Sunday, December 22, 2024
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क्या उत्तराखंड में दोबारा आएगी त्रासदी?

उत्तराखंड में अब दोबारा त्रासदी आ सकती है! जोशीमठ त्रासदी के बाद उत्तराखंड के कई हिस्सों से भयानक तस्वीरें सामने आ रही हैं। जोशीमठ ही नहीं उत्तराखंड में अलग-अलग हिस्सों में दरारें देखने को मिल रही है। ऋषिकेष से कुछ दूर, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, नैनीताल, उत्तरकाशी भी बड़ी दरारों से अछूते नहीं रह गए हैं। इन सभी जगहों की स्थिति भी डर है, आने वाले दिनों में जोशीमठ जैसी ना हो जाए। जोशीमठ की हर रोज नई तस्वीर देख कर कर्णप्रयाग के लोग भी दहशत में आ गए हैं। बदरीनाथ हाईवे के किनारे बसे इस क्षेत्र के करीब 25 मकानों में दो फीट तक दरारें पड़ी हैं। डर के कारण कई लोग अपने मकान छोड़ चुके हैं। अधिकांश परिवार खौफ के साये में अपने टूटे मकानों में ही रहने के लिए मजबूर हैं। हालात यह है कि भू-धंसाव के आठ महीने बाद भी प्रशासन और आपदा प्रबंधन की ओर से सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए गए हैं, जिससे यहां रह रहे लोगों की जान पर खतरा मंडरा रहा है।

कर्णप्रयाग में 12 साल पहले सब्जी मंडी बनने के बाद भू-धंसाव होने के बाद लोगों के घरों में दरारें आनी शुरू हो गई थी। इसी दौरान कर्णप्रयाग-नैनीसैंण मोटर मार्ग के स्कबर भी बंद हो गए, लेकिन लोनिवि ने उनको खोलने की जहमत नहीं उठाई। इसकी वजह से सड़क का पानी तीनों क्षेत्रों के मकानों में पड़ी दरारों में रिसने लगा। फिर वहां अनियोजित कटिंग ने भी हालात और ज्यादा बिगाड़ दिए। धीरे-धीरे सड़क का पानी अन्य लोगों के घरों की दरारों में जाने लगा। इसकी वजह से पिछले साल जुलाई और अगस्त में वहां भू-धंसाव में तेजी आई और यहां अभी भी भूधंसाव हो रहा है।

पिछले साल बरसात के दौरान एनएचआईडीसीएल ने बदरीनाथ हाईवे पर रोड की कटिंग की, जिसकी वजह से बरसात में जमीन धंसने लगी। सड़क के ऊपर बने पंकज डिमरी, उमेश रतूड़ी, बीपी सती, राकेश खंडूड़ी, हरेंद्र बिष्ट, रविदत्त सती, दरवान सिंह, दिगंबर सिंह, गबर सिंह के घरों सहित 25 मकानों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ आ गई। लोगों के मकानों और आंगन में दो से तीन फीट तक चौड़ी दरारें आ गई हैं, लेकिन इनका अब तक ट्रीटमेंट नहीं किया गया है। इस क्षेत्र का प्रशासन के अलावा रुड़की आईआईटी के वैज्ञानिक भी दो बार निरीक्षण कर चुके हैं। सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता एमएस बुटोला का कहना है कि कर्णप्रयाग में बहुगुणानगर, सब्जी मंडी के ऊपरी भाग और सीएमपी बैंड के आसपास के ट्रीटमेंट का प्रस्ताव तैयार किया गया है। इस प्रस्ताव पर भूगर्भीय सर्वे कराया जा चुका है। पैसा स्वीकृत होते ही जल्द ट्रीटमेंट कार्य शुरू करवा दिया जाएगा। वहीं तहसीलदार कर्णप्रयाग सुरेंद्र सिंह देव का कहना है कि प्रशासन और भूगर्भीय वैज्ञानिकों ने प्रभावित क्षेत्र का सर्वेक्षण किया है। भूस्खलन रोकने के लिए जल्द प्रभावी उपाय किए जाएंगे।

वर्ष 2013 की आपदा का दंश गोपेश्वर का हल्दापानी आज भी झेल रहा है। यहां आपदा के बाद से ही भूस्खलन शुरू हो गया था जो धीरे-धीरे बढ़ता ही चला गया। इस समय यहां के कई घरों में दरारें आ गई हैं। वहीं हल्दापानी के नीचे बड़े स्तर पर भूस्खलन हो रहा है, जिसकी वजह से क्षेत्र के लगभग करीब 50 मकान प्रभावित हो गए हैं। यहां पर सुरक्षात्मक कार्यों के लिए कई आंदोलन लोगों ने किए, अधिकारियों ने निरीक्षण किया। यहां तक कि पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने भी क्षेत्र का निरीक्षण किया था। अब यहां पर सुरक्षात्मक कार्यों के लिए 29 करोड़ 97 लाख रुपये स्वीकृत कर दिए हैं। जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी नंद किशोर जोशी ने बताया कि शासन से बजट स्वीकृत होने के बाद हल्दापानी क्षेत्र में जल्द कार्य शुरू कराए जाएंगे।

उत्तरकाशी जनपद के भटवाड़ी का मस्ताड़ी गांव में 20 अक्टूबर 1991 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद से भू-धंसाव की त्रासदी से जूझ रहा है। यहां लोगों के घरों में दरारें आ रखी हैं तो वहीं रास्ते और खेत लगातार धंस रहे हैं। यहां के लोग लंबे समय से विस्थापन की मांग कर रहे हैं, लेकिन आज तक इनका विस्थापन नहीं हो पाया है। उधर, प्रशासन का कहना है कि विस्थापन के लिए भूमि चयनित कर ली गई है। भूगर्भीय सर्वे के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। मस्ताड़ी गांव जिला मुख्यालय से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मस्ताड़ी गांव में वर्ष 1991 में आए भूकंप के बाद से भू-धंसाव शुरू हो गया था, उस विनाशकारी भूकंप में गांव के अधिकांश ध्वस्त हो गए थे। 1997 में प्रशासन ने गांव का भूगर्भीय सर्वेक्षण भी कराया था। भूवैज्ञानिकों ने गांव में तत्काल सुरक्षात्मक कार्य का सुझाव दिया था, लेकिन 31 साल बाद भी गांव का विस्थापन नहीं हो पाया है और न ही सुरक्षात्मक कार्य हुए हैं। अब हालात यह हो गये है कि गांव धीरे-धीरे धंसता जा रहा है। रास्ते ध्वस्त हो रहे हैं और बिजली के पोल भी तिरछे हो कर घातक होते जा रहे हैं। यहां तक कि इस गांव में अब पेड़ भी धंसने लगे हैं।

दूसरी तरफ नैनीताल में भूस्खलन के चलते बैंड स्टैंड को भी छह माह से बेरीकेडिंग कर पर्यटकों के लिए बंद किया गया है। पिछले साल सितंबर महीने में मल्लीताल क्षेत्र में बैंड स्टैंड के समीप की दीवार भरभराकर झील में जा गिरी थी और फुटपाथ पर दरारें दिखने लगी थीं। बाद में बैंड स्टैंड से लेकर वाल्मीकि पार्क की ओर से दरारें लगातार बढ़ने लगी। सिंचाई विभाग ने जलस्तर कम होने के बाद क्षतिग्रस्त दीवार की मरम्मत तो कराई थी, लेकिन कुछ समय बाद बैंड स्टैंड और जूम लैंड के बीच भी दरार आ गई। बताया जा रहा है कि यहां से पानी के निकासी के इंतजाम थे लेकिन एडीबी ने यहां विकास कार्य किए जिससे यहां का ड्रेनेज सिस्टम बंद हो गया और पानी की निकासी न होने से यह हालात बन गए। जानकारी के अनुसार ब्रिटिशकाल में शिकारी जिम कार्बेट 1926-27 में नैनीताल पालिका उपाध्यक्ष रहने के दौरानर 7300 रुपये की धनराशि दान की थी। इसमें से करीब चार हजार रुपये में बैंड स्टैंड का निर्माण कराया गया। तब रोजाना शनिवार-रविवार को मनोरंजन के लिए इसी स्थल पर बैंड बजाया जाता था। कोविड काल को छोड़ यहां पर्यटन सीजन में पीएसी बैंड बजता रहा है।

रुद्रप्रयाग जनपद का मरोड़ा गांव विकास का खामियाजा भुगत रहा है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण के लिए गांव के नीचे से टनल निर्माण के चलते कई घर जमींदोज हो चुके हैं, जबकि कई घर ध्वस्त होने की कगार पर हैं। मुआवजा मिलने पर अधिकांश लोग यहां से विस्थापित हो गए, लेकिन प्रभावितों को अभी तक मुआवजा नहीं मिला है। वे अभी भी मौत के साये में अपने टूटे-फूटे मकानों में बसर कर रह रहे हैं। यदि इन लोगों को जल्द ही यहां से हटाया नहीं गया तो बड़ी जनहानि हो सकती है। टनल निर्माण के चलते मरोड़ा गांव के घरों में दरारें पड़ चुकी हैं। स्थिति इतनी विकराल है कि गांव में कभी भी कहर बरप सकता है। रेल लाइन का निर्माण कार्य कर रही कार्यदायी संस्था की ओर से पीड़ितों के रहने के लिए टिन शेड बनाए गए हैं, लेकिन पीड़ित इन टिन शेडों में नहीं रह रहे हैं। प्रभावितों का कहना है कि टिन शेड में किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं है।

शुरूआती चरण में प्रभावित परिवारों को रेलवे किराया देती थी, लेकिन अब किराया देना भी बंद कर दिया है और यहां से पलायन कर चुके लोग फिर गांव का रूख कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि विकास की जगह उनका विनाश हुआ है, उनका पुस्तैनी मकान उनकी आंखों के सामने जमीदोज हो रहे हैं। कभी मरोड़ा गांव में 35 से चालीस परिवार हुआ करते थे, लेकिन अब मात्र 15 से बीस परिवार रह गए हैं और जो परिवार यहां रह भी रहे हैं, उनके साथ कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है।

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