आज हम आपको सुल्तानगंज सीट का सियासी समीकरण समझाने वाले हैं! बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज विधानसभा सीट का ‘सुल्तान’ बनने के लिए जातीय समीकरण हमेशा से साधना जरूरी रहा है। इलाके के स्थानीय सियासी जानकार कहते हैं कि भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत, कुर्मी और रविदास भी इस सीट पर जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, विजयश्री का टीका यादव, मुस्लिम, कुशवाहा और कोइरी वोटरों के साथ अनुसूचित जाति-जनजाति के वोट ही लगाते हैं। 1951 में अस्तित्व में आई, सुल्तानगंज सीट पर अब तक 17 चुनाव हो चुके हैं। 2025 के विधानसभा चुनाव में यहां 18वीं बार फाइट होगी। पूर्व में हुए विधानसभा चुनाव में जेडीयू का चार बार सीट पर कब्जा रहा। 1951 से 1985 तक इस सीट पर कांग्रेस ने आठ बार जीत दर्ज की। जानकारों की मानें, तो उस वक्त कांग्रेस के समर्थन में सभी जातियां होती थीं। लोगों के मन में ये बात चस्पा थी कि विकास का मतलब कांग्रेस है। सुल्तानगंज में 2020 विधानसभा चुनाव के पहले वाले चुनावों में जेडीयू के सुबोध राय ने जीत हासिल की थी। 2010 के चुनाव में उन्होंने राजद के राम अवतार मंडल को हराया था। वहीं, 2015 के चुनाव में सुबोध राय ने आरएलएसपी के हिमांशु प्रसाद को हराया था। फिलवक्त इस सीट से जेडीयू के ललित नारायण मंडल विधायक हैं। गंगा के तट पर बसे सुल्तानगंज पर बाबा भोलेनाथ की विशेष कृपा रहती है। यहां बाबा अजगैबीनाथ का विश्व प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है। बांका संसदीय सीट के अंदर आने वाली इस विधानसभा सीट पर चुनाव हमेशा दिलचस्प जातीय और राजनीतिक समीकरण पर लड़े जाते रहे हैं। 2025 के विधानसभा चुनाव में यहां स्थिति दूसरी होगी, क्योंकि एक तरफ महागठबंधन के सात दल होंगे। दूसरी ओर बीजेपी अकेले इस सीट पर फाइट करेगी। सुल्तानगंज विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या 4,36,079 है। क्षेत्र की 87.87 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में बसती है। महज 12.13 फीसदी जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में निवास करती है। सबसे महत्वपूर्ण बात है सुल्तानगंज में 12.97 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति की है। मात्र 0.02 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है। कुल वोटरों की संख्या 3 लाख 21 हजार 987 है।
इस बार विधानसभा चुनाव 2025 और लोकसभा चुनाव 2024 में इस सीट पर अलग तरह का गणित दिखने वाला है। जानकार मानते हैं कि ये गणित सीधे 2015 के विधानसभा चुनाव की तरह कमोवेश दिखेगा। सियासी जानकारों की मानें, तो 2015 में जेडीयू बीजेपी से अलग होकर महागठबंधन के साथ थी। इस सीट के लिए जेडीयू को राजद, कांग्रेस और बाकी दलों का समर्थन हासिल था। महागठबंधन को ये सीट मिली थी। बीजेपी के हाथ से ये सीट निकल गई थी। जानकारों की मानें, तो एक बार फिर 2025 में 2015 वाली तस्वीर दिखेगी। इस बार भी महागठबंधन के सात दल एक साथ होंगे। बीजेपी अकेले फाइट करेगी और उनके साथ दलित नेता चिराग पासवान का समर्थन होगा। सुल्तानगंज सीट पर जीत का सेहरा यादव, मुस्लिम और अति-पिछड़ा वोटों के मूवमेंट के आधार पर तय होता है। महागठबंधन के कोर वोटरों में अति-पिछड़ा हैं। यादवों के लिए तेजस्वी यादव हैं। एक तरह से इस सीट पर महागठबंधन की स्थिति मजबूत रहेगी।
सियासी जानकारों की मानें, तो जब नीतीश कुमार एनडीए के साथ थे, उस वक्त भी जेडीयू को इस सीट पर सफलता मिली। राजद के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे। वहीं, 2015 में जब महागठबंधन के साथ जेडीयू ने चुनाव लड़ा तो फिर भी ये सीट जेडीयू के पाले में रही। स्थानीय जानकार मानते हैं कि बीजेपी का खाता इस सीट पर उसी वक्त खुला जब वे नीतीश के साथ रहे। भागलपुर जिले में सात विधानसभा सीटें आती हैं। उनमें सुल्तानगंज, नाथनगर, गोपालपुर, बिहपुर, पीरपैंती, भागलपुर और कहलगांव विधानसभा सीट शामिल है। 2015 में महागठबंधन के साथ रहे नीतीश कुमार को सुल्तानगंज, नाथनगर और गोपालपुर सीट पर जीत मिली थी। उसके बाद बिहपुर और पीरपैंती सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। बाकी दो सीटों भागलपुर और कहलगांव पर राजद ने कब्जा जमाया था। बीजेपी को इन सभी सीटों से निराशा हाथ लगी थी।
स्थानीय जानकारों के मुताबिक 2025 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन 2015 वाला सूत्र ही अपनाएगा। जानकारों के मुताबिक यहां बंटवारा भी 2015 की तरह होगा, जब महागठबंधन में एकता थी। एक बार फिर सात दल एक साथ हैं। उस हिसाब से जेडीयू, कांग्रेस और राजद को सातों सीटों में भागीदारी मिलेगी। सुल्तानगंज सीट को जीतने के लिए बीजेपी भी इस बार जोर-अजमाइश लगाएगी। जानकार कहते हैं कि सीट का जातीय समीकरण कभी भी बीजेपी के पक्ष में नहीं रहा। अति-पिछड़ा वोटों ने हमेशा जेडीयू और राजद को सपोर्ट किया। हालांकि, कुछ लोग ये भी चर्चा कर रहे हैं कि 2025 के विधानसभा चुनाव में कुछ उलटफेर भी हो सकता है। जेडीयू के आधार वोट खिसके हैं। अति-पिछड़ा और राजद का वोट जेडीयू में ट्रांसफर नहीं हो रहा है। कुढ़नी और गोपालगंज जीतने के बाद बीजेपी उत्साह में है ही, सुल्तानगंज सीट पर भी परिणाम पलटने के लिए बीजेपी एड़ी-चोटी का जोर लगाएगी। कुल मिलाकर जब इस बार चुनाव का बिगुल बजेगा, तब परिस्थितियां बिल्कुल 2015 के विधानसभा चुनाव की तरह होंगी। एक तरफ महागठबंधन होगा और दूसरी तरफ बीजेपी। देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी कैसे अपनी सियासी समीकरण को साधती है और कुशवाहा, यादव, मुस्लिम और ब्राह्मण बहुल इस सीट पर अपना कब्जा जमाती है।