा कई-कई पीढ़ियों ने भुगता।
जाने-माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर अशोक मोदी के अनुसार, जापान ने उसके बाद ही यूनिवर्सिटी बनानी शुरू कीं जब सुनिश्चित कर लिया कि उसके बच्चों ने प्राइमरी और सेकेंडरी एजुकेशन पूरी कर ली है। मास एजुकेशन के साथ कृषि उत्पादकता और छोटे-मझोले उद्यमों को प्रोत्साहित करने से उसने रोजगार पैदा कर लिए। शुरू में नेहरू जापान के मॉडल को सही बताते थे। उन्होंने 1949 में मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर इसका जिक्र भी किया था। लेकिन, तब दुनिया का माहौल बड़े उद्योगों के लिए बन रहा था। इसके बाद नेहरू ने छोटे-मध्यम उद्योगों के विकास से हाथ खींच लिए।
अशोक मोदी ने कहा कि नेहरू विरासत में कमजोर लोकतंत्र छोड़कर गए थे। कांग्रेस गुटों बंटी थी। करप्शन था। इंदिरा गांधी ने उस कमजोर व्यवस्था को हाथ में लिया था। व्यवस्था कमजोर होने के कारण इंदिरा ने उसे अपने पक्ष में इस्तेमाल किया। उन्होंने भ्रष्टाचार को कानूनी जामा पहना दिया।मास एजुकेशन के साथ कृषि उत्पादकता और छोटे-मझोले उद्यमों को प्रोत्साहित करने से उसने रोजगार पैदा कर लिए। शुरू में नेहरू जापान के मॉडल को सही बताते थे। उन्होंने 1949 में मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर इसका जिक्र भी किया था। लेकिन, तब दुनिया का माहौल बड़े उद्योगों के लिए बन रहा था। इसके बाद नेहरू ने छोटे-मध्यम उद्योगों के विकास से हाथ खींच लिए। इसके जरिये उन्होंने अपनी सत्ता को मजबूत किया। पॉलिसी बनाने का काम पीछे चला गया। गरीबी हटाओ जैसे नारे सिर्फ चुनाव जीतने के हथकंडे बनकर रह गए।
प्रोफेसर मोदी ने कहा कि राजीव युवा थे। वह उस जेनरेशन के थे जो टेक्नोलॉजी समझती थी। इसके अलावा लोग भ्रष्टाचार से आजिज आ गए थे। उनकी छवि बिल्कुल साफ थी। टैक्स घटाने के उनके शुरुआती कदम ठीक थे। वह चीजों को सही समझते थे और सही करते थे। लेकिन, वह धीरे-धीरे करप्शन का हिस्सा बन गए। उन्होंने देश को वित्तीय संकट के रास्ते पर खड़ा कर दिया।