भोजशाला का विवाद बहुत सालों से हिंदू मुस्लिमों के बीच में चलता हुआ आ रहा है! वसंत पंचमी के आते ही मध्य प्रदेश में धार जिले में स्थित भोजशाला चर्चा में आ जाता है। भोजशाला लंबे समय से विवादों में रही है। करीब 800 साल पुरानी इस भोजशाला को लेकर हिंदू-मुस्लिमों के बीच मतभेद हैं। विवाद के कारण यहां सुरक्षा के अतिरिक्त इंतजाम किए जाते हैं। सांप्रदायिक भावनाएं जुड़े होने के कारण यह मुद्दा कई बार राजनीति के रंग में रंग जाता है। ज्यादा मुश्किल तब होती है जब वसंत पंचमी शुक्रवार के दिन पड़ता है। ऐतिहासिक भोजशाला, राजा भोज द्वारा स्थापित सरस्वती सदन है। परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईस्वी तक शासन किया था। 1034 में उन्होंने सरस्वती सदन की स्थापना की थी। यह एक महाविद्यालय था जो बाद में भोजशाला के नाम से मशहूर हुआ। राजा भोज के शासनकाल में ही यहां मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इतिहासकारों के मुताबिक साल 1875 में खुदाई के दौरान यह प्रतिमा यहां मिली थी। 1880 में अंग्रेजों का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इसे लेकर इंग्लैंड चला गया था। यह वर्तमान में लंदन के संग्रहालय में सुरक्षित भी है।
1305 से 1401 के बीच अलाउद्दीन खिलजी और दिलावर खां गौरी की सेनाओं के साथ माहकदेव और गोगादेव की लड़ाई हुई। 1456 में महमूद खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया। करीब एक हजार साल पहले भोजशाला शिक्षा का एक बड़ा संस्थान था। बाद में यहां पर राजवंश काल में मुस्लिम समाज को नमाज के लिए अनुमति दी गई, क्योंकि यह इमारत अनुपयोगी पड़ी थी। वे लंबे समय से यहां नमाज अदा करते रहे। हिंदुओं का दावा है कि भोजशाला सरस्वती का मंदिर है। दूसरी ओर मुस्लिम इसे कमाल मौलाना की दरगाह बताते हैं।
विवाद की शुरुआत 1902 में हुई जब धार के तत्कालीन शिक्षा अधीक्षक काशीराम लेले ने मस्जिद के फर्श पर संस्कृत के श्लोक खुदे देखे। इस आधार पर उन्होंने इसे भोजशाला बताया था। 1909 में धार रियासत ने भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया। इसके बाद यह पुरातत्व विभाग के अधीन आ गया। विवाद का दूसरा पड़ाव 1935 में आया, जब धार के महाराज ने इमारत के बाहर तख्ती टंगवाई। तख्ती पर भोजशाला और मस्जिद कमाल मौलाना लिखा था। धार स्टेट ने 1935 में ही इस परिसर में नमाज पढ़ने की अनुमति दी थी। दीवान नाडकर ने भोजशाला को कमाल मौलाना की मस्जिद बताते हुए शुक्रवार को नमनाज की अनुमति का आदेश जारी किया था। यही आदेश आगे चलकर विवाद का कारण बना। आजादी के बाद ये मुद्दा सियासी रंग में रंग गया। मंदिर में प्रवेश को लेकर हिंदुओं ने आंदोलन किया। इसके बाद से जब-जब वसंत पंचमी और शुक्रवार साथ होते हैं, तब-तब तनाव बढ़ता है।
भोजशाला में हर मंगलवार को हिंदू समाज के लोग पूजा-अर्चना करते हैं। हरेक शुक्रवार को दोपहर एक से तीन बजे तक मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति होती है। वसंत पंचमी पर हिंदू समाज को पूरे दिन पूजा-अर्चना की अनुमति होती है। यह अनुमति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा दी गई है। इस बार वसंत पंचमी शनिवार को है। शुक्रवार को पड़ने पर तनाव की स्थिति बन जाती है क्योंकि इस दिन मुस्लिम भी नमाज पढ़ने आते हैं। इस दिन प्रशासन को अतिरिक्त तैयारी करनी पड़ती है क्योंकि हिंदू-मुस्लिम एक साथ में भोजशाला में होते हैं। हालांकि प्रशासन दोनों को आमने-सामने नहीं आने देता।
हर साल की तरह इस बार भी धार के भोजशाला में चार दिवसीय सरस्वती पूजनोत्सव शनिवार सुबह शुरू हुआ। महाराजा भोज स्मृति बसंतोत्सव समिति ने इसका आयोजन किया है। इस अवसर पर होने वाले यज्ञ की तैयारियां शुक्रवार देर शाम को ही पूरी हो गई थीं। भोजशाला चौक में होने वाली धर्म सभा का पंडाल भी सजकर तैयार हो गया। शनिवार सुबह सूर्योदय के साथ ही सरस्वती मंदिर भोजशाला में महाराजा भोज के समय से चली आ रही परम्परा अनुसार प्रकांड पंडितों के नेतृत्व में यज्ञ हवन शुरू हुआ जो सूर्यास्त तक लगातार चलता रहेगा।
चार दिवसीय आयोजन में सबसे पहला दिन मुख्य होता हैं। इसी दिन शोभायात्रा व धर्मसभा का आयोजन होता है जिसमें हजारों की संख्या में हिंदू समाज के लोग पहुंचते हैं। भोजशाला की सुरक्षा व्यवस्था का पूरा जिम्मा पिछले दो दिनों से डीआईजी ग्रामीण चंद्रशेखर सोलंकी ने अपने हाथों में ले रखा है। बड़ी संख्या में अधिकारियों और कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है। पुलिस के साथ ही राजस्व विभाग के कर्मचारी भी तैनात किए गए हैं। पांच एसडीएम, चार डिप्टी कलेक्टर, तहसीलदार सहित पटवारियों की पूरी टीम को भी अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई है। धार जिले के पुलिस बल के साथ इंदौर से पुलिस की तीन कंपनियां बुलाई गई हैं। इसी के साथ धार व खरगोन एडिशनल एसपी भी ड्यूटी पर मौजूद हैं। 50 टीआई, 12 डीएसपी, सीएसपी व एसडीओपी सहित 600 की कुल संख्या में पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं।
भोज महोत्सव के प्रचार-प्रसार प्रमुख सुमित चौधरी ने बताया कि पहले दिन पांच फरवरी को सुबह की शुरुआत मां सरस्वती यज्ञ से होगी। इसके बाद लालबाग परिसर से मां वाग्देवी की शोभायात्रा की शुरुआत हाेगी। शहर के प्रमुख मार्गों से भ्रमण करते हुए करीब डेढ घंटे में यात्रा भोजशाला पहुंचेगी, जहां पर मां वाग्देवी के तेल चित्र को लेकर पदाधिकारी अंदर जाएंगे और महाआरती का आयोजन होगा। इसके बाद दोपहर के समय धर्म सभा होगी। शाम को महाआरती के साथ पूर्णाहुति भी दी जाएगी। इसी तरह छह फरवरी को शाम के समय खाटू श्याम की भजन संध्या, सात फरवरी को कवि सम्मेलन, आठ फरवरी को कन्या पूजन व भोजन का आयोजन रहेगा।